हरियाना /यूटर्न/2 अक्तूबर: विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हरियाणा में लाडवा सबसे ज्यादा चर्चित सीट है, क्योंकि सूबे के मुखयमंत्री नायब सिंह सैनी पहली बार इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इससे पहले वह 2014 में पैतृक सीट नारायणगढ़ से जीतकर मनोहर सरकार-पार्ट वन में राज्य मंत्री बने थे। मई 2024 में हुए उपचुनाव में उन्होंने करनाल सीट से जीत दर्ज की और भाजपा ने उन्हें पूर्व सीएम मनोहर लाल के पद छोडऩे के बाद मुखयमंत्री बनाया। अब लाडवा तीसरा विधानसभा हलका है, जहां से वे किस्मत आजमा रहे हैं। नायब सैनी हरियाणा भाजपा में ओबीसी का बड़ा चेहरा माने जाते हैं। हालांकि पांच माह पूर्व उपचुनाव उन्होंने पंजाबी बहुल सीट करनाल से जीता था, मगर मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य को भांप कर भाजपा हाईकमान ने सीट बदलते हुए उन्हें ओबीसी बहुल लाडवा से चुनावी रण में उतारा है। लाडवा में जीत अब न केवल मुखयमंत्री, बल्कि भाजपा के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बन चुकी है। इसीलिए वरिष्ठ भाजपा नेताओं के दौरे लगातार चल रहे हैं। सैनी की जीत के लिए गृह मंत्री अमित शाह, नितिन गडकरी और मनोहर लाल सरीखे बड़े नेता ताकत झोंक चुके हैं। खुद सीएम और उनकी पत्नी घर-घर जाकर संपर्क कर रहे हैं। कुछ बड़े नेताओं की रैलियां अभी प्रस्तावित हैं। उधर, सीएम के समक्ष मुखय प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के निवर्तमान विधायक मेवा सिंह दोबारा जीत के लिए रण में हैं। उनके लिए पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, उनके सांसद बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश अध्यक्ष उदयभान पूरा जोर लगा रहे हैं। यहां रैलियों और जनसभाओं का दौर जारी है। मंचों से स्थानीय मुद्दे उछालने के साथ लंबित पड़ी घोषणाओं को भी सिरे चढ़ाने की बात कही जा रही है। सैनी और उनकी पत्नी सुमन गांवों में नुक्कड़ सभाएं तक कर रहे हैं। इनमें वे भाजपा सरकार 10 साल-बेमिसाल व बिना खर्ची-पर्ची के नौकरी देने की बात करते हुए जनता के समक्ष कांग्रेस काल में हुए भ्रष्टाचार का मुद्दा रख रहे हैं। उधर, कांग्रेस बदलाव की बात करते हुए किसान, मजदूर, पहलवान, कर्मचारी और कारोबारियों की उपेक्षा के मुद्दों को भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही। कांग्रेस महंगाई और बेरोजगारी पर भी सरकार की घेरेबंदी कर रही है।
लडवा के नतीजों को सबसे ज्यादा प्रभावित बिरादरियों की बैठकें करेंगी। राजनीतिक मामलों के जानकार पूर्व प्राचार्य रमेश बंसल बताते हैं कि मुकाबला आमने-सामने का है। लेकिन, सीएम के उंमीदवार होने से भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है। बिरादरियों की भूमिका अहम रहने वाली है। भले ही यह ओबीसी बहुल सीट है, मगर जाटों की संखया भी कम नहीं है। इसके अलावा एससी, ब्राह्मण और वैश्य समाज के मतदाता भी अच्छा प्रभाव रखते हैं। उन्होंने बताया कि इस वक्त यहां हर गांव में बैठकें कर दलों की ओर से बिरादरियों को साधने का काम जोरों पर चल रहा है, मगर अभी वोटर चुप्पी साधे हुए हैं।
जातीय और सियासी समीकरण
वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद कुरुक्षेत्र की थानेसर सीट से अलग होकर लाडवा हलका वजूद में आया। यहां 35 से 37 प्रतिशत के साथ सर्वाधिक प्रभावशाली मतदाता ओबीसी माना जाता है। इन्हीं में करीब 20 फीसदी से अधिक मतदाता सैनी समाज से हैं। 18 से 20 प्रतिशत जाट और 11 प्रतिशत से अधिक ब्राह्मण मतदाता हैं। अनुसूचित जाति का लगभग 15 प्रतिशत वोट बैंक है। नौ प्रतिशत कश्यप समाज समेत शेष अन्य बिरादरियों के मतदाता हैं। अबकी बार चुनाव में भी जातीय समीकरण ही हावी रहेंगे। कुल 16 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा व कांग्रेस के अलावा इनेलो-बसपा गठबंधन ने जाट बिरादरी से सपना बड़शामी को दोबारा मौका दिया है। सीएम के अलावा तीन अन्य सैनी प्रत्याशी अशोक सैनी, सुभाष सैनी व विक्रम सिंह सैनी भी हैं।
जाट व ओबीसी के हाथ जीत की चाबी
क्षेत्र के दो समाजसेवी विक्रम सिंह चीमा और संदीप गर्ग भी बतौर निर्दलीय मैदान में हैं। संदीप गर्ग भाजपा के बागी हैं और वैश्य समाज से ताल्लुक रखते हैं। इसलिए वे भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसी तरह चीमा का कांग्रेस के वोट बैंक में अच्छा प्रभाव है और वे उसके लिए वोट कटवा साबित हो सकते हैं। यहां जीत की कुंजी जाट व ओबीसी वोटर के हाथों में ही है।
मुद्दे
लाडवा के ओम प्रकाश व राम ईश्वर बताते हैं कि दो बार मंजूर होने के बाद भी बाईपास पर बरसों बाद भी इस पर कोई काम नहीं हुआ। सिमरन गर्ल्स कॉलेज न होने का मुद्दा उठाती हैं। लाठी धनौरा गांव के ओमप्रकाश, माया रानी, मीना और सरोज कहते हैं कि सडक़ों, नालियों की हालत खराब है। जल निकासी के इंतजाम नहीं हैं।
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कुरुक्षेत्र में दिग्गजों का शोर… बिरादरी का जोर, प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहे सैनी
Kulwant Singh
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