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गुस्ताख़ी माफ़

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गुस्ताख़ी माफ़ 16.8.2024

 

दाग़ी बनता है वही, होता जिसमें ज़ोर।

अब तक मिले शरीफ़ जो, सब निकले कमज़ोर।

सब निकले कमज़ोर, कहीं तो है कुछ गड़बड़।

जितने ज़्यादा केस, बने उतना ही धाकड़।

कह साहिल कविराय, लीडरी उसमें जागी।

छुपा सके जो दाग़, वही है असली दाग़ी।

 

प्रस्तुति — डॉ. राजेन्द्र साहिल

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