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मूल्यों एवं सिद्धान्तों की प्रेरक दास्तान डॉ.एसएन सुब्बाराव

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कुमार कृष्णन

‘देश की ताकत नौजवान, देश की दौलत नौजवान,देश की हिम्मत नौजवान, देश की इज्ज़त नौजवान , नौजवान जिन्दाबाद यह नारा है प्रसिद्ध गांधीवादी डॉ. एसएन सुब्बाराव का। डॉ. एस एन सुब्बाराव नाम है उस व्यक्तित्व का जो आजीवन शांति के लिए,अमन के लिए और भाईचारा के लिए प्रयासरत रहे। वे राष्ट्रीय एकता के अग्रदूत के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध रहे।

मेरी उनसे पहली मुलाकात इसी कड़ी में हुई। 24 अक्टूबर 1989 को शुरू हुआ भागलपुर दंगा देश के इतिहास का बदनुमा दाग था। जिसे याद कर आज भी लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। तब सरकारी आंकड़े में पहले 1070 फिर बाद में 1161 लोगों के मारे जाने की बात कही गई। जबकि जस्टिस शमसुल हसन और आरएन प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार 1852 लोग मारे गए थे। डॉ एस एन सुब्बाराव का भागलपुर आगमन अमन के पैगाम को लेकर था। दंगाग्रस्त इलाकों में उनकी यात्राएं हुई। नुक्कड़ सभा हुई। सभा के अंत में बाल कवि बैरागी के लिखे गीत –

‘नौजवान आओ रे, नौजवान गाओ रे/ लो क़दम बढ़ाओ रे/ लो क़दम उठाओ रे / नौजवान आओ रे/एक साथ बढ़ चलो, मुश्किलों से लड़ चलो/

इस महान देश को नया बनाओ रे /धर्म की दुहाइयाँ, प्रांत की जुदाइयाँ/भाषा की लड़ाइयाँ, पाट दो ये खाइयाँ ‘ जब डॉ. एसएन सुब्बाराव गाते थे तो उनके मुख से गीत के बोल निकलते ही साथ के लोग डॉ. राव के स्वर में स्वर मिलाकर गीत को दुहराने लगते थे। इसके बाद नारा लगता-‘ जोड़ो जोड़ो भारत जोड़ो, नफरत छोड़ो।’

डॉ एसएन सुब्बाराव की भागलपुर यात्रा के साक्षी रहे हैं अनिल किशोर सहाय। वे उस दौर में भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय के क्षेत्रीय प्रचार निदेशालय के क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी थे। भागलपुर का नयाबाजार मुहल्ला दंगे से प्रभावित था। उनका कार्यालय नयाबाजार चौक पर था। उन्होंने सिर्फ खड़े होने की इजाजत मांगी और अपना अभियान प्रारंभ कर दिया। वे न सिर्फ भागलपुर आए, बल्कि सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावित गोधरा, कानपुर, अलीगढ़ अहमदाबाद, मुंबई , जयपुर गौहाटी ,बनारस, जम्मू आदि जगहों पर हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में सद्भावना और शांति का मरहम लगाया। आजीवन उन्होंने गांधी के विचारों का न सिर्फ प्रचार किया बल्कि उसे धारण किया और अपनी जीवन शैली और कार्यक्रमों के माध्यम से अभिव्यक्त किया जबकि गांधी के नाम पर नौटंकी कर लोग आत्ममुग्ध हैं। इसके ठीक उलट वे व्यक्तिगत प्रचार से दूर रहे।

वे गांधीवादी सिद्धांतों पर जीने वाले व्यक्तियों की श्रृंखला के प्रतीक पुरुष थे। उनका जीवन सार्वजनिक जीवन में शुद्धता की, मूल्यों की, गैरराजनीति की, आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने की या सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने के आदर्श मूल्यों की प्रेरणा था। सुब्बारावजी ने आठ दशक तक सक्रिय सार्वजनिक गांधीवादी जीवन जिया, उनका जीवन मूल्यों एवं सिद्धान्तों की प्रेरक दास्तान है। वे सदा दूसरों से भिन्न रहे। सार्वजनिक जीवन भी में बेदाग, विचारों में निडर,टूटते मूल्यों में अडिग, घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। रचनात्मक कार्यकर्ता बनाने का कठिन सपना गांधीजी का था, लेकिन सुब्बाराव ने रचनात्मक मानस के युवाओं को जोड़ने का अनूठा काम किया। उनके पास युवकों के साथ काम करने का गजब हुनर था। उनके इन्ही मूल्यों ने आकर्षित किया।

उनसे दूसरी मुलाकात वर्ष 1994 में हुई जब वे सद्भावना रेल यात्रा के दौरान भागलपुर आए थे। साथ में युवाओं की टोली। प्रवास के दौरान साईकिल यात्रा। अनेक कार्यक्रम। रामरतन चूड़ीवाला बताते हैं कि वे कहते थे –

‘युवा एक घंटा देह और एक घंटा देश सेवा मे लगाएं। दिग्भ्रमित युवाओं को रचनात्मक दिशा से जोड़कर हमें जागरूक जनता तक एकता की अहमियत का संदेश देने की आवश्यकता है। हमें युवाओं को आत्मविश्वासी बनाना है। ईश्वरीय प्रारूप में समस्त जन-अनुपम ऊर्जा के स्त्रोत हैं। आप गंदगी हटाने में, पड़ोसी निरक्षर को पढ़ाने में, एक पौधा लगाकर उसे पानी देकर आप राष्ट्र की सेवा में योगदान कर सकते हैं। हमारे रहते आसपास हिंसा न हो, कोई भूखा न सोया हो, नशा नाश की जड़ है इसलिए देश समाज नशा मुक्त हो, नशे की आदत को मालिक न बनने दें उस आदत को गुलाम बनाएं तथा भ्रष्टाचार पर पूर्णतः लगाम कसकर समाज को स्वर्ग बनाना संभव है।

युवाओं को राष्ट्र निर्माण के कार्य के प्रति सक्रिय करने के लिए उन्होंने 1970 में राष्ट्रीय युवा योजना की स्थापना की। इसी दौर में मध्यप्रदेश के मुरैना के जौरा में महात्मा गांधी सेवा आश्रम की स्थापना की। ये आश्रम उन्होंने शांति सेवा केन्द्र के रूप में स्थापित किया। रण सिंह परमार बताते हैं कि पचास-साठ के दशक में चंबल घाटी के खूंखार दस्युओं के आतंक से जहां सरकार परेशान थी, वहीं तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल पुलिस के जरिए इन पर शिकंजा कसने में लगे थे। लगभग रोज होने वाली मुठभेड़ में कभी डाकू मर रहे थे तो कभी पुलिसकर्मी शहीद हो रहे थे।

उस वक्त उन्हें लगा कि शायद सरकार का तरीका गलत है। हर रोज हो रही हिंसा जब देखी न गई तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से मिलकर उन्होंने गांधीवादी तरीके से दस्युओं को समझाने का एक मौका मांगा।

लोकनायक जयप्रकाश नारायण व आचार्य विनोबा भावे जैसी हस्तियों ने उन्हें प्रोत्साहित किया। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन के चार साल चंबल घाटी के दस्युओं के बीच ही बिताकर उन्हें महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित किया। डॉ. सुब्बाराव के प्रयास ही थे कि हिंसा से बदनाम हो चुकी चंबल घाटी के 654 खूंखार दस्युओं ने सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्य धारा में शामिल होने का फैसला किया। एक बार वे मध्य प्रदेश की चंबल घाटी में डाकुओं के बीच उन्हें समझाने गए थे। वहां डाकू आपस में ही लड़ पड़े। चारों ओर से गोलियां चल रहीं थीं। एकबारगी तो लगा किकहीं उन्हें ही कोई गोली न लग जाए।। इसी बीच एक गोली किसी अन्य आदमी को आकर लगी और वो गिर पड़ा। इस दिल दहला देने वाली घटना के बाद भी उन्होंने हौसला नहीं खोया, डाकुओं को सज्जन बनाने के लिए पूरे प्रयास किए। आखिरकार 1972 में महात्मा गांधी सेवा आश्रम में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की मौजूदगी में डाकुओं ने आत्मसमर्पण भी किया।अलग-अलग भागों में डाकुओं में युवा चेतना शिविर लगाकर बदलाव कर उन्हें आत्मसमर्पण के लिए राजी किया। कभी 50 तो कभी 20 लोगों का मन बदलता तो उनका सरकार के सामने आत्मसमर्पण करवा देते। आखिरी बार जब डाकुओं ने आत्मसमर्पण किया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उन्हें देखने के लिए पहुंची। इसी स्थल से राष्ट्रीय युवा योजना का जन्म हुआ। युवाओं के सैकड़ों प्रशिक्षण शिविर का गवाह है यह स्थल। यहीं से उन्होंने राष्ट्रीय सेवा योजना का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को दिया, जो स्वीकृत हुआ और

राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) भारत सरकार के एक कार्यक्रम के रूप में उभरा। यह युवाओं के व्यक्तित्व विकास के लिए चलाया जाता है।इस योजना के तहत, छात्र समाज के लिए काम करते हैं और समाज सेवा के गुण विकसित करते हैं।

पोशाक के लिहाज से वे भले जीवन भर खादी के हाफ पेंट और हाफ शर्ट पहनते रहे लेकिन विचारों और बर्ताव में वे पूरे गांधीवादी थे। उन्होंने गांधी और जयप्रकाश जैसा ही बेदाग जीवन जिया। उनके पूरे जीवन काल में किसी भी मुद्दे पर उन पर कभी कोई उंगली नहीं उठी और ना ही वे किसी आरोपों के घेरे में कभी आए। उनकी कथनी और करनी एक थी। उनके जीवन का एक एक पल पारदर्शी था।

सुब्बाराव का जन्म बेंगलुरू में 7 फरवरी 1929 को हुआ।उनका परिवार स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ा हुआ था। उनके पिता वकील थे। वे स्कूली जीवन से सामाजिक कार्यों से जुड़ गए थे। मल्लेश्वरम बंगलोर के रामकृष्ण वेदांत मंदिर में 10 वर्ष की उम्र से ही वे गीता और उपनिषद के भक्ति गीतों का गायन करते थे। बहुत कम उम्र में ही वे गांधी जी से प्रभावित हो गए थे और भारत छोड़ो आंदोलन ने कूद पड़े थे उसके बाद वे वापस कभी नहीं मुड़े। वे गांधी के बताए रास्ते पर चलते ही गए और चलते फिरते ही वे इस दुनिया से सदा के लिए चले गए। बहुत कम लोगों को इतनी लंबी जिंदगी जीने का मौका मिलता है।

महात्मा गांधी जी की प्रेरणा से उन्होंने खादी पहनना शुरू किया था। 9 अगस्त 1942 को ब्रिटिश विद्रोही नारे लगाने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। वे राष्ट्रीय कांग्रेस सेवा दल के सदस्य उसी समय बन गए और मजदूरों के क्षेत्र में उन्होंने प्रौढ़ शिक्षा केंद्र आरंभ किया। सन् 1948 में चित्रदुर्गा शिविर के दौरान वे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक नेता डॉ. हार्डिकर के संपर्क में आए। डॉ. हार्डिकर के कहने पर वे सन 1951 में अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल का काम करने दिल्ली आ गए। तब तक उन्होंने कानून की डिग्री हासिल कर ली थी। कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए पूरे देश में उन्होंने कैडर प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए। पंडित जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस के अन्य बड़े नेता उनकी संगठन कुशलता से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने सोवियत संघ, अफ्रीका,घाना सहित दुनियां के कई देशों में युवा प्रतिनिधि मंडलों का नेतृत्व किया। 1970 में ही उन्हें गांधी शांति प्रतिष्ठान का आजीवन सदस्य बनाया गया। वे गांधी शताब्दी समारोह की जनसंपर्क उपसमिति के सचिव नियुक्त हुए। गांधी दर्शन रेल की परिकल्पना डॉ. सुब्बाराव की ही थी। उन्हें इस परियोजना का निदेशक नियुक्त किया गया। 1979-1980 में यह रेल उनके निर्देशन में सफलतापूर्वक पूरे देश में गयी। विलक्षण प्रतिभा के धनी भाईजी संविधान द्वारा मान्य 18 भाषाओं में बात करने और गायन की क्षमता रखते थे।

फिर 1993-94-95, में उन्होंने भारत सरकार के सहयोग से सद्भावना रेल यात्रा आयोजित की जिसने भारत की हर दिशा में भ्रमण किया। देश के 26 प्रदेशों और कुछ बाहर के 4500 पुरुष और महिलाएं बारी-बारी से पूरे समय व अल्पकाल के लिए एक साथ रहे, जबकि उनकी भाषाएं, धार्मिक विश्वास, राजनीतिक विचार, सामाजिक परिपत्र में काफी भिन्नता थी। उनका मिशन था- प्रेम, मित्रता, सांप्रदायिक सद्भावना और शांति का संदेश फैलाना।

एक यायावार की तरह उन्होंने पूरे विश्व का भ्रमण किया। अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, कनाडा,सिंगापुर आदि देशों में उन्होंने गांधी युवा क्रान्तिकारी शिविरों का संचालन किया। 1960 में अफ्रीका में युवा सम्मेलन में भाग लिया। ‘सर्व धर्म विश्व संसद’ शिकागो में स्वामी विवेकानंद के भाषण के शताब्दी समारोह के मौके पर भाई जी ने1993 में वार्ता प्रस्तुत की। उन्होंने 1999 में दक्षिण अफ्रीका में हुए सर्वधर्म विश्व सांसद सम्मेलन में भी भाग लिया।

पद्मश्री से सम्मानित डॉ सुब्बा राव महात्मा गांधी पुरस्कार, जमनालाल बजाज पुरस्कार रचनात्मक कार्य, राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार,राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भावना पुरस्कार,विश्व मानवाधिकार प्रोत्साहन पुरस्कार, राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, राष्ट्रीय युवा पुरस्कार से पुरस्कृत किए जा चुके हैं।

पिछले साल जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर द्बारा चिरयुवा डॉ. एस. एन. सुब्बाराव (भाई जी) को मानद डॉक्टरेट उपाधि से सम्मानित किया गया। स्वतंत्रता सेनानी होते हुए भी उन्होंने कभी पेंशन की मांग नहीं की। उनकी हिम्मत की दाद देनी होगी कि उत्तरकाशी के भयंकर भूकंप में अपने 300 साथियों के साथ सहायता कार्य करते हुए कड़ाके की सर्दी में भी वे खादी के वस्त्र ही पहने रहे। वे आजीवन युवा शिविर आयोजित करते रहे। डॉ. एसएन सुब्बाराव जीवन भर अपनी सक्रियता से राष्ट्र की एकता अखंडता की अंतरधार को उष्मा देते रहे,वहीं उनसे प्रेरित होकर जुड़े युवा समूह शांति, प्रेम और राष्ट्र निर्माण के काम में लगे हुए हैं। 27 अक्टूबर 2021 को जयपुर में वे ब्रह्मलीन हो गए। उनको गुजरे तीन साल हो गए। स्व. सुब्बाराव की कर्मस्थली जौरा रहा है, यहां उन्होंने गांधी सेवा आश्रम की नींव रखी, जिसमें उनका समाधि स्थल बनाया गया है। उनकी तीसरी पुण्य तिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए देशभर के युवाओं का समागम होगा। जो भाई जी कामना शांति और सद्भावना के संदेश को पूरी दुनिया में फैलाएंगे।

(विनायक फीचर्स)

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