दिल्ली के विस चुनाव पर भी पड़ेगा असर !
देश-दुनिया में हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के हफ्ते बाद भी सियासी-चर्चाएं जारी है। लोग वहां बीजेपी की जीत और कांग्रेस की हार तो समझ पा रहे हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी के चारों-खाने चित्त होने पर हैरान हैं। दरअसल आप ने करिश्माई-तरीके से दिल्ली और पंजाब में सत्ता पर कब्जा किया था। जहां उन्होंने बीजेपी, कांग्रेस और दूसरे दलों के दिग्गजों की बिछाई सियासी-बिसातों को फेल कर सबको चौंकाया था। अब उसी आप के राजनीतिक-चाणक्य आखिरकार हरियाणा में कैसे गच्चा खा गए ?
इससे पार्टी के भविष्य पर भी बड़ा सवालिया निशान लग गया। वाकई हरियाणा विधानसभा चुनावों में आप को ज़बरदस्त झटका लगा है। पार्टी को राज्य में दो प्रतिशत से भी कम मत मिले और पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल सकी। जिसके चलते आप की खासी फजीहत हो गई। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के धुआंधार प्रचार के बावजूद, हरियाणा में आम आदमी पार्टी के 88 में से 87 उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई। सिर्फ़ दो सीटों पर ही पार्टी उम्मीदवारों को 10 हज़ार से अधिक वोट मिल सके। यह तब है, जब केजरीवाल की जन्मभूमि भिवानी के सिवानी में है। केजरीवाल ने सूबे में दर्जनों रैलियां कीं और ख़ुद को ‘हरियाणा का लाल’ बताकर वोट मांगे। उनके साथ पंजाब के सीएम भगवंत मान ने भी मोर्चा संभाला, जिनकी ससुराल हरियाणा में ही है। यहां काबिलेजिक्र है कि दिल्ली की सत्ता पर 2013 से काबिज आम आदमी पार्टी ने पंजाब में दूसरा सियासी किला फतह करके वहां भी सरकार बनाई थी। ऐसे में केजरीवाल और मान तो पार्टी के सुपर-स्टार हैं। इसके बाद से पार्टी ने कई चुनाव लड़े और आप राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनी। फिर आखिर पार्टी से कहां और कैसे चूक हो गई।
सियासी जानकारों की मानें तो आप की करारी हार की एक बड़ी वजह इस बार हरियाणा के चुनाव में गठबंधन ना होना रही। दरअसल आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन के काफी प्रयास किए, लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर बात नहीं बनी। ऐसे में ओवरकांफिडेंट होकर या कहें कांग्रेस को चुनौती देने के चक्कर में पार्टी ने अकेले सभी सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए। इंडी अलायंस के इन दो पार्टनर के अलावा समाजवादी पार्टी भी यहां पर दो सीटों पर दावा कर रही थी, हालांकि कांग्रेस से उसकी भी बात नहीं बन पाई। बताते हैं कि कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता आप से गठबंधन के पक्ष में नहीं थे। हरियाणा की जनता ने आप को पूरी तरह से नकार दिया। दूसरी वजह भी साफ है कि जहां देशभर में फिर से कांग्रेस पार्टी मजबूत होती जा रही है, वहीं आम आदमी पार्टी का ग्राफ नीचे आता जा रहा है। अपने जन्म के साथ ही आम आदमी पार्टी ने ज्यादातर जगह कांग्रेस को ही सीधे नुकसान पहुंचाया। एक बात और जो साफ नजर आती है कि मुस्लिम वोटों का रुझान कांग्रेस पार्टी की ओर फिर से दिख रहा है। ऐसे में आप का मुस्लिम वोट भी कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो रहा है। अगले साल की शुरुआत में यानि कुछ ही महीनों में दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में आप के लिए इस प्रकार के नकारात्मक परिणाम पार्टी वर्करों के जोश को कम जरूर करेंगे। वहीं दिल्ली के सीएम पद से मजबूरी में हटे अरविंद केजरीवाल को देश में खास हमदर्दी नहीं मिल सकी। लिहाजा हरियाणा की जनता भी उनके इस इमोश्नल-दांव से प्रभावित नहीं हो सकी। रही-सही कसर भाजपा के रणनीतिकारों ने हरियाणा में चुनाव प्रचार के दौरान आप को इग्नोर कर कांग्रेस से सीधे मुकाबले का माहौल बना दिया। लिहाजा आप की तुलना में जजपा, इनेलो ही नहीं, यूपी से हरियाणा की तरफ रुख करने वाली बसपा को ज्यादा जवज्जो मिल गई।
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