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मुद्दे की बात : सेहत नजरंदाज बजट में !

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हैल्थ सैक्टर पर जीडीपी का 2.5 फीसदी खर्च करने का टारगेट सैट था।

इस बार के आम बजट को लेकर लगातार समाज के हर वर्ग की प्रतिक्रियाएं जारी हैं। सरसरी तौर पर देखें तो केंद्रीय बजट में सेहत सेवाओं का भी ख्याल रखा गया। दरअसल स्वास्थ्य बजट में पिछले साल की तुलना में 12.50 फीसदी अधिक राशि दी गई। एक्सपर्टस की मानें तो साल 2017 की नेशनल हेल्थ पॉलिसी में साल 2024-25 तक हैल्थ सैक्टर पर जीडीपी का 2.5 फीसदी खर्च करने का टारगेट सेट किया गया था। जिसके मुताबिक स्वास्थ्य का बजट इस वर्ष 3.3 लाख करोड़ रुपए होना चाहिए था। जबकि इसे सिर्फ करीबन 91 हजार करोड़ रुपए ही रखा गया। यह जरूरत-लक्ष्य का 27 फीसदी ही बनता है।
दरअसल इस बार हैल्थ सैक्टर बड़ी आस लगाए बैठा था। इसकी वजह यह भी थी कि भारत समेत दुनिया कोरोना की आपदा से हाल ही में उबरी। भारत में बीते कुछ समय में लाइफस्टाइल डिजीज जैसे डायबिटीज, हार्ट अटैक, कैंसर, लिवर-डैमेज जैसे मामले तेजी से बढ़े हैं। एक्सपर्ट मानते हैं कि कुछ मोर्चों को छोड़ दें तो कुल मिलाकर हेल्थ बजट उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। फरवरी में पेश किए अंतरिम बजट में सर्वाइकल कैंसर टीकाकरण और सिकल सैल जैसे अभियान को लेकर घोषणा की गई थी। जबकि इस आम बजट में इसका जिक्र तक नहीं किया गया। इस बार का हेल्थ बजट 90,958.63 करोड़ ही रहा। मगर बजट में हैल्थ सैक्टर को जितनी राशि मिली है, वह जीडीपी के 1.1 या 1.2 के आसपास ही है। इसके अलावा भारत की अर्थव्यवस्था चार ट्रिलियन की ओर बढ़ रही है, ऐसे में हेल्थ बजट को भी बढ़ाना था। इस बजट से हेल्थ को लेकर निराशा हुई है।
बेशक, हेल्थ को लेकर बड़ी घोषणाओं में कैंसर की तीन दवाओं से पूरी तरह कस्टम ड्यूटी हटाना और एक्स-रे मशीनों में उपयोग होने वाली एक्स-रे ट्यूब और फ्लैट पैनल डिटेक्टरों पर मूल सीमा शुल्क में बदलाव करने की घोषणा ही रहीं। इस बजट को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि हमारी तरफ से वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर स्वास्थ्य बजट की बेहतरी के लिए कुछ सुझाव के साथ ही मांगें रखी थीं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डॉ. आरवी अशोकन ने कहा कि इस बजट में उन्हें पूरी तरह से दरकिनार किया गया है। हमारी मांग थी कि देश में जरूरत स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जीडीपी का ढाई फीसदी हेल्थ बजट में शामिल किया जाए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इससे दवा की कीमतों में कमी करने से बहुत बड़ी आबादी को राहत मिलती। हालांकि माहिरों का यह भी कहना है कि सकारात्मक विकास के साथ स्वास्थ्य के क्षेत्र में वृद्धि वाला बजट पेश किया गया है। इससे मेडिकल फील्ड में रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा।
इस बार बजट में हेल्थ को 90,958.63 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इनमें से 87,656.90 करोड़ रुपए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग और 3,301.73 करोड़ रुपए स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को दिया गया है। इनमें से ही आयुष मंत्रालय को 3,712.49 करोड़ आवंटित किया गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए 36,000 करोड़ रुपए और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के लिए 7,000 करोड़ रुपए दिए गए हैं। इसके अलावा बजट में दिल्ली एम्स को 4,523 करोड़ रुपए आवंटित किया गया है। बजट में आईसीएमआर को 2,732.13 करोड़ रुपए मिला है। राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के लिए 200 करोड़ रुपए, टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए 65 करोड़ रुपए दिए गए हैं। इसके साथ ही सरकार की तरफ से मेडिकल फील्ड में रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए अलग से फंड रखने की घोषणा की गई है।
कैंसर की तीन दवाओं से कस्टम ड्यूटी को जीरो करना अच्छी पहल है, इससे कैंसर मरीजों को लगने वाली तीन मुख्य दवाएं सस्ती होंगी। इसके अलावा हमने मांग की थी कि अन्य सभी दवा की कीमतों में जीएसटी कम किए जाए, जो अभी 12 से लेकर 18 फीसदी तक लग रही है। इसे लेकर अब जीएसटी काउंसिल की बैठक में बात रखी जाएगी। कैंसर की तीन दवाओं से स्टाम्प ड्यूटी हटाने की पहल अच्छी है। मेडिसिन की कीमत कम करने के लिए इस पर लगने वाले जीएसटी को कम किया जाना था, इससे दवाओं की कीमत कम होती। यह बजट हेल्थ के लिए कुछ निराश करता है।
आईएमए से डॉ. शिव कुमार ने रोष जताया कि वित्त मंत्री को सुझाव दिया था कि हेल्थ बजट बढ़ाना चाहिए, इसे लेकर कुछ भी नहीं किया। पिछलेी बार भी जो सरकार की तरफ से हैल्थ का बजट बढ़ाया गया था, इसमें सेनेटरी का फंड भी शामिल किया गया था। इसे लेकर हमने अलग करने की मांग की थी। दवाओं को लेकर जीएसटी काउंसिल में कुछ राहत देने को लेकर वित्त मंत्री से हमारी तरफ से बात की जाएगी। हमने पत्र में बताया है कि भारत में मरीज को 70 फीसदी खर्चा ओपीडी इलाज व दवा में ही होता है। इसे लेकर कम करना चाहिए था। हमें लगा था कि कोविड के दौरान हेल्थ की समस्याओं को लेकर अनुभव को देखते हुए इस बार हेल्थ का बजट बढ़ाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सर्वाइकल कैंसर टीकाकरण और सिकल सेल अभियान को लेकर इस बजट में कुछ नहीं बोला गया, इस बारे में कोई बात ही नहीं की गई।
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