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हिन्दी फिल्मों की महान गायिकाएं

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सुभाष आनंद

गायिका लता मंगेशकर, गीता दत्त, आशा भोंसले ने जितने भी गीत गाए आज भी श्रोताओं को आनंदित कर देते हैं। क्या कला की अभिव्यक्ति में कलाकार के व्यक्तिगत अनुभवों, भावनाओं का योगदान होता है? क्या कलाकार अपनी जिंदगी की खामोशियों, आवाजों, अंधेरों-उजालों को अपनी रचना में भिगोता है, तभी वे अमर हो जाती हैं। हमारी हिन्दी फिल्मों के अमर गीत कुछ ऐसी ही कहानी कहते हैं। आधुनिक कलाकार प्रोफेशनल होते हैं। गाने की फीस ली और माइक्रोफोन के सामने गाना गाकर चलते बने।

 

पिछले दिनों यद्यपि नए-नए कलाकारों ने गाने गाए, लेकिन कोई भी गायक अपनी छाप छोड़ नहीं सका। न ही कोई गाना इतना हिट हुआ है कि उसकी चर्चा आज की जा सके। पिछले समय की बात की जाए तो देखेंगे कि हिन्दी फिल्मों की तीन महान गायिकाओं गीता दत्त, आशा भोंसले और लता मंगेशकर ने अपने गीतों में अपनी भावनाएं जोड़कर कई यादगार हिट गीत दिए। उल्लेखनीय है कि ये तीनों गायिकाएं घंटों रिहर्सल किया करती थीं। जब स्वयं संतुष्ट हो जाती थीं, तब गीत की रिकॉर्डिंग करवाया करती थी। इनके दर्द भरे गीत कानों में सुनाई देते हैं तो हृदय विदीर्ण हो उठता है। असर में कई गीतों में तो अपना दर्द उतर आता है।

 

आशा भोंसले के फिल्म उद्योग में प्रवेश करने से पहले गीता दत्त मादक गीतों की मल्लिका बन चुकी थीं। ओ.पी. नैयर के संगीत में उन्होंने कई सुरीले गीत गाए, फिर जैसे-जैसे आशा भोंसले ओ.पी. नैयर के नजदीक आती गई, गीता दत्त को पीछे हटना पड़ा। आशा भोंसले ने गीता दत्त की जगह पर अपना अधिकार जमा लिया। यह भावना गीता दत्त के हृदय में सदैव बनी रही। गुरुदत्त से शादी करने के पश्चात गीता दत्त की पूरी दुनिया सिमटकर रह गई, उन्हें सिर्फ गुरुदत्त की फिल्मों में काम करने की अनुमति थी। एक सदाबहार गायिका को बंधन में कैद कर दिया गया। जब गुरुदत्त और वहीदा रहमान के संबंध आगे बढऩे लगे तो गीता दत्त को कितना दुख हुआ था इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है। बाहर से बेगानापन और प्यार में बेरुखी।

कितना दर्द पीड़ा सही होगी महान गायिका गीता दत्त ने और यह दर्द फिल्म साहिब बीवी और गुलाम में एक गीत ‘कोई दूर से आवाज दे चले आओ’ में प्रगट किया। उन्होंने रात-रातभर जागकर गुरुदत्त का इंतजार किया, उसी गीत में वे पंक्तियां भी गायीं- रात-रात भर इंतजार है। ऐसे समय में फिल्म जगत की प्रसिद्ध अभिनेत्री मीना कुमारी भी दर्द से नहा रही थीं। वैवाहिक जीवन के दुख का बोझ उठा रही थीं। ऐसे में उनका और गीता का साथ दूध में केसर की भांति घुल गया था। कई बार उलझन होती थी और जनता कहती थी कि गीता दत्त अभिनय कर रही है या मीना कुमारी गीत गा रही हैं। मीना कुमारी की आंखों का वीरानापन गीता दत्त की आवाज में उतर आता था।

 

आशा भोंसले का जीवन भी बहुत संघर्षमय रहा है। व्यक्तिगत भी और सार्वजनिक तौर पर भी। लता मंगेशकर के फिल्म जगत में पूरी तरह स्थापित हो जाने के पश्चात आशा की राहें मुश्किल होती चली गईं। नंबर दो की गायिका होने के पश्चात उन्हें सहनायिका के गाने ही मिलते थे। यह बात उल्लेखनीय है कि ओ.पी. नैयर का साथ मिलने के पश्चात आशा भोंसले-लता मंगेशकर की बराबरी करने लगी थीं। वे ओ.पी. नैयर के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ गईं। दूसरे संगीतकार उन्हें लेने के लिए हिचकते रहे। आशा को सही समय पर लगा कि व्यावसायिक संबंध और भावनात्मक संबंध अलग-अलग होते हैं। अगर नाम कमाना है तो प्रोफेशनल होना जरूरी है और वह नैयर साहिब से जुदा हो गईं। जाते-जाते आशा भोंसले ने ऐसा गीत गाया जो उसके गले से नहीं बल्कि हृदय से निकला था और उनके व्यक्तिगत जीवन की तरफ इशारा करता है।

 

फिल्म प्राण जाए पर वचन न जाए का गाना चैन से हमको कभी आपने जीने न दिया। इस गाने में आशा भोंसले ने अपना कलेजा बाहर निकालकर रख दिया था। इस गीत में आशा भोंसले ने बहुत धीमी आवाज का प्रयोग किया। इस गाने में आशा भोंसले ने अपनी जिंदगी से शिकायत की है, अपनी मजबूरी पूरी तरह प्रगट की है। ओ.पी. नैयर को लेकर उनके चरित्र पर कई लांछन लगे। इस गाने को सुनने के पश्चात कई लोगों का कहना था कि आशा भोंसले पूरी तरह टूट चुकी थीं, इसी गाने को लेकर आशा भोंसले को फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार मिला था। यह गाना आशा भोंसले और ओ.पी. नैयर के बीच स्थापित रिश्तों की अंतिम निशानी थी। इसके पश्चात आशा भोंसले लगातार फिल्म जगत में ऊपर चढ़ती गईं, जबकि ओ.पी. नैयर का सूर्य अस्त होने लगा।

 

आशा भोसले ने अपनी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। एक बार पुन: उनको एस.डी. बर्मन का सहारा लेना पड़ा। आर.डी. बर्मन के संगीत निर्देशन में आशा भोंसले ने कई गाने गाए और बुलंदियों को छुआ।

सी. रामचंद्र ने लता मंगेशकर के लिए कई अमर धुनें बनाईं। वे इतने लतामय हो गए थे कि हल्के-फुल्के और फूहड़ गीतों तक के लिए लता मंगेशकर पर आश्रित हो गए थे। सी. रामचंद्र जब इन संबंधों को भुनाने लगे तो लता मंगेशकर को बहुत बड़ा धक्का लगा। वे भी सी. रामचंद्र के उतने ही करीब थीं। लता मंगेशकर के सामने कैरियर या रिश्ते दोनों में से एक को चुनना था। वे जानती थीं कि पाकिस्तान बनने के पश्चात नूरजहां वहां चली जाएंगी अत: नूरजहां के पाकिस्तान शिफ्ट होने के पश्चात उन्हें भारत में किसी प्रकार का कोई चैलेंज नहीं होगा। लता मंगेशकर को ऐसा लगने लगा कि उसकी आवाज में भी कुछ विशेषता है और लगभग सभी संगीत निर्देशक उनको प्राथमिकता देने लगे थे। लता मंगेशकर ने अंत में कैरियर को चुना। ऐसे दौर में अपने एक गीत में उन्होंने अपना सब कुछ उड़ेल दिया था। तुम क्या जानो तुम्हारी याद में हम कितना रोएं। यह गीत दर्द भरे गीतों में ऊंचा स्थान रखता है। फिल्म का नाम भी विचित्र था ‘शिनशिनाकी बुब्लाबू’। यह गीत एक परवाने की शिकायत है जो शमां के लिए जल मरा। आज इस गीत को सुनने से रोंगटे खड़े हो जाते हैं, दर्द का अहसास होता है। लता मंगेशकर ने यह गीत धीमी गति से इस कौशल के साथ गाया जैसे वे अपने आप से कुछ शिकायत दर्ज करवा रही हैं। यह उल्लेखनीय है कि इन तीनों महान गायिकाओं में दर्द की आवाज थी और आवाज का दर्द था, जो उनके सीने में सदा छिपा रहा। भारत की इन तीन बड़ी गायिकाओं ने, कुछ गाने जो दर्द भरे थे, इतनी मधुर आवाज में गाए कि श्रोता उन्हें आज भी सुनते हैं।

 

बड़ी विचित्र बात है कि आज की गायिकाएं केवल मुंह से गीत गाती हैं न कि दिल से, उनको तो पैसे की जल्दी होती है, पैसे लिए और चलती बनीं।

आज रीमेक एक ट्रेंड बन चुका है। आज 80 प्रतिशत गाने रीमिक्स आ रहे हैं और जो 20 प्रतिशत गाने ओरिजनल आ रहे हैं, उन्हें प्रमोट नहीं किया जा रहा।जो नये गायक-गायिकाएं फिल्म जगत में प्रवेश कर रही हैं, उनसे कोई खास उम्मीदें नजर नहीं आतीं। लोगों को ओरिजनल गाने चाहिए। हमारे कंपोजर्स में अच्छे ओरिजनल गाने क्रिएट करने की भरपूर काबिलियत भी है, फिर भी ओरिजनल गानों को ठीक तरह से बनाया नहीं किया जा रहा है और वे सदाबहार कर्णप्रिय भी नहीं बन पा रहे हैं।

(विनायक फीचर्स)

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