पूरी दुनियां के लिए खतरे की घंटी बनेगा ईरान इजरायल युद्ध?
पूरी दुनियां में तेल उत्पादन के लिए अहम मिडिल ईस्ट में जंग से दुनियां की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने की संभावना?-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर तेल उत्पादन में सबसे महत्वपूर्ण मिडल ईस्ट जिसमें ईरान इराक सऊदी अरब कुवैत और यूएई का नाम शामिल है, इन्हें ओपेक देश भी कहा जाता है। तेल उत्पादन के लिए पूरी दुनियां में अहम है। सही मायनों में यह पूरी दुनियां को अपने दम पर चलाते हैं।पूरी दुनियां की अर्थव्यवस्था इनसे प्रभावित होती है। तेल के व्यापार के नाम पर भले ही यह देश एकमुस्त दिखाई देते हैं,परंतु इनमें भी हम मीडिया में आए मामलों के आधार पर इनमें टकराहट दिखाई देती है, जिसका उदाहरण वर्तमान में ईरान-इजरायल तुर्की-सीरिया इसराइल-तुर्की सहितसऊदीअरब सीरिया फिलिस्तीन-इजरायल के बीच तनाव दिखता रहता है। आज इस विषय पर हम बात इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि हमास नेता स्माइल हानिया व हिजबुल मिलिट्री फ़ौँद शकूर के मारे जाने के बाद मिडल ईस्ट में बड़ी जंग का माहौल बन गया है, जिसमें ईरान ने इज़राइल से बदला लेने,उसपर हमला कर उसे गाज़ापट्टी सारीखा बनाने का ऐलान किया है इससे तो दूसरी ओर खलबली का माहौल बन गया है। इजरायल ने भी घोषणा कर दी है कि वह हर हमले के लिए तैयार है।इधर कई देशों ने तेल अवीव सहित अनेक क्षेत्रों को अपनी अपनी हवाई सेवाएं कैंसिल कर दी है, तो कई ने अपने नागरिको के लिए गाइडलाइंस जारी कर दी है। अमेरिका के भी इजरायल के साथ एकजुट खड़े होने का अंदेशा इसी से लगाया जा सकता है कि, 3 अगस्त 2024 को देर शाम मीडिया में आई खबरों के अनुसार अमेरिका ने मिडल ईस्ट समुद्री क्षेत्र में अपना महाविनाशक बेड़ा इजरायल के सपोर्ट में खड़ा करेगा। उधर अरब वर्ल्ड के कुछ देश इजराइल अमेरिका के साथ खड़े होने के कयास लगाए जा रहे हैं। चूंकि ईरान इजरायल में टकराव से जंग के मुहाने पर खड़ा है मिडल ईस्ट, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, पूरी दुनियां के लिए खतरे की घंटी बनेगा ईरान इजरायल युद्ध, पूरी दुनियां में तेल उत्पादन के लिए अहम मिडिल ईस्ट में जंग से दुनियां की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने की संभावना को रेखांकित करना जरुरी है।
साथियों बात अगर हम मिडिल ईस्ट में ताज़ा टेंशन ईरान इजरायल टकराव की करें तो हिजबुल्लाह के मिलिट्री चीफ फ़ौद शुकूर और हमास नेता इस्माइल हानिया के मारे जाने के बाद मिडिल ईस्ट में एक बड़ी जंग का माहौल बना हुआ है। इस्माइल हानिया की तेहरान में हत्या के बाद से मिडिल ईस्ट में तनाव और बढ़ गया है। ईरान ने इजरायल पर हमले की धमकी दी है।लेबनान से हिजबुल्लाह ने देर रात उत्तरी इजरायल पर कई रॉकेट दागे।इसी बीच पेंटागन ने शुक्रवार को कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका मिडिल ईस्ट में अपनी सैन्य उपस्थिति को बढ़ाएगा, तथा क्षेत्र में बढ़ते तनाव के बीच अमेरिकी कर्मियों की सुरक्षा और इजरायल की रक्षा के लिए अतिरिक्त युद्धपोतों और लड़ाकू विमानों को तैनात करेगा इसी बीच भारत ने लेबनान और इजरायल में रहने वाले भारतीयों के लिए एडवाइजरी जारी की है।ईरान ने साफ किया है कि वह अपनी धरती पर इस्माइल हानिया की हत्या का बदला इजरायल से लेगा।दावा किया जा रहा है कि ईरान की ओर से इजरायल पर सीधा हमला होसकता है। ईरान को लेबनान में हिजबुल्लाह, सीरिया और इराक के मिलिशिया और यमन में हूती से मदद मिल सकती है। इसी साल अप्रैल में भी ईरान की ओर से इजरायल पर मिसाइल और ड्रोन हमला हो चुका है। इन मिसाइलों को रोकने में इजरायल कामयाब रहा था क्योंकि उसे अमेरिका के साथ साथ जॉर्डन का भी साथ मिला था। वहीं यूएई और सऊदी ने भी सूचनाएं अमेरिका को दी थीं। रिपोर्ट के मुताबिक, इराक, ईरान या यमन से इजरायल पर हमले के लिए लॉन्च की गई मिसाइल और ड्रोन को कई देशों को पार करना होता है। ऐसे में जॉर्डन जैसे देशों का रोल अहम हो जाता है। जॉर्डन को इस साल अप्रैल में इजरायल की मदद करने के लिए आलोचना का भी सामना करना पड़ा था। ऐसे में जॉर्डन के विदेश मंत्री ने बाद में स्पष्ट किया था कि उनका देश ईरान या इजरायल को हवाई क्षेत्र के किसी भी उल्लंघन की इजाजत नहीं देगा। एक बार फिर मंडराते युद्ध के खतरे के बीच ना सिर्फ जॉर्डन बल्कि सऊदी और यूएई जैसे अमेरिकी सहयोगियों के रोल पर भी दुनियां की निगाह है।ईरान की ओर से नए हमले के अंदेशे के बीच जॉर्डन के विदेश मंत्री ने हाल ही में कहा है कि हमें अपनी सीमाओं पर हमेशा सतर्क रहना है। किसी को भी जॉर्डन को युद्धक्षेत्र में बदलने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हमारी प्राथमिकता जॉर्डन और जॉर्डन के लोगों की रक्षा करना है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जॉर्डन अपने हवाई क्षेत्र का उल्लंघन करने का प्रयास करने वाली किसी भी ताकत का सामना करेगा।
साथियों बात अगर हम मिडिल ईस्ट के 17 देशों में लंबे समय से टेंशन की करें तो,मध्य पूर्व के 17 देश कौन से हैं? लेबनान, सीरिया, इज़राइल, जॉर्डन, सऊदी अरब, यमन, ओमान, बहरीन, कतर, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, इराक और ईरान। इसमें गाजा और वेस्ट बैंक के फिलिस्तीनी क्षेत्र भी शामिल हैं, जिन्हें वास्तव में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त देश नहीं माना जाता है मिडिल ईस्ट में लगातार बढ़ती दूरी किसी भी वक्त बड़े युद्ध का रूप ले सकती है। इसी वजह से यह पूरी दुनियां के लिए खतरा के लिए खतरा बना हुआ है। यहां की बढ़ती नफरत की वजह धार्मिक कट्टरवाद, आतंकवाद का साथ और अपने निजी हित हैं। आलम ये है कि मौजूदा समय में मिडिल ईस्ट में शामिल 18 देशों में ज्यादातर देश एक दूसरे को नामपसंद करते हैं। इन सभी 18 देशों में शांति की बात करना मौजूदा समय में बेमानी दिखाई देता है।मिडिल ईस्ट में शामिल 18 देशों में बहरीन, साइप्रस, मिस्र, ईरान, इराक, इजरायल, जोर्डन, कुवैत, लेबनान, उत्तरी साइप्रस, ओमान, फिलिस्तीन, कतर, सऊदी अरब, सीरिया, तुर्की, यूएई, और यमन हैं। मौजूदा परिस्थितियों में इजरायल, ईरान को पसंद नहीं करता है।इराक सीरिया को नापसंद करता है, सीरिया तुर्की को पंसद नहीं, तुर्की से इजरायल का छत्तीस का आंकड़ा है। फिलिस्तीन भी इजरायल को पसंद नहीं करता है। कुवैत, इराक से नफरत करता है। लेबनान, ओमान और जोर्डन में आतंकवाद की जड़े बड़ी गहरी हैं। इसलिए ये दूसरे देशों के आंखों की किरकिरी बने हुए हैं। यूएई को यदि छोड़ दें तो ये बेहद साफ है कि यहां की आबोहवा में शांति और यहां फैली आपसी नफरत को खत्म करने का कोई जरिया फिलहाल दिखाई नहीं देता है। मिडिल ईस्ट में शामिल देशों में ही वो देश भी आते हैं जो तेल उत्पादन के लिए पूरी दुनियां में अहम हैं, जिन्हें ओपेक देश भी कहा जाता है। सही मायने में यह पूरी दुनिया को अपने दम पर चलाते हैं। पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था इनसे प्रभावित होती है। इनमें ईरान, इराक, सऊदी अरब, कुवैत और यूएई का नाम शामिल है। तेल के व्यापार के नाम पर ये देश भले ही एकजुट दिखाई देते हों लेकिन इसके उलट इनमें भी एकजुटता नहीं है। इस क्षेत्र में शामिल देशों के बीच निजी हितों को लेकर हमेशा टकराव बना रहता है। इसका उदाहरण मौजूदा समय में इजरायल और तुर्की, तुर्की और सीरिया, सीरिया और सऊदी अरब, ईरान और इजरायल, फिलिस्तीन और इजरायल के बीच का तनाव है।
साथियों बात अगर हम मिडिल ईस्ट में अमेरिका के दख़ल ल की करें तो,मिडिल ईस्ट के देशों में फैली अनबन की एक बड़ी वजह अमेरिका का हित भी है।अमेरिका की वर्षों से मिडिल ईस्ट को लेकर एक दूसरी ही नीति और नीयत रही है। इस नीति और नियत का ही परिणाम पूरी दुनिया ने 1990-1991 के खाड़ी युद्ध के रूप में देखा था। इसमें अमेरिका ने कुवैत का साथ दिया था। इस युद्ध का मकसद हकीकत में इराक के राष्ट्रपति को हटाना था। जानकार भी सीरिया में चल रहे गृह युद्ध की बड़ी वजह अमेरिका की वहां दखलंदाजी को मानते हैं। इसके अलावा ईरान से फैली नफरत के पीछे भी अमेरिका की यही नीति काम कर रही है जिसके तहत वह सऊदी अरब से संबंध मजबूत कर रहा है और उसको ईरान के खिलाफ भड़का रहा है। वहीं तीसरे मोर्चे पर अमेरिका के इजरायल से लगातार मजबूत रिश्ते भी यहां पर नफरत को बढ़ावा दे रहे हैं। आलम ये है कि लीबिया में गद्दाफी को हटाने और इराक से सद्दाम को हटाने के बाद से ही वहां आतंकवाद हावी हो गया जिसने सीरिया समेत सऊदी अरब, कुवैत, को अपनी चपेट में लिया। इसके बाद यहां से पनपे आईएस इस्लामिक स्टेट ने तुर्की, से लेकर बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, लंदन में अपना कहर बरपाया है। इस वर्ष आईएस के कराए कई हमलों की गूंज यूरोप से लेकर मिडिल ईस्ट तक सुनी गई है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन करें इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि जंग के मुहाने पर मिडल ईस्ट- ईरान-इज़रायल में टकराव!पूरी दुनियां के लिए खतरे की घंटी बनेगा ईरान इजरायल युद्ध?पूरी दुनियां में तेल उत्पादन के लिए अहम मिडिल ईस्ट में जंग से दुनियां की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने की संभावना?
*-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र*