सैकड़ों वार्ड अटेंडेंट पहले से ही हड़ताल पर हैं पीजीआई प्रशासन की केंद्र से हस्तक्षेप की मांग
चंडीगढ़ 15 अक्टूबर। पीजीआई में आउटसोर्सिंग पर तैनात हॉस्पिटल अटेंडेंट, किचन स्टाफ, सफाई कर्मियों और ऑफिस बियरर की हड़ताल से हालात खराब होने लगे हैं। ओपीडी में नए मरीज नहीं देखे गए, उन्हें इमरजेंसी में भेजा गया। वहां भी भर्ती मरीजों को छुट्टी देकर घर भेज दिया गया। ऐसे में हालात तब और बिगड़े, जब मंगलवार से रेसिडेंट डॉक्टर भी हड़ताल पर चले गए।
जानकारी के मुताबिक रेसिडेंट डॉक्टर ओपीडी में नहीं बैठेंगे और ना ही वैकल्पिक सर्जरी में भाग लेंगे। इससे फॉलोअप मरीजों का इलाज प्रभावित होगा, क्योंकि फैकल्टी के साथ रेसिडेंट डॉक्टर भी मरीजों का इलाज करते हैं। नए मरीजों की ओपीडी पहले से ही बंद है। एक साथ दो हड़ताल की स्थिति को देखते हुए पीजीआई ने सभी फैकल्टी की छुट्टियां रद कर दी हैं। सभी को ओपीडी में समय पर रिपोर्ट करने के लिए कहा गया है।
बताते हैं कि एक वरिष्ठ फैकल्टी ने कहा कि हम इस संकट की घड़ी में पीजीआई निदेशक के साथ खड़े हैं। कक्षा के समय सुबह 8 बजे रेसिडेंट डॉक्टरों की उपस्थिति दर्ज की जाएगी। जो लोग मौजूद नहीं होंगे, उन्हें अनुपस्थित माना जाएगा। पीजीआई प्रशासन ने हड़ताल पर जाने वाले डॉक्टरों के लिए नो वर्क-नो पे नियम लागू करने का फैसला किया है। पीजीआई के चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर विपिन कौशल के मुताबिक हड़ताल के दौरान पूर्व की तरह इमरजेंसी, ट्रॉमा और आईसीयू के सेवाएं चालू रहेंगी। ओपीडी में सुबह 8 से 10 बजे तक सिर्फ फॉलो ऑफ मरीजों का पंजीकरण होगा। नए मरीजों का पंजीकरण नहीं किया जाएगा। ऑनलाइन अपॉइंटमेंट भी रद रहेंगे। वैकल्पिक प्रवेश और वैकल्पिक सर्जरी भी स्थगित रहेगी।
वहीं, पीजीआई निदेशक प्रो. विवेक लाल ने कहा कि एक साथ हड़ताल से उत्पन्न अपार चुनौतियों के बावजूद हमारी प्राथमिकता रोगी की सुरक्षा, देखभाल और सेवा निरंतरता सुनिश्चित करना है। वहीं, रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन का कहना है कि उनकी मांगों को पूरा करने के लिए अगर तय समय पर कोई उचित निर्णय नहीं लिया गया तो वह अपनी कार्य योजना को आगे बढ़ाने के साथ इमरजेंसी सेवा भी रोकने को मजबूर होंगे।
दूसरी तरफ, पीजीआई प्रशासन ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की गुहार लगाई है। प्रशासन ने स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव को पत्र लिखकर कर्मचारियों के बकाया एरियर के भुगतान हेतु 30 करोड़ रुपए तुरंत जारी करने की मांग की है। यह मांग हाईकोर्ट द्वारा गठित हाई पावर कमेटी की सिफारिशों के आधार पर की गई है। जिसमें कर्मचारियों की लंबित मांगों को पूरा करने की बात कही गई थी।
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