हरियाना /यूटर्न/1 नवंबर: हरियाणा के करनाल जिले के चिड़ावा ब्लॉक के घोघड़ीपुर गांव की छतों पर विशालकाय मूर्तियां दूर से दिख जाएंगी। जो शायद यहां के बाशिंदों की उन विदेशी उड़ानों की ओर संकेत करती है, जो कि खतरनाक डंकी रूट्स लेकर सात समंदर पार जाते हैं। बीती 20 सितंबर को सुदेश और उसके परिवार को भनक तक ना लगी कि सुबह सुबह राहुल गांधी घर से सटे अमित नाम के युवक के घर आए थे। वो बताती हैं कि किसी को समझ ही नहीं आया हुआ क्या, वो कब और कैसे आए। जब वो जाने लगे तो पता चला कि पड़ोस में राहुल गांधी आए थे। दरअसल राहुल गांधी यहां अमेरिका में सडक़ हादसे में घायल हुए अमित के घरवालों से मिलने आए थे। अमित डंकी रूट से अमेरिका पहुंचा था और राहुल गांधी ने उससे वादा किया था कि वो उसके परिजनों से मिलेंगे। खुद 42 साल की सुदेश के दोनों बच्चे डंकी रूट से अमेरिका गए हुए हैं। वो कहती हैं कि दो साल हो गए हैं बेटे को देखे। हमारे पास बहुत थोड़ी सी जमीन थी, लेकिन 12वीं करने के बाद गांव के दूसरे लडक़ों की ही तरह हमने भी बेटे को वहां भेज दिया। मेक्सिको के रास्ते अमेरिका पहुंचने वाले उस बैच में 20 और लोग शामिल थे। वो बताती हैं कि बेटा कैलिफोर्निया में छह घंटे एक स्टोर में काम करता है, हाथ में 14 डॉलर आते हैं, लेकिन जनवरी से उसने घर भी पैसे नहीं भेजे हैं। अपने सफेद चमकीले फर्श को ओर ताक कर सुदेश कहती हैं कि ये बेटे के भेजे पैसों से बनवाया था और अब तो 2 साल हो गए उसे देखे। वो एक बार भी वापस नहीं आय़ा। वो कहता है कि परमानेंट होकर ही वापस आएगा। दरअसल चार हजार वोटों वाले इस गांव के करीब 1200 युवा बाहर यानि विदेश में हैं, यानि हर घर से एक युवक अमेरिका या दूसरे देशों में है। हाल ऐसा है कि जिन लोगों के पास थोड़ी जमीन है वो भी बेच कर बच्चों को डंकी रूट से बाहर भेज रहे हैं।
अंतिम संस्कार के लिए भी कोई नहीं बचेगा
सुदेश के घर के बाहर कुछ लोग ताश खेल रहे हैं। उनमें एक शमेशर सिंह बताते हैं इनमें ज्यादा तादाद अमेरिका जाने वालों की है। कुछ न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी हैं। वहीं सुखबीर मान कहते हैं कि इस इलाके में रोजगार का संकट है। जमीन के हिस्से इतने छोटे हैं कि उससे रोजी-रोटी नहीं चलती। बेरोजगारी इसमें बड़ा मुद्दा है, लेकिन कुछ सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियोज़ देखकर भी विदेश जा रहे हैं, जिनमें बाहर की लाइफ स्टाइल दिखाई जाती है। यहां बड़ा मुद्दा रोजग़ार ही है। लोग कहते हैं कि बाहर जाने का पैटर्न पिछले हाल के चार पांच साल में ज्यादा बढ़ा है। इलाके के कुछ बुजुर्गों ने हमसे कहा कि ऐसे दिन भी आ जाएंगे जब अंतिम संस्कार के लिए भी कोई नहीं बचेगा।
क्यों विदेश जा रहे बच्चे
करनाल शहर के 54 साल जयबधवान शर्मा बताते हैं कि 10 वीं करने के बाद युवा बच्चे ना एलएलबी करने का सोचते हैं और ना कुछ और, वो बाहर जाना चाहता है। मां बाप तंग होते हैं और ऐसा अब गांवों ही नहीं शहरी इलाके में भी देखने को मिल रहा है, रोजगर नहीं बढ़े, भर्तियां बहुत कम हुई हैं।
सीएम सैनी की सीट बदलने पर भी चर्चा
दो-दो मुखयमंत्री देने वाली करनाल सीट का शुमार हमेशा हॉट सीट में रहा है। इस बार ऐन चुनाव से पहले मुखयमंत्री नायाब सिंह सैनी को करनाल से कुरूक्षेत्र भेजने का मामला चर्चा के केंद्र में था। वोटरों में इसे लेकर जिज्ञासा तो देखने को मिल रही है। करनाल शहर की मेन मार्किट में पगड़ी हाउस का बिजनेस चलाने वाले 36 साल बंटी बेदी कहते हैं कि कोई भी उंमीदवार अच्छा हो तो, उसके साथ ऐसा होता है। लोगों में इस बात का दुख है उन्हें वहां भेज दिय़ा गया ।
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