पंजाब 16 अक्टूबर। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि किराएदार को संपत्ति खाली करने के मकान मालिक के आदेश पर आपत्ति करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। खासकर जब मकान मालिक की संपत्ति की वास्तविक आवश्यकता साबित हो चुकी हो। यह फैसला लुधियाना के दो किरायेदारों द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनाया गया, जिसमें किरायेदारों ने बेदखली के आदेश को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि उन्हें वर्ष 1995 से पहले 700 रुपये मासिक किराये पर दो दुकानें किराये पर दी गई थीं। उन्होंने तर्क दिया कि इतने लंबे समय से वे वहां व्यवसाय चला रहे हैं, इसलिए उन्हें बेदखल करना अनुचित है। हालांकि, मकान मालकिन ने वर्ष 2010 में इन किरायेदारों को संपत्ति खाली कराने की मांग की थी। इसके पीछे मकान मालकिन ने कई आधार दिए थे। जिनमें प्रमुख कारण थे, किराये का समय पर भुगतान न होना, परिसर का निवास के लिए अनुपयुक्त और असुरक्षित हो जाना तथा दुकानों के उपयोग में परिवर्तन किया जाना। इसके अलावा, मकान मालकिन ने अपनी और अपने परिवार की वास्तविक आवश्यकता का हवाला देते हुए संपत्ति पर कब्जा पुनः प्राप्त करने की मांग की थी।
हाईकोर्ट का फैसला
किरायेदारों ने इस फैसले को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी। याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया कि मकान मालकिन की बेदखली की मांग अनुचित है और उनकी वास्तविक आवश्यकता का कोई ठोस आधार नहीं है। हाईकोर्ट ने इस मामले की गंभीरता से सुनवाई करते हुए सभी पक्षों के तर्कों का मूल्यांकन किया। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी संपत्ति के मालिक को अपनी संपत्ति की वास्तविक आवश्यकता होने पर उसे खाली कराने का पूरा अधिकार है। यह निर्णय मकान मालिक की जरूरतों को ध्यान में रखकर किया गया और किरायेदारों की याचिका को खारिज कर दिया गया।