आधुनिक हथियार खरीदने के लिए बड़े बजट की जरुरत
केंद्र सरकार द्वारा इस साल पेश किए आम बजट को लेकर लगातार प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। दरअसल सेहत, शिक्षा, रोजगार, कारोबार, खेतीबाड़ी समेत तमाम सैक्टर की अनदेखी को लेकर केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की आलोचना हो रही है। यहां गौरतलब है कि भारत के आम बजट से यह भी पता चलता है कि सरकार रक्षा क्षेत्र को बहुत तवज्जो दे रही है। साल 2024-25 के लिए भारत की संसद में 48 लाख करोड़ रुपए का जो बजट पेश किया गया, उसमें सबसे ज़्यादा लगभग छह लाख 22 हज़ार करोड़ रुपये रक्षा के क्षेत्र के लिए रखे गए हैं। जो कुल बजट का लगभग 13 फ़ीसदी है।
वरिष्ठ पत्रकार मिर्जा एबी बेग ने बीबीसी में अपनी रिपोर्ट में इसे रेखांकित किया। जिसके मुताबिक कई विश्लेषकों का मानना है कि पिछले साल की तरह वित्त वर्ष 2024-25 का रक्षा बजट भी चीन और पाकिस्तान को नज़र में रखते हुए बनाया गया। दुनिया भर में रक्षा मामलों पर नज़र रखने वाली संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा पर सबसे ज़्यादा ख़र्च करने वाले देशों में भारत अभी चौथे नंबर पर है। पिछले पांच साल के दौरान भारत दुनिया भर में सबसे ज़्यादा सैन्य साज़ो-सामान ख़रीदने वाला देश रहा है। रक्षा मामलों पर लिखने वाले पत्रकार प्रतीक प्रशांत मुकाने ने लाइव मिंट में लिखा कि भारत का सैनिक आधुनिकीकरण पर ज़ोर पड़ोसी देशों को ध्यान में रखकर होता है। इसके साथ उन्होंने चीन और पाकिस्तान के रक्षा बजट का ख़ाका भी पेश किया है।
गौरतलब है कि भारत के लगभग 75 अरब डॉलर के रक्षा बजट के मुक़ाबले चीन ने 2024 में रक्षा के लिए 230 अरब डॉलर से अधिक की रक़म का प्रावधान किया। दूसरी ओर भारत का रक्षा बजट पाकिस्तान की तुलना में लगभग दस गुना ज़्यादा है। ऐसे में पहले यह देखना ज़रूरी है कि ख़ुद भारत सरकार के अनुसार, रक्षा बजट का इस्तेमाल कैसे किया जाएगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस बारे में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ‘एक्स’ पर अपने संदेश में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का शुक्रिया अदा किया। वहीं इस रक़म के इस्तेमाल के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने लिखा कि रक्षा बजट से एक लाख 72 हज़ार करोड़ रुपए के पूंजी निवेश से सशस्त्र बलों की क्षमता को और शक्ति मिलेगी। रक्षा मंत्री ने कहा कि मुझे ख़ुशी है कि कैपिटल हैड के तहत पिछले बजट में सीमावर्ती सड़कों के लिए जितनी रक़म का प्रावधान हुआ था, उसमें 30 प्रतिशत का इज़ाफ़ा किया गया। बीआरओ के लिए 6500 करोड़ रुपए का प्रावधान करने से हमारा सीमावर्ती इंफ़्रास्ट्रक्चर बेहतर होगा।
सरकारी सूचना एजेंसी पीआईबी के अनुसार भारत की प्राथमिकता रक्षा बलों का आधुनिकीकरण है। इसके लिए कैपिटल हैड के तहत बजट में दी राशि वित्त वर्ष 2022-23 के वास्तविक ख़र्च से 20.33 फ़ीसदी ज़्यादा है। जबकि केंद्र
सरकार के अनुसार चालू वित्त वर्ष के लिए निर्धारित अतिरिक्त फ़ंड का मक़सद वर्तमान और बाद के वित्तीय वर्षों में बड़ी ख़रीदारी के लिए अंतर को पाटना है। इसका मक़सद सशस्त्र बलों के लिए आधुनिक टैक्नोलॉजी, घातक हथियार, युद्धक विमान, समुद्री जहाज़, पनडुब्बियां, प्लेटफ़ॉर्म्स, बिना पायलट के विमान, ड्रोन्स और विशेष महारत वाली गाड़ियां उपलब्ध कराना और तैयार करना है।
हालांकि भारत में यह आम राय है कि देश के रक्षा बजट में इज़ाफ़ा पाकिस्तान और चीन को ध्यान में रखते हुए किया गया है। ताकि सैन्य आधुनिकीकरण को बढ़ावा दिया जा सके, लेकिन एक विश्लेषक का मानना है कि अब भी भारत का रक्षा बजट काफ़ी नहीं है। रक्षा मामलों के विशेषज्ञ राहुल बेदी के मुताबिक रक्षा बजट के दो हिस्से होते हैं; एक रेवेन्यू और दूसरा कैपिटल। रेवेन्यू वाले हिस्से में खाने पीने पर ख़र्च, आने-जाने पर ख़र्च और सेना का वेतन आदि शामिल होते हैं। जिसमें बजट का लगभग दो तिहाई हिस्सा जा रहा है। जबकि पेंशन के लिए अलग से रक़म का प्रावधान किया गया।
उनके अनुसार सेना को आधुनिक बनाने और साज़ो-सामान की ख़रीद और आयात के लिए एक तिहाई से कुछ अधिक राशि का प्रावधान किया गया है। जो सेना की वर्तमान स्थिति के हिसाब से कुछ ख़ास नहीं है। उनका कहना है कि भारत का 60 फ़ीसद फ़ौजी साज़ो-सामान अभी तक सोवियत रूस के ज़माने का है। जिन्हें हम ‘लेगसी इक्विपमेंट’ कहते हैं और उन पर बहुत ज़्यादा ख़र्च आता है। इसे लेकर पिछले 20 सालों से चिंता जताई जा रही है। जबकि यूक्रेन में रूसी हमले के बाद इस बात पर चिंता बढ़ गई है कि ऐसे हथियार क्या इस्तेमाल के योग्य हैं या नहीं। दरअसल यूक्रेन के साथ जंग में रूसी हथियार बहुत कारगर साबित नहीं हुए। उनके अनुसार भारत को आधुनिक हथियारों की ज़रूरत है और पुराने साज़ो-सामान को नए से बदलने के लिए उसे बहुत पैसों की ज़रूरत है, जो उसके पास अभी नहीं है। भारत के पास अभी लगभग 13 लाख सैनिक हैं और उनकी संख्या को कम करके आठ लाख तक लाने की योजना है। इससे सैनिकों की तनख़्वाह और दूसरे ख़र्चों में कमी आएगी और इस राशि को दूसरी जगह लगाया जा सकेगा। चीन के साथ भारत की 3500 किलोमीटर और पाकिस्तान के साथ 774 किलोमीटर लंबी सीमा है। इनमें ज़्यादातर पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र हैं।
इस समय भारत की सेना के पास मौजूदा टेक्नोलॉजी से उन मुश्किल सीमाओं की निगरानी करना आसान नहीं है। वहां सैनिकों के रहने की ज़रूरत है, वहां जवानों की ज़रूरत है। आधुनिक टेक्नोलॉजी बहुत आगे निकल चुकी है, लेकिन इसे हासिल करने के लिए बहुत पैसा चाहिए।
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