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मुद्दे की बात : भारतीय राजनीति में परिवारवाद

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परिवारवाद के हमाम में कमोबेश सभी दल….

भारतीय राजनीति में परिवारवाद को कतई नकारा नहीं जा सकता है। ऐसा भी नहीं कि देश के किसी एक खास हिस्से में परिवारवाद का बोलबाला हो। उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत की राजनीति में परिवारवाद हावी है। नया ‘कीर्तिमान’ अब तमिलनाडु में स्थापित हो गया। इस राज्य के सीएम एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन जब डिप्टी सीएम पद की शपथ ले रहे थे तो एक बार फिर परिवारवाद की चर्चा तेज हो गई।

गौरतलब है कि नवभारत टाइम्स समेत तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में एक बार फिर स्टालिन-प्रकरण के बहाने राजनीति पर हावी होते परिवारवाद को लेकर चर्चा शुरु हो गई। यहां बता दें कि तमिलनाडु में उदयनिधि स्टालिन पहले से ही मंत्री थे और ऐसा भी नहीं है कि डीएमके पर परिवारवाद के आरोप पहली बार लगे हैं। अब एक ही राज्य में पिता सीएम और बेटा डिप्टी सीएम। हालांकि यह किसी एक दल की बात नहीं, लेकिन क्षेत्रीय दलों की ओर नजर दौड़ाने पर ऐसा लगेगा कि यहां परिवारवाद काफी हावी है। बंगाल, बिहार,झारखंड, यूपी, हरियाणा, तमिलनाडु, आंध्र, महाराष्ट्र समेत ऐसे कई और राज्य हैं जहां परिवारवादी पार्टियों का बोलबाला है। यहां एक ऐसी राजनीति प्रथा दिखेगी, जहां राजनीतिक सत्ता एक परिवार से दूसरे परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है।

मसलन, तमिलनाडु में डीएमके, कर्नाटक में जेडीएस, तेलंगाना में बीआरएस, आंध्र में टीडीपी, यूपी में सपा और लोकदल, बिहार में आरजेडी, झारखंड में जेएमएम, पश्चिम बंगाल में टीएमसी, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी, जम्मू में पीडीपी और नेशनल कॉफ्रेंस, हरियाणा में चौटाला परिवार,पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, ओडिशा में बीजेडी, कांग्रेस में परिवारवाद के साथ ही मोदी कैबिनेट में भी कुछ चेहरे नजर आए जाएंगे। उदयनिधि स्टालिन के बेटे हैं और परिवार के तीसरी पीढ़ी के नेता हैं। दक्षिण के बड़े नेता रहे करुणानिधि ने स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। अब स्टालिन के बेटे उदयनिधि उस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए नजर आ रहे हैं। बीजेपी इसे पूरी तरह वंशवाद बता रही है। बीजेपी की ओर से कहा गया कि यह लोकतंत्र या वंशवाद। बीजेपी की ओर से तंज कसते हुए कहा गया कि ये पार्टियां परिवार के लिए और परिवार द्वारा हैं। वे एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हैं।

काबिलेजिक्र है कि दिग्गज समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि जिसमें नेतृत्व क्षमता हो वो आगे आएं और राजनीति में वंशवाद की कोई जगह नहीं। देश की आजादी के इतने वर्षों बाद भी परिवारवाद की जड़ें मजबूत और गहरी होती चली गईं है। किसी एक एक दल की बात नहीं कांग्रेस पर सवाल खड़े करने वाली बीजेपी भी इससे अछूती नहीं। अलग-अलग जातियों और पिछड़े लोगों के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टियां भी विरासत परिवार को ही सौंपते हैं। परिवारवाद पर पीएम मोदी काफी आक्रामक नजर आते हैं। उनकी ओर से कांग्रेस पर इसको लेकर खास तौर पर निशाना साधा जाता है। हालांकि विपक्षी दल भी कई नेताओं के नाम बीजेपी में गिनाते हैं। हालांकि राजनीतिक के कई जानकारों का कहना है कि बीजेपी में शायद ऐसा संभव नहीं जैसा दूसरे दलों में हो जाए। राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी इनमें से कोई हारता भी है तो उन्हें पार्टी या पद से हटाया नहीं जा सकता लेकिन बीजेपी में शायद ऐसा संभव नहीं।

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