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एनपीएस न यूपीएस, सिर्फ ओपीएस,हरियाणा विधानसभा चुनाव में समीकरण बनाए और बिगाड़ेगी पेंशन योजना

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हरियाना/यूटर्न/27 अगस्त: लोकसभा चुनाव के बाद अब हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भी ओपीएस (ओल्ड पेंशन स्कीम) अहम मुद्दा रहेगा। ओपीएस चुनावी समीकरण बनाने और बिगाडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। केंद्र सरकार की ओर से पेंशन को लेकर नई योजना यूपीएस (यूनाइटेड पेंशन स्कीम) लाने के बाद यह मामला और गरमा गया है। सरकार जहां यूपीएस के लाभ गिना रही है, वहीं कर्मचारी संगठनों के साथ-साथ विपक्षी दल सरकार पर हमलावर हो गए हैं। कर्मचारियों ने इसे सिरे से नकारते हुए कहा है कि उन्हें केवल और केवल ओपीएस चाहिए, कोई नई स्कीम लागू नहीं होने देंगे। वहीं विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए रणनीति तय कर ली है।भाजपा लोकसभा चुनाव में कर्मचारियों का झटका झेल चुकी है और कर्मचारियों की नाराजगी के चलते उनको पांच सीटें गंवानी पड़ी हैं। इस बार भाजपा पूरी तरह से कर्मचारियों पर नजर गढ़ाए हुए है। कैशलेस मेडिकल सुविधा देने के साथ कर्मचारियों का डीए भी बढ़ा दिया गया है। हालांकि, ओपीएस के मुद्दे पर भाजपा सरकार ने चुप्पी साध रखी है। केंद्र सरकार का मामला बताकर राज्य के नेता इस मुद्दे पर बोलने से बचते रहे हैं।
वहीं, कांग्रेस खुलकर कर्मचारियों के समर्थन में आ गई है। कांग्रेस के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने वादा किया है कि सरकार बनते ही पहली कलम से ओपीएस को बहाल किया जाएगा। इससे पहले हिमाचल में भी इसी मुद्दे पर कांग्रेस की सरकार बनी थी और हिमाचल सरकार ने ओपीएस को बहाल भी कर दिया है। इसलिए कर्मचारी हरियाणा में भी ओपीएस की बहाली के लिए आंदोलन कर रहे हैं।
कमेटी बनी, लेकिन आगे कुछ नहीं हुआ
न्यू पेंशन स्कीम में संशोधन के लिए हरियाणा सरकार ने 20 फरवरी को मुखय सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी की कर्मचारियों के साथ बैठक तो हुई, लेकिन आगे कुछ नहीं हुआ। कर्मचारियों से सरकार ने इस स्कीम के बारे में डेटा मांगा था, लेकिन कई बार समय मांगने पर भी दोबारा बैठक नहीं हुई। इसके बाद से कर्मचारी आंदोलन की राह पर हैं। कर्मचारी दिल्ली और पंचकूला में दो बड़ी रैलियां करके सरकार को चेता चुके हैं। अब 1 सितंबर को पंचकूला में राज्यस्तरीय विरोध रैली होनी है।
ये है योजनाओं में अंतर
कर्मचारी नेताओं का तर्क है कि ओल्ड और न्यू पेंशन स्कीम में दिन और रात का अंतर है। न्यू पेंशन स्कीम के तहत कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति पर 1700 रुपये तक की पेंशन मिल रही है, जबकि ओपीएस की बात करें तो 10 गुना अधिक हो जाती है। अखिल भारतीय राज्य सरकार कर्मचारी फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाष लांबा का कहना है कि अब केंद्र सरकार यूपीएस लेकर आई है, वो भी कर्मचारियों के साथ छलावा है। एक बात तो तय हो गई है कि न्यू पेंशन स्कीम अच्छी नहीं है, ये तो सरकार ने भी मान लिया। अगर एनपीएस अच्छी होती तो यूपीएस लाने की जरूरत क्या है। कर्मचारियों को केवल और केवल ओपीएस चाहिए, नई स्कीमें कर्मचारी स्वीकार नहीं करेंगे। विजेंद्र धारीवाल, राज्य प्रधान, पेंशन बहाली संघर्ष समिति हरियाणा ने कहा कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कर्मचारियों को गुमराह करने के लिए केंद्र सरकार यूपीएस लेकर आई है, लेकिन कर्मचारियों को ओपीएस के अलावा कुछ भी मान्य नहीं है। कर्मचारियों का आंदोलन जारी है। जब तक ओपीएस बहाल नहीं होगी, कर्मचारी वर्ग चैन से नहीं बैठेगा। जहां तक विधानसभा चुनाव की बात है तो कर्मचारी वर्ग खुलकर भाजपा का विरोध करेगा, क्योंकि ओपीएस को लेकर भाजपा ने चुप्पी साध रखी है। प्रदेश के हर जिले और हर हलके में जाकर लोगों को इसके लिए जागरूक किया जा रहा है। ओपीएस कांग्रेस ने ही बंद की थी, अब इसकी बहाली की झूठी घोषणाएं कर रहे हैं। अगर कांग्रेस कर्मचारियों की इतनी ही हितैषी थी कि तो उस समय यह फैसला क्यों लिया था। भाजपा सरकार ने कैशलेस इलाज की सुविधा दी है। साथ ही कर्मचारियों की वर्षोँ से लंबित मांगों को पूरा करने का काम किया है। यूपीएस कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित कर रही है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा घोषणा कर चुके हैं कि कांग्रेस की सरकार बनते ही ओपीएस बहाली की जाएगी। हिमाचल और छत्तीसगढ़ में सरकारें ऐसा कर चुकी हैं। जब वहां हो सकता है तो हरियाणा में क्यों नहीं, लेकिन भाजपा सरकार कर्मचारियों के खिलाफ है। अब यूपीएस के नाम पर कर्मचारियों को बरगलाने की कोशिश है, लेकिन कर्मचारी सरकार की मंशा समझते हैं।
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