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मुद्दे की बात : पाक सीमा से प्रदूषण-घुसपैठ

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पाकिस्तान में पराली जलाने के मुद्दे पर स्टडी तक नहीं

पंजाब में प्रदूषण का एक बड़ा कारण पाकिस्तान से आने वाली हवाएं मानी जाती हैं, जो इस दिनों भारत की ओर बहती हैं। इसके अलावा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में पराली जलाने की घटनाएं भी बड़े पैमाने पर होती हैं, जिससे इस प्रदूषण में बढ़ोतरी हो रही है। भारतीय मौसम विभाग और पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार सर्दियों के मौसम में हवा का बहाव उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर होता है। जिसके चलते पाकिस्तान में जलाई जाने वाली पराली का धुआं भारतीय पंजाब और दिल्ली तक पहुंचता है और स्थानीय वायु गुणवत्ता को प्रभावित करता है।

दरअसल जिस जहरीली हवा में हम सांस ले रहे हैं, वही सीमा पार भी लोगों के जीवन को प्रभावित कर रही है। पिछले कुछ सालों से स्मॉग चिंता का विषय बना हुआ है। भारतीय और पाकिस्तानी दोनों ही इससे गंभीर रूप से प्रभावित हैं। इसका अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं कि पूरी दुनिया में सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली और लाहौर शामिल हैं। दोनों देशों में यह ज्वलंत मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। दोनों ने प्रदूषण से निजात पाने के लिए कृत्रिम तरीके भी अपनाए, लेकिन वे सफल नहीं हुए। पंजाब में पराली जलाने के मामलों की बात करें तो इस सीजन में अब तक 1,342 एफआईआर, 553 रेड एंट्री और किसानों पर 15.25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। जिसमें से 13.47 लाख रुपये वसूले जा चुके हैं। 15 सितंबर से अब तक दर्ज 1,995 पराली जलाने की घटनाओं में से राज्य में 1,734 घटनाएं देखी गई हैं। जिनमें से 86 फीसदी घटनाएं पिछले 18 दिनों में हुई हैं।

पाकिस्तान में भी हालात अच्छे नहीं हैं। पाकिस्तान में पराली जलाने की घटनाओं की जांच के लिए कोई ठोस अध्ययन तक नहीं किया गया। हालांकि अभी चार दिन पहले ही पाकिस्तान के पंजाब में 71 किसानों को गिरफ्तार किया गया और 182 शिकायतें प्राप्त हुईं। पाकिस्तान और भारत, दोनों ही पंजाब की सांसें घुट रही हैं। दरअसल, पाकिस्तान में ऐसा कोई अध्ययन नहीं है, जिससे पता चले कि स्थानीय पंजाब में कितने खेतों में पराली जलाई गई है। वहीं, आईआईटी दिल्ली के शहजाद गनी ने कहा कि प्रदूषण के लिए हम सिर्फ पराली को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। धान और गेहूं की कटाई के दौरान साल में दो बार पराली जलाई जाती है। जबकि सबसे ज्यादा असर अक्टूबर से फरवरी के बीच देखने को मिलता है। इसका एक बड़ा कारण मौसम भी है। बारिश के बाद जब मौसम बदलता है तो ठंडी हवा नीचे की ओर आती हैं।

ऐसे में प्रदूषित कण उत्तर भारत की ओर चले जाते हैं, जिससे उनका असर ज्यादा देखने को मिलता है। इसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि अगर बंद कमरे में कागज जलाया जाए तो दम घुटेगा, लेकिन अगर हम खिड़कियां खोलकर आग जलाएं तो इसका असर कम होगा। अगर पूरे साल का अध्ययन करें तो पराली के अलावा भी प्रदूषण के कई और कारण भी हैं। गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के प्रख्यात प्रोफेसर रंजीत सिंह घुम्मन ने हाल ही में अपने एक लेख में स्पष्ट किया कि प्रदूषण के लिए केवल पंजाब ही दोषी नहीं है। अक्टूबर आते ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एनसीआर और उसके आसपास के इलाकों में धान की पराली जलाने और उससे होने वाले वायु प्रदूषण को लेकर हो-हल्ला मच जाता है। विडंबना यह है कि पिछले कुछ सालों से यह आम बात हो गई है। पहले एनसीआर की वायु गुणवत्ता को प्रदूषित करने के लिए केवल पंजाब को ही दोषी ठहराया जाता था। लेकिन दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट में ही यह स्पष्ट हो गया कि दिल्ली में प्रदूषण का पंजाब की पराली से कोई लेना-देना नहीं है।

यह आसानी से भुला दिया गया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 के तहत, सीएक्यूएम को पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अलावा एनसीआर में वायु गुणवत्ता की निगरानी और प्रबंधन का अधिकार दिया गया है। हालांकि सीएक्यूएम अपना काम करने में विफल रहा है। यह 27 सितंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा मिली फटकार से स्पष्ट है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सुप्रीम कोर्ट बैंच ने कहा कि इस मुद्दे से निपटने के लिए एक भी समिति का गठन नहीं किया गया है। हर साल हम पराली जलाते हुए देखते हैं, जो सीएक्यूएम अधिनियम का पूर्ण गैर-अनुपालन दर्शाता है। बैंच ने आगे कहा कि सीएक्यूएम केवल मूकदर्शक बना हुआ है।

उधर, पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने पिछले साल दिसंबर, 2023 में यूएई की मदद से स्मॉग से निपटने के लिए एक प्रयोग किया था। दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक लाहौर में कृत्रिम बारिश हुई थी। इसमें क्लाउड सीडिंग प्रयोग की वजह से करीब 10 फीसदी इलाकों में बारिश हुई थी। तत्कालीन मंत्री बिलाल अफजल ने कहा था कि कृत्रिम बारिश के बाद एक्यूआई 150 पर आ गया था, लेकिन यह राहत सिर्फ 2-3 दिन के लिए ही थी। वहीं, अब जब लाहौर देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शीर्ष पर आ गया है तो पाकिस्तान सरकार एक बार फिर कृत्रिम बारिश कराने की योजना बना रही है। हालांकि इसमें लागत काफी ज्यादा आने का अनुमान है। वहीं, कुछ महीने पहले दिल्ली में भी एक प्रयोग किया गया था, लेकिन वह सफल नहीं रहा था। दोनों ही पंजाब में सरकारें सही विकल्प की ओर नहीं जा रही हैं। गरीब और छोटे किसान के लिए पराली जलाना सबसे आसान उपाय है। वे पराली निस्तार वाली मशीनें नहीं खरीद सकते। वहीं, अगर किसानों को नकद राशि दी जाए तो वे खुद पराली का प्रबंधन कर लेंगे। दूसरी ओर, पीएयू ने भी पराली प्रबंधन पर अभी तक कोई अध्ययन नहीं किया है। मशीनों के जरिए पराली को मिट्टी में मिलाया जाता है। पीएयू को इस बात का अध्ययन करना चाहिए था कि पराली को दफनाने से फसल की पैदावार पर असर पड़ता है या नहीं, हालांकि ऐसा नहीं किया जा रहा है। इसके साथ ही पराली से ग्रीन फ्यूल बनाने का भी कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।

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