अभी रुपये में और गिरावट की आशंका
महंगाई दर ना बढ़ने और रुपया मजबूत होने के भले ही सरकार लाख दावे करती रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत अलग ही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विदेशी पूंजी की सतत निकासी और घरेलू शेयर बाजारों में नरम रुख के बीच रुपया मंगलवार को शुरुआती कारोबार में दो पैसे की गिरावट के साथ अपने सर्वकालिक निचले स्तर 84.13 प्रति डॉलर पर आ गया।
विदेशी मुद्रा कारोबारियों के मुताबिक सभी की निगाहें अमेरिका पर टिकी हैं। जहां अगले राष्ट्रपति के लिए चुनाव हो रहे हैं। ऐसे हालात में बाजार भी आने वाले दिनों में संभावित उतार-चढ़ाव के लिए तैयार हैं। खासकर फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति के मद्देनजर हालात अलग किस्म के बन गए है। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 84.13 प्रति डॉलर पर खुला, जो पिछले बंद भाव से दो पैसे की गिरावट दर्शाता है। रुपया सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने सर्वकालिक निचले स्तर 84.11 पर बंद हुआ था।
इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.03 प्रतिशत की बढ़त के साथ 103.91 पर रहा। अंतर्राष्ट्रीय मानक ब्रेंट क्रूड 0.19 प्रतिशत की बढ़त के साथ 75.22 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर रहा। शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक विदेशी संस्थागत निवेशक सोमवार को बिकवाल रहे थे और उन्होंने शुद्ध रूप से 4,329.79 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।
बेशक भारतीय रुपया अपने ऑल टाइम लो यानि निचले स्तर पर आ गया है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सोमवार को रुपये में करीब 2 पैसे की गिरावट आ गई थी। दिनभर के कारोबार के बाद यह 84.11 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ। दरअसल 10 अक्टूबर के बाद रुपए में लगातार छोटी-बड़ी गिरावट हो रही है। इससे पहले 31 अक्टूबर को रुपया अपने सबसे निचले स्तर 84.08 प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ था। 10 अक्टूबर को डॉलर के मुकाबले यह 83.9685 के स्तर पर था। 17 अक्टूबर को डॉलर के मुकाबले यह 84.03 के स्तर पर आ गया था। भारतीय शेयर बाजार से इक्विटी निकासी यानि शेयरों की बिकवाली और अमेरिकी चुनाव के चलते रुपया में यह गिरावट देखने को मिल रही है। इस वजह से रुपया के मुकाबले डॉलर का प्रभाव और ज्यादा मजबूत हो गया है। इंट्रा-डे में रुपया 84.1225 के निचले स्तर पर पहुंच गया, जो डॉलर के मुकाबले सबसे निचला स्तर है। रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 84.1125 के स्तर पर खुला और ट्रेडिंग के दौरान एक समय 84.1225 के निचले स्तर पर पहुंच गया था। मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि रुपया आने वाले दिनों में 84.25 के सबसे निचले स्तर पर पहुंच सकता है।
यहां काबिले जिक्र है कि रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इंपोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी, तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाते थे। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 83.40 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे फीस से लेकर रहना और खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी। डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो उसे मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में इसे करेंसी डेप्रिशिएशन कहा जाता है। हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिजर्व होता है, जिससे वह इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन करता है। फॉरेन रिजर्व के घटने और बढ़ने का असर करेंसी की कीमत पर दिखता है। अगर भारत के फॉरेन रिजर्व में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर होगा तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं। फिलहाल रुपये का कमजोर होना चिंता की बात माना जा रहा है।
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