रेतीली धरती पर भाजपा का दुर्ग भेदना चाह रही कांग्रेस… निर्णायक सिद्ध होगी ये बेल्ट

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हरियाना/यूटर्न/2 सितंबर: हरियाणा की राजनीति में हमेशा से अहम दखल रखने वाली अहीरवाल बेल्ट इस बार भी निर्णायक सिद्ध होगी। इतिहास देखें तो किसी भी दल के लिए इस रेतीली धरती से ही सत्ता की राह निकलती है। यहां के मतदाता सत्ता के साथ चलने में यकीन रखते हैं। पार्टी चाहे कोई भी हो, लेकिन अहीरवाल के नेता राव इंद्रजीत सिंह जिस भी दल में गए, लोगों ने उनके फैसले पर फूल चढ़ाए हैं। अहीरवाल ने 2005 से 2014 तक खुलकर कांग्रेस का साथ दिया और सत्ता में भागीदारी की। 2014 से 2024 तक भाजपा का दामन थामा। मौजूदा समय में अहीरवाल भाजपा का गढ़ है और कांग्रेस इसमें सेंध लगाने की कोशिश में है। गुरुग्राम, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ जिले की इस पूरी बेल्ट में 11 विधानसभा सीटें हैं। 2019 को लोकसभा चुनाव में भाजपा को इन सभी सीटों पर बढ़त मिली थी। छह माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में 8 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी। यहां की 11 में से 8 सीटें भाजपा और 2 कांग्रेस के पास हैं। एक सीट पर निर्दलीय का कब्जा है। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव की बात करें तो जहां कांग्रेस को प्रदेश में पांच सीटें मिली और प्रदर्शन बेहतर रहा, लेकिन इस बेल्ट में कांग्रेस इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई, बल्कि अधिकतर सीटों पर सत्ताधारी पार्टी भाजपा को जीत मिली है। हालांकि, पिछली बार के मुकाबले वोटों का अंतर घटा है। भाजपा के घटते जनाधार को देखते हुए ही कांग्रेस को इस बेल्ट में आस जगी है। 2014 के चुनाव से पहले ये इलाका कांग्रेस का गढ़ रहा, लेकिन 2014 में मोदी लहर के बाद हुए तीन चुनावों में अहीरवाल ने एकतरफा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साथ दिया। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो अहीरवाल ऐसा इलाका है, जिसकी बदलौत ही दोनों बार भाजपा प्रदेश में सत्तासीन हुई। इस बेल्ट में भाजपा के पास राव इंद्रजीत सिंह के अलावा सुधा यादव, पूर्व मंत्री रामबिलास शर्मा, पूर्व मंत्री ओपी यादव, मंत्री डॉ. बनवारी लाल और मंत्री अभय यादव शामिल हैं। वहीं, कांग्रेस पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव, राव दान सिंह और राज बब्बर के सहारे है। सेना में इस क्षेत्र के काफी संखया में लोग हैं और युवाओं का सपना भी सेना में जाने का है। कांग्रेस अग्निवीर योजना को मुद्दा बना रही है। यहां सीधे तौर पर भाजपा और कांग्रेस में मुकाबला है। जजपा, इनेलो और आप के लिए यहां राहें काफी कठिन हैं।
राव के लिए भाजपा नेता ही चुनौती
राव इंद्रजीत सिंह की पकड़ इस इलाके पर कम हुई है। लोकसभा चुनाव के परिणाम इसका उदाहरण हैं। खासकर राव के लिए भाजपा के नेता ही बड़ी चुनौती हैं। राव इस बार भी अपनी पसंद के नेताओं को टिकट दिलाने पर अड़े हैं, जबकि भाजपा अनुशासन और संगठन को तवज्जो देती आई है। राव के विरोधियों में पूर्व मंत्री राव नरबीर, रणधीर कापड़ीवास, सुधा यादव, अरविंद यादव, अभय यादव समेत अन्य नेता शामिल हैं। ये नेता खुद टिकट चाहते हैं या फिर अपने समर्थकों को टिकट दिलाना चाहते हैं, लेकिन राव की पसंद इसमें आड़े आ रही है। इस बार राव इंद्रजीत की बेटी आरती राव भी मैदान में उतरने को तैयार हैं। इसलिए यहां पर टिकट वितरण पर भी काफी कुछ निर्भर करेगा। दूसरी तरफ, इस बार के लोकसभा चुनाव में रेवाड़ी जिले की तीनों विधानसभा सीटों पर मतदाताओं का मूड जरूर कुछ बदला दिखा।
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