विवेक रंजन श्रीवास्तव
कुत्ते की वफादारी और कटखनापन जब अमिधा से हटकर, व्यंजना और लक्षणा शक्ति के साथ इंसानों पर अधिरोपित किया जाता है तो व्यंग्य उत्पन्न होता है।मुझे स्मरण है कि इसी तरह का एक प्रयोग जबलपुर के विजय जी ने “सांड कैसे कैसे” व्यंग्य संग्रह में किया था, उन्होंने सांडो के व्यवहार को समाज में ढ़ूंढ़ निकालने का अनूठा प्रयोग किया था। पाकिस्तान के आतंकियो पर मैंने भी “ “मेरे पड़ोसी के कुत्ते” लिखा, जिसकी बहुत चर्चा व्यंग्य जगत में रही है। कुत्तों का साहित्य में वर्णन बहुत पुराना है, युधिष्ठिर के साथ उनका कुत्ता भी स्वर्ग तक पहुंच चुका है।काका हाथरसी ने भी लिखा था..
पिल्ला बैठा कार में, मानुश ढोवें बोझ
भेद न इसका मिल सका, बहुत लगाई खोज
बहुत लगाई खोज, रोज़ साबुन से न्हाता
देवी जी के हाथ, दूध से रोटी खाता
कहँ ‘काका’ कवि, माँगत हूँ वर चिल्ला-चिल्ला
पुनर्जन्म में प्रभो! बनाना हमको पिल्ला
हाल ही पाकिस्तान के एक मौलाना ने बाकायदा नेशनल टेलीविजन पर देश के आवारा कुत्तों को चीन आदि दूसरे देशों को मांस निर्यात करने का बेहतरीन प्लान किसी तथाकथित किताब के रिफरेंस से भी एप्रूव कर उनके वजीरे आजम को सुझाया है। जिसे मौलाना उनके देश की गरीबी दूर करने का नायाब फार्मूला बता रहे हैं। मुझे लगता है शोले में बसंती को कुत्ते के सामने नाचने से मना क्या किया गया, कुत्तों ने इसे पर्सनली ले लिया और उनकी वफादारी, खुंखारी में तब्दील हो गई।आवारा कुत्तों के काटने से पूरे चौदह इंजेक्शन लगा चुके लोगों का दर्द वे ही जानते हैं।
मैं अनेक लोगों को जानता हूं जिनके कुत्ते उनके परिवार के सदस्य से हैं।सोनी जी स्वयं एक डाग लवर हैं, उन्हीं के शब्दों में वे कुत्तेदार हैं, एक दो नहीं उन्होने सीरिज में राकी ही पाले हैं। एक अधिकारी के रूप में उन्होनें समाज, सरकार को कुछ ऊपर से, कुछ बेहतर तरीके से देखा समझा भी है।एक व्यंग्यकार के रूप में उनकी अनुभूतियों का लोकव्यापीकरण करने में वे बहुत सफल हुये हैं।कुत्ते के इर्द गिर्द बुने विषयों पर अलग अलग पृष्ठभूमि पर लिखे गये सभी चौंतीस व्यंग्य भले ही अलग अलग कालखण्ड में लिखे गये हैं किन्तु वे सब किताब को प्रासंगिक रूप से समृद्ध बना रहे हैं।यदि निरंतरता में एक ताने बाने ,एक ही फेब्रिक में ये व्यंग्य लिखे गये होते तो इस किताब में एक बढ़िया उपन्यास बनने की सारी संभावनायें थीं। आशा है सुदर्शन जी सेवानिवृति के बाद कुत्ते पर केंद्रित एक उपन्यास व्यंग्य जगत को देंगे, जिसका संभावित नाम उनके कुत्तों पर “राकी” ही होगा।
धैर्य की पाठशाला शीर्षक भी उन्हें कुत्तापालन और धैर्य कर देना था तो सारे व्यंग्य लेखों के शीर्षको में भी कुत्ता उपस्थित हो जाता। जेनेरेशन गैप इन कुत्तापालन, कम्फर्ट जोन व डागी,कुत्ताजन चार्टर, डोडो का पाटी संस्कार, आदि शीर्षक ही स्पष्ट कर रहे हैं कि सोनी जी को आम आदमी की अंग्रेजी मिक्स्ड भाषा से परहेज नही है। उनके व्यंग्यों में संस्मरण सा प्रवाह है।यूं तो सभी व्यंग्य प्रभावी हैं, गांधी मार्ग का कुत्ता, कुत्ता चिंतन, एक कुत्ते की आत्मकथा, उदारीकरण के दौर में कुत्ता आदि बढ़िया बन पड़े व्यंग्य हैं। किताब पठनीय है, श्वान प्रेमियो को भेंट करने योग्य है। न्यूयार्क में मुझे एक्सक्लूजिव डाग एसेसरीज एन्ड यूटीलिटीज का शोरूम दिखा था “अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो ”अंग्रेजी अनुवाद के साथ वहां रखे जाने योग्य मजेदार व्यंग्य संग्रह लगता है।(विनायक फीचर्स)