मैंने तुमहार फोन नहीं उठाया तुमने मेरा आखिर क्यों कुरेदें जा रहे हैं पुराने मुददें
यूपी में दलित वोटों को लेकर जांच पड़ताल करती विशेष रिपोर्ट
शबी हैदर
लखनऊ 16 सितम्बर । बात पुरानी है लेकिन किस्सा नया है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कह रहे हैं कि उन्होंने बसपा के साथ राजनीतिक गठबंधन कर देश की राजनीति की धारा को मोड़ने का काम किया था। हालांकि इस राजनीतिक परीक्षण में उन्हें नुकसान हुआ था और बसपा का फायदा। जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती कह रही है कि वह उनकी बड़ी भूल थी और एक समय ऐसा आया था कि सपा अध्यक्ष उनका फोन नहीं उठाते थे। आखिर 2017 की बातें 2024 में क्यों हो रही है। आखिर माजरा क्या? क्या फिर से यूपी में चुनाव हैं। जी हां बिल्कुल उत्तर प्रदेश के उप—चुनाव का बिगुल बज चुका है और करो और मरो की स्थिति सभी दलों के लिए है। ऐसे में राजीनतिक दलों का एक दूसरे के उपर कीचड़ उछालना लाजमी है। पुराने मुददों को पालिश कर चमकाना जरूरी है। क्योंकि राजनीतिक प्रयोगशाला में परीक्षण के बाद सफल हुए मुददों का लंबे समय तक जीवित रहना जरूरी माना जाता है। और कोई भी राजनीतिक दल इन मुददों को मरने नहीं देना चाहता।
उत्तर प्रदेश की सभी 10 विधानसभा सीटों पर जीत का कारक दलित वोट है। वह चाहे मिल्कीपुर हो या फिर दूसरी अन्य सीट। ऐसे में बीजेपी, सपा और कांग्रेस और बसपा के साथ आजाद समाज पार्टी फूंक—फूंक कर कदम रख रही है। राजनीतिक विशलेषक डी के त्रिपाठी कहते है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों में भले ही सत्ता का बदलाव नहीं हुआ लेकिन जनता को मजा आया। और जनता इसी मजे को आगे ले जाना चाहेगी। क्योंकि उसे लग रहा है कि केन्द्र सरकार का मिजाज़ बदला है। वक्फ बिल को जेपीसी के पास भेजना एक बड़ा मैसेज दे गया। यूपी की राजनीति को करीब से समझने वाले जेपी तिवारी उर्फ नेताजी कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस—सपा गठबंधन को दलित वोट मिला। मायावती सरकार का विरोध ठीक प्रकार से नहीं कर पा रही है। आरक्षण और जातिगत जनगणना को लेकर अखिलेश यादव और राहुल गांधी लगातार केन्द्र सरकार को घेर रहे हैं। उनके बयानों का असर दलित समुदाय पर है और दलित वोटों का आकर्षण कांग्रेस के प्रति लगातार बड़ रहा है।
ऐसे में यदि मायावती अपने वोट बैंक को लेकर सजग नहीं हुई तो उन्हें राजनीति में और खराब परिणाम भुगतने के लिए तैयार होना चाहिए। यह बात बसपा सुप्रीमों अच्छी तरह से जानती है। इसीलिए वह पुराने मुददों को हवा दे रही है और लगातार इस मैसेज को देने का काम कर रही है कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने उनकी बेइज्जती की।
कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तवा कहते हैं कि दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं और बहन जी सिर्फ सोशल मीडिया पर बयान जारी कर अपनी जिम्मेदारी निभा रही है। यह बात दलितों को अखर रही है और वह दूसरे विकल्प की ओर देख रहे हैं। दलित चिंतक रवीन्द्रि पटेल कहते हैं कि इस चुनाव में दलित वोट अभी तक इंडी गठबंधन की ओर प्लस दिखायी पड़ रहा है। हो सकता है कि आगे स्थितियां बदले। उनकी नजर में आजाद समाज पार्टी भी उपचुनाव की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है और बसपा भी चुनाव लड़ेगी। ऐसे में दलित वोटों का बिखराव साफ दिखायी पड़ रहा है।