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मुद्दे की बात : हरियाणा के विस चुनाव में कांटे का मुकाबला !

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हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव में बीजेपी की परीक्षा

यूं तो सितम्बर/अक्टूबर में हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनाव होने हैं। बेशक दोनों राज्यों के चुनावी नतीजे देश की राजनीति पर बड़ा असर डालेंगे। वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार प्रोफेसर संजय कुमार के यह चुनाव सिर्फ दो राज्यों में भाजपा की चुनावी ताकत की परीक्षा ही नहीं होंगे, बल्कि इनके नतीजे अन्य राज्यों, खासकर महाराष्ट्र में चुनावी गठबंधन को भी नया आकार देंगे, जहां आने वाले महीनों में चुनाव होने हैं।

सबसे अहम पहलू, हरियाणा में सत्तासीन भाजपा के लिए कांग्रेस से पार पाना आसान नहीं होगा। हरियाणा में भाजपा की जीत का मतलब राज्य में पार्टी का एक ताकत के रूप में फिर से उभरना होगा। जबकि जम्मू-कश्मीर में भाजपा की सफलता का मतलब वहां पर सरकार की नीतियों का समर्थन होगा। जिसमें अनुच्छेद 370 को हटाना भी शामिल है। दैनिक भास्कर में छपी प्रोफेसर झा की इस निजी राय में एक बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा हरियाणा में सत्ता बरकरार रख पाएगी और जम्मू-कश्मीर में एक मजबूत ताकत के रूप में उभर पाएगी ? दरअसल यह तो तय है कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में चुनाव भाजपा के लिए कठिन होने जा रहे हैं। उसके लिए इन राज्यों में इंडिया गठबंधन सहयोगियों को हराना मुश्किल होगा। इसी साल 2024 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने इन दोनों राज्यों में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। हरियाणा में भाजपा ने 46.1% वोटों के साथ 10 में से 5 सीटें जीतीं। जबकि कांग्रेस शेष 5 सीटें छीनने में सफल रही और उसे 43.7% वोट मिले। भाजपा के वोट-शेयर में 12% की गिरावट आई, वहीं 2019 में उसे 58% वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस ने 2019 के अपने 28.4% वोटों में 15.3% वोट जोड़े।

पिछले पांच वर्षों के दौरान भाजपा और कांग्रेस के वोट-शेयर में आया यह बदलाव इस बात का स्पष्ट संकेत है कि हरियाणा में हवा किस तरफ बह रही है। यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के कुछ ही महीने बाद जब हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा ने वहां उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया था। उसे 36.5% वोट मिले और वह कुल 90 सीटों में से 40 ही जीतकर बहुमत से दूर रह गई। हरियाणा के जिन मतदाताओं ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट दिया था, उन्होंने कुछ महीने बाद अपनी राज्य सरकार चुनने की जरूरत पड़ने पर अलग तरीके से वोट करने का फैसला किया। यह मॉडल अब 2024 में भी दोहराया जा सकता है। इस विधानसभा चुनाव में तो हरियाणा में 2024 के लोकसभा चुनाव की तुलना में भाजपा के वोटों में और गिरावट आने की संभावना है। जब भाजपा 2019 में हरियाणा में अपनी सरकार का बचाव कर रही थी तो वह पांच साल की सत्ता-विरोधी लहर का सामना कर रही थी।

अब बीजेपी अपनी 10 साल पुरानी सरकार का बचाव कर रही होगी तो एंटी-इनकम्बेंसी और मजबूत होगी। इसी लोकसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह नए चेहरे नायब सिंह सैनी को लाना एक तरह से हरियाणा में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी को स्वीकार करना था। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से हरियाणा में जनता के मूड में कोई बदलाव नहीं हुआ है, अगर कुछ बदला है तो वह सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के लिए और भी नकारात्मक है।

हरियाणा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भाजपा की निर्भरता का भी परीक्षण होगा। साक्ष्यों से पता चलता है कि भाजपा विधानसभा चुनावों की तुलना में लोकसभा चुनावों में मोदी के चेहरे पर अधिक वोट खींचने में सक्षम रहती है। साल 2019 की तुलना में अब हरियाणा में राहुल गांधी कहीं अधिक लोकप्रिय भी हो गए हैं। लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा किए गए चुनाव-उपरांत सर्वेक्षण से पता चलता है कि लोकसभा चुनावों के दौरान हरियाणा में राहुल 30% मतदाताओं के बीच प्रधानमंत्री पद के लिए पसंदीदा विकल्प थे (2019 के लोकसभा चुनावों में केवल 15% की तुलना में), जबकि मोदी 32% लोगों की पसंद थे।

वहीं भाजपा ने जम्मू में दो लोकसभा सीटें जीतीं और 24.4% वोट प्राप्त किए थे, लेकिन यह तथ्य कि भाजपा ने जम्मू-कश्मीर की सभी 6 लोकसभा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ा था। यही राज्य में भाजपा की कमजोरी का प्रमाण भी है। सर्वेक्षण बताते हैं कि हरियाणा की तरह जम्मू-कश्मीर में भी राहुल गांधी प्रधानमंत्री के रूप में अधिक लोकप्रिय विकल्प थे और 35% मतदाता उन्हें अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे, जबकि 27% की पसंद नरेंद्र मोदी थे। यह स्पष्ट है कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर, दोनों ही राज्यों में होने जा रहे चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होंगे। वहां भाजपा और कांग्रेस/इंडिया गठबंधन के बीच कड़ी टक्कर होने वाली है। मुकाबले का इंतजार रहेगा। इन दोनों राज्यों के चुनावों के नतीजों का महाराष्ट्र में चुनावी-गठबंधन कैसा होगा, यह कुछ हद तक वहां के मतदाताओं के राजनीतिक मूड को भी आकार देगा। जो बदले में विभिन्न दलों/गठबंधनों की चुनावी संभावनाओं को प्रभावित करेगा।

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