लुधियाना, 08 अक्टूबर : परम पूज्य संत शिरोमणी श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज की असीम कृपा से पूज्य भक्त श्री हंसराज जी महाराज (बड़े पिता जी) के आशीर्वाद से पूज्य श्री कृष्ण जी महाराज (पिता जी) एवं पूज्य माँ रेखा जी महाराज की अध्यक्षता में ऋषि नगर लुधियाना में चल रहे “रामायण-ज्ञान-यज्ञ” के सांतवें दिन की सभा में पूजनीय श्री कृष्ण जी महाराज (पिता जी) एवं पूजनीय रेखा जी महाराज (माँ जी) ने परमपिता परमेश्वर को श्रद्धा सुमन अर्पित किये और सभी साधकों को नवरात्रों की बधाई दी व उन्हों ने हज़ारों की संख्या में देश विदेश से आये उपस्थित साधको को आशीर्वाद देते हुए सभी के सुख एवं समृद्धि की कामना की।
पूज्य श्री कृष्ण जी महाराज ने कहा रामायण का परायण चल रहा है। परमेश्वर का आह्वान हो रहा है। हर ओर आनंद ही आनद है। जप यज्ञ, रामायण ज्ञान यज्ञ और सेवा का यज्ञ, तीन यज्ञ चल रहें हैं। नवरात्रों के शुभ दिन हैं। पावन वायु मंडल है, पावन धरती है, पावन तरंगे आसपास चल रही हैं। यह तरंगे इन दिनों में बहुत शक्ति शाली होती है, क्योंकि नवरात्रों के दिनों में सभी जगह रामायण का परायण होता है। इन तरंगों का लाभ उसी को होगा जो नवरात्रों के दिनों में रामायण को मंदिर मान उस का परायण करेगा। बस फर्क इतना ही है। जिसकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। जिनके मन में भाव है, उनको आनंद की अनुभूति हो रही है, क्योंकि महाराज ने कहा है, राम जाप दे आनंद महान, मिले उसे जिसे दे भगवान।
पिता जी ने कहा,कहते हैं राम जी का वनवास नहीं होता तो असुरों का नाश नहीं होता, अगर सीता का हरण नहीं होता तो रावण का मरण नहीं होता। पापी को मारने के लिए उसका पाप ही काफी होता है। छत पर जब पाप का बोझ बहुत बढ़ जाता है तो वह अपने वजन से खुद ही गिर जाती है।
लोग पूछते हैं जब बहुत बड़ी मुसीबत आने वाली हो, कष्ट की घड़ी आने वाली हो तो क्या उसकी कोई निशानी भी होती है? हां! होती है। जब दिन उल्टे आने होते हैं, तो बुद्धि ज्ञान दोनों ही गोता खा जाते हैं। जब कष्ट घड़ी जाती है, तो काल विपरीत बन जाता है। दिन उल्टे हो जाते हैं। आंखें धोखा खाने लग जाती हैं। जो कल तक अपने थे, प्यारे थे, दिल जान देने वाले थे, वह दुश्मन लगने लग जाते हैं, और जो आपको धोखा दे रहे हैं, छली है, कपट वाले हैं, वह अपने लगने लग जाते हैं और जो अपने थे वह बेगाने लगने लग जाते। तो यह बुरे दिनों की निशानी है। जीवन में जब अंधेरी रात आ जाए, घोर दुखड़े आ जाए तो घबराना नहीं चाहिए, हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए। कोई काम न भी बने तो धैर्य रखना है ,आज नहीं तो कल काम अवश्य बन जायेगा। हमें आशावान रहना है। कभी आस नहीं छोड़नी।
महाराज जी ने कहा हमें इन दिनों व्रती बनना है। व्रती का अर्थ ये नही की, ये नही खाना, वो नहीं खाना। व्रती का अर्थ है वहम नही करना, क्रोध नही करना, भय नही करना, चिंता नहीं करना क्योंकि ”
जिस नैया के राम खावईया, वो नय्या फिर क्यों डोले।”
“दीनाबन्धु दीना नाथ, लाज मेरी तेरे हाथ।” हमारी लाज तो प्रभु के हाथ है फिर हमें किस बात की चिंता।
रामायण ज्ञान यज्ञ में आज आरण्यकाण्ड को पूर्ण किया गया और किष्किन्धा काण्ड को आरम्भ किया गया।
पूज्य पिता जी महाराज जी ने कहा
मारीच रावण को कहता है की
राम से बैर असुर वंश का नाश करवा देगा। यदि तुम अभी नही रुके तो समझ लो जिन का तू राजा है उन का अंतिम काल आ गया है। रावण के न मानने पर मारीच रावण के साथ रथ में सवार हो राम जी की कुटिया के पास आ जाता है। वह सोने के हिरण का रूप धर राम जी की कुटिया के आगे घूमने लगता है। सीता जी उसे देख राम जी को उसे पकड़ने को भेजती है। लक्ष्मण जी राम जी को कहतें हैं कि उन्हें यह असुर माया लगती है, यह जो दिख रहा है यह आंखों का धोखा है। राम जी लक्ष्मण जी बात न मान
हिरण के पीछे जाते है।
विषम दिवस जिस जन के आते,
मनन ज्ञान उस के छुप जाते।
काम विवेक विचार न देते,
उलटे पड़ते पासे जेते।।
जब होना हो उलटा होना,
सूझे आध न पूरा पौना।
घटना घटिका घोर घिराती,
मोह-घटा मति पर छा जाती।।
राम जी जब उसे पकड़ नही पाते तो उसे तीर से मार डालते है। मारीच मारने से पहले राम जी के ऊंचे स्वर में हा लक्ष्मण हा सीते रानी कह कर मर जाता है। राम जी समझ जाते है कि उन से धोखा हुआ है। सीता जी राम जी को मुसीबत में समझ लक्ष्मण जी को जाने को कहती है। लक्ष्मण जी कहते है माँ यह किसी असुर की माया है। राम जी का कोई बाल भी बांका नही कर सकता। सीता जी उन्हें उलाहने देने लगती है। सीता जी की कटु वाणी सुन लक्ष्मण जी तड़प उठते हैं और राम जी ढूंढने चल पड़ते हैं।
हानि जब होनी हो तब,
मति पर छाता मोह।
माह मुग्ध बन मन तभी,
करे मित्र से द्रोह।।
कष्ट-घड़ी आती जभी,
काल बने विपरीत।
शंका हो स्व-सुजन में,
शत्रु लगे निज मीत।।
लक्ष्मण जी के जाते ही रावण विप्र का वेश धर सीता जी के पास आता है और उनका हरण कर अपने विमान में बिठा लंका की ओर चल पड़ता है।
जग में होते छल बल जेते,
जो जन जिसको धोखा देते।
वेश वचन से बन बहु नीके,
करते कर्म कुटिल कटु फीके।।
सीता जी का रुदन सुन रास्ते में जटायु सीता जी की रक्षा करने के लिए रावण से युद्ध करता है परंतु रावण उस का वध कर देता है। पम्पा वन को लांघते हुए गिरी शिखर पर पांच लोगों को बैठे देख सीता जी अपने आभूषण उतार कर एक पोटली में डाल नीचे फेंक देती है। रावण को इस का पता नही चलता। उन आभूषणों को उठा कर उन पांचों ने सुरक्षित स्थान पर रख लिये, पर वह वायु मार्ग से जा रही रोती नारी को पहचान नही पाते। रावण सीता जी को लेकर सागर पार कर लंका पहुंचता है। वह सीता जी को कहता है वह उस की रानी बन जाए नही तो वह उन्हें मार डालेगा। सीता जी मना के देती हैं, तो रावण अपनी सेविकाओं को सीता जी को सुधारने, समझाने लिए कह चला जाता है।
उधर लक्ष्मण जी ढूंढते हुए राम जी को मिलते है। राम जी उनसे सीता जी को अकेला छोड़ आने का कारण पूछते है तो लक्ष्मण जी सीता जी द्वारा कहे कटु वचनों का बताते हैं, तो राम जी समझ जाते है कि कुछ अनहोनी हो गई है। वह शीघ्र कुटिया पर आते हैं वहां सीता जी को न पा घबरा जाते हैं और विलाप करने लगते है।
महाराज जी ने कहा ब्रह्म चारी कौन होते हैं-
पत्नी-परायण जो घरबारी,
संयम शील धर्म के धारी।
चाहें नहीं अपर की नारी,
कहे वे गये ब्रह्म-चारी ।।
राम जी सीता जी को कुटिया में न पा कर विलाप करते हुए कहते हैं कि निश्चय से मैंने तन्मय को कर कोई पाप किये हैं जिन के फल बारी बारी आ मुझे भारी दुख दे रहे हैं। पहले मुझे वनवास मिला फिर पिता का देहांत हो गया और अब सीता का हरण हो गया। इस पर लक्ष्मण जी राम जी शोक तजने को कहते हैं और उन्हें उत्साहित करते है।
उत्साह साहस मन में लाओ,
सिया-खोज में ही लग जाओ।
जो जन जग में हो उत्साही,
उनको दुष्कर काम न भाई।।
उत्साह है बलवान बताया,
उत्साह में बल सभी समाया।
उत्साह सब को सफल बनाता,
उत्साहवान् नही घबराता।।
लक्ष्मण के वचनों को सुनकर मन में धैर्य धार कर राम जी सीता जी को ढूंढने लगते हैं। कुछ दूर उन्हें लहूलुहान जटायु मिलता है। वह उन्हें सीता जी के रावण द्वारा हरण का बताता है और अपने प्राण त्याग देता है। राम जी अपने हाथों उस का दाह संस्कार कर आगे चल पड़ते है और रास्ते कबन्ध नामक असुर उन्हें पकड़ लेता है राम जी अपनी खड्ग से उसकी भुजा काट देते हैं। उस समय उस में सुमति व्याप जाती है और वह सीता जी को पाने के लिए उन्हें सुग्रीव जी, जो अपने भाई बाली द्वारा राज्य से निकले जाने के बाद ऋष्यमूक गिरि पर रहते थे को मिलने को कहता है। वह अपने प्राण त्याग स्वर्ग सिधार जाता है। राम जी उसकी देह दहन कर लक्ष्मण जी सहित पम्पा वन को चल पड़तें हैं।
पर तुम्हें यह हूँ मैं बताता,
सिया-मिलान की युक्ति सुनाता।
सम दुखिया जन से मिल जाना,
सन्धि प्रेम से काम बनाना।।
पिता जी ने कहा हमें आशा नहीं छोड़नी चाहिए, मनोबल को गिरने नहीं देना है। जब दुख में हो तब सम दुखी मिल जाये, तो ऐसा साथी मिल जाने पर सब कार्य आसानी से पूरे हो जाते हैं।
राम जी कबन्ध की देह दहन कर वन उपवन देखते हुए सुग्रीव से मिलने चल पड़ते है। वह पम्पा वन पहुंचते हैं। वहाँ उन्हें मतंग ऋषि की सुशिष्या शबरी मिलती है। राम जी उस से उसका कुशलक्षेम पूछतें हैं। वह कहती है, हे राम! आप के दर्शन से मेरे सभी मनोरथ सिद्ध हो गये हैं। आज मेरा उद्धार हो गया है। शबरी उन्हें वन बेरों का भोग लगाने को कहती है। वह चख कर मीठे बेर राम जी को देती है। राम जी बड़ी रुचि से बेर खा कर शबरी को कहते हैं कि उन्होंने ऐसे रसीले फल कभी नही खाये। वहां से चल वह ऋष्यमूक पर्वत के तलेटी के पास पहुंचते है। इसी पर्वत पर सुग्रीव का निवास था। वह अस्त्र शस्त्र युक्त दो वीर देख कर, अपने सचिव हनुमान जी को उन के पास भेजता है। हनुमान जी भिक्षु का वेश धर उनके पास पहुंचतें हैं और उन से उन का परिचय और वहाँ आने का कारण पूछतें हैं। राम जी उसे अपना और लक्ष्मण जी का परिचय देते हैं और सीता जी के हरण और उसे ढूढ़ने का बताते हैं। हनुमान से उन्हें सच्चे मान अपने असली रूप में आ सुग्रीव जी से मिलाते हैं और उन में मित्रता करवा देते हैं। राम जी कहतें हैं, पहले हम चार भाई थे अब तुम्हें मिला हम पाँच हो गए हैं। सुग्रीव जी राम जी को कहते है अब आपके दुख सुख मेरे हो गए हैं। अब आप पत्नी अपहरण की अधिक चिंता न कीजिए। मैं उन्हें नभ पाताल से खोज लायुगा। सुग्रीव जी उन्हें नभ पथ से एक भयंकर असुर संग रोती हुई जा रही एक नारी जो राम लक्ष्मण पुकार रही थी और अपने भूषण गिरा रही थी, का बताते हैं और उस के द्वारा फेंकी आभूषणों की पोटली राम जी को दिखाते है। राम जी उन्हें हाथ में लेकर अश्रु बहाने लगतें है और उन्हें पहचान नही पाते। वह लक्ष्मण जी को उन गहनों को पहचानने के लिए कहतें हैं। लक्ष्मण जी माता सीता के नूपुर पहचान लेते है। सुग्रीव जी राम जी को कहतें है जिस ने सीता जी का हरण किया है मैं उस के कुल और धाम को नही जानता। परंतु आप चिंता न करें मैं उस को ढूंढ कर उस का वध कर दूँगा।
पूज्य श्री रेखा जी महाराज (माँ जी) द्वारा श्री रामायण जी का गायन अद्धभुत था। उनके द्वारा गाये भजन को सुन सभी साधकों भाव विभोर हो गए। सभी साधकों ने माँ जी के साथ लयबन्ध हो रामायण जी का परायण किया।
पूज्य श्री रेखा जी महाराज (माँ जी) द्वारा द्वारा गाये भजन “मेरी झोपड़ी दे भाग अज जाग जानगे, राम आन गे” सुन सभी साधकों को भाव विभोर हो गए।
*पूज्य श्री कृष्ण जी महाराज (पिता जी) ने प्रेरणा देते हुए कहा की यज्ञ के कुछ दिन शेष है। आप सभी अपने भाई बंधुओ को और मित्रों को 10 अक्टूबर, वीरवार को सुबह और शाम दोनों बैठको में “श्री सुन्दरकाण्ड” जी के पाठ का निमंत्रण दें।*
*पूज्य पिता जी महाराज ने कहा कि वैसे तो सारी रामायण ही ज्ञान का सागर है, सुंदरकांड की इसमें विशेष महत्ता है। जो निराशा से साथ आरम्भ होता है और आशा के साथ पूर्ण होता है। इसलिए जो भी आज तक नहीं आए वो भी इस दिन जरूर आएँ और सुंदरकांड जी का पाठ का आशीर्वाद ले।*
सत्संग में शहर के गणमान्य व्यक्तियों, एम एल ए श्री अशोक पराशर पप्पी, ए सी पी सरदार गुरदेव सिंह, इंस्पेक्टर सरदार राजिंदर सिंह चौधरी, श्री रमेश जोशी, श्री वरिंदर जैन, श्री मति नीना सोनी, श्री मति किरण गर्ग, इत्यादि ने भी शामिल हो कर महाराज एवं गुरुजनों का आशीर्वाद प्राप्त किया।