watch-tv

मुद्दे की बात : अब क्या फिर पलटी मारेंगे नीतीश !

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

Listen to this article

बिहार को नहीं मिलेगा विशेष राज्य का दर्जा, यही खास मुद्दा था जेडीयू के एनडीए में लौटने का 

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बाद सेंट्रल हॉल में सात जून को एनडीए की बैठक हुई थी। उस समय बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पीएम नरेंद्र मोदी के सामने कहा था कि अब तो बिहार के सभी काम हो ही जाएंगे। जो कुछ भी बचा हुआ है, उसको भी कर देंगे। हालांकि अभी तक तो ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा भी नहीं मिलेगा। इस बार एनडीए को जनता दल युनाइटेड का समर्थन देते वक्त सीएम नीतीश ने सबसे बड़ा तर्क यही दिया था कि एनडीए सरकार से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाएंगे।
जबकि केंद्र की मोदी सरकार ने इस बारे में 22 जुलाई को संसद में जानकारी भी दे दी है। बिहार को विशेष दर्जा दिए जाने से संबंधित सवाल बिहार के झंझारपुर लोकसभा सीट से जनता दल यूनाइडेट यानि जेडीयू सांसद रामप्रीत मंडल ने पूछा था। उन्होंने मालूम किया था कि क्या केंद्र सरकार के पास बिहार को विशेष दर्जा देने की कोई योजना है ? जवाब में केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि राष्ट्रीय विकास परिषद यानि एनडीसी के पैमानों के मुताबिक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना संभव नहीं है। चौधरी ने कहा कि एनडीसी ने विशेष राज्य के लिए पहाड़ी या दुर्गम जगह पर बसाहट, कम जनसंख्या घनत्व और बड़ी संख्या में आदिवासी आबादी होने की शर्त रखी है। बॉर्डर पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों पर बसे या आर्थिक और इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में पिछड़े राज्यों को भी विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है। साल 2012 में यूपीए सरकार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की जरूरतों की स्टडी के लिए इंटर मिनिस्ट्रियल ग्रुप बनाया था। जिसने 30 मार्च, 2012 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें कहा गया था कि एनडीसी के मानकों के आधार पर बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देना संभव नहीं है।
यहां गौरतलब है कि बिहार में राजद और जदयू समेत कई पार्टियां विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठाती रही हैं। वहां यह सबसे अहम चुनावी मुद्दा रहता है। बिहार में तो अब भाजपा और जदयू की ही साझा सरकार है। लिहाजा सियासत के मंझे खिलाड़ी होने के नाते राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने नीतीश का इस्तीफा मांगा है। दिल्ली में उन्होंने याद दिलाते नीतीश कुमार को उकसाया कि आप तो कहते थे, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाएंगे। इसलिए अब आपको इस्तीफा दे देना चाहिए। इधर, संसद का मानसून सत्र शुरू होने के पहले 21 जुलाई को ऑल पार्टी मीटिंग में जदयू के राज्यसभा सांसद संजय झा ने भी कहा था कि हमारी पार्टी की शुरू से मांग है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले। अगर इसमें कोई तकनीकी समस्या है तो विशेष पैकेज जरूर मिले। हम केंद्र की नीतियों में बदलाव चाहते हैं, जो बिहार को श्रम आपूर्ति का केंद्र मानता है। साल 2005 में नीतीश ने पहली बार बिहार के सीएम बनते ही कहा था कि झारखंड के बिहार से अलग होने के बाद बिहार एक पिछड़ा और गरीब राज्य बनकर रह गया है। उसके बाद से नीतीश लगातार बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग करते रहे हैं। शायद उनके इसी स्टैंड से मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग जदयू से जुड़ा रहा है। 2009 के लोकसभा चुनाव के पहले नीतीश ने कहा था कि एनडीए और यूपीए में से जो भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए तैयार होगा, हम उसका समर्थन करेंगे। बीते साल अक्टूबर में जब बिहार की नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए, तब भी विशेष दर्जे की मांग दोहराई। 24 जनवरी 2024 को कर्पूरी ठाकुर की जयंती के मौके पर नीतीश ने कहा कि बिहार की तरक्की के लिए विशेष दर्जा दिए जाने की जरूरत है। पिछले साल नीतीश ने कहा था कि बिहार में करीब 94 लाख गरीब परिवार रहते हैं। 5 साल के लिए विशेष राज्य का दर्जा मिले। जिससे बिहार सरकार को हर गरीब घर के लिए 2.5 लाख रुपए जुटाने में मदद मिलेगी।
अब जानिए कि इस मांग के पीछे क्या खास बात है। दरअसल विशेष राज्य का दर्जा पाने वाले सूबों को केंद्र सरकार से मिलने वाली राशि में से 90 फीसदी अनुदान और 10 फीसदी रकम बिना ब्याज के कर्ज के तौर पर मिलती है। जबकि सामान्य राज्यों को केंद्र सरकार की तरफ से 30 फीसदी राशि अनुदान के रूप में और 70 फीसदी राशि कर्ज के रूप में दी जाती है। विशेष राज्यों को एक्साइज, कस्टम, कॉर्पोरेट, इनकम टैक्स में भी रियायत मिलती है। केंद्रीय बजट में प्लान्ड खर्च का 30 फीसदी हिस्सा विशेष राज्यों को मिलता है। विशेष राज्यों द्वारा खर्च नहीं हुआ पैसा भी अगले वित्त वर्ष के लिए जारी हो जाता है। यहां बता दें कि 49 साल पहले 3 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला था। साल 1969 तक केंद्र के पास राज्यों को अनुदान देने का कोई निश्चित मानक नहीं था। तब केंद्र की ओर से राज्यों को सिर्फ योजना आधारित अनुदान ही दिए जाते थे। 1969 में पांचवें वित्त आयोग ने गाडगिल फॉर्मूले के तहत पहली बार 3 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया। इनमें असम, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर थे। अब तक देश में 14 राज्यों को विशेष दर्जा मिला है। 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अब नॉर्थ ईस्ट और पहाड़ी राज्यों को छोड़कर किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता।
सबसे गौरतलब पहलू, संविधान में विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रावधान ही नहीं है। 1969 में पहली बार पांचवें वित्त आयोग के सुझाव पर 3 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला। इनमें वे राज्य थे, जो अन्य राज्यों की तुलना में भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक संसाधनों के लिहाज से पिछड़े थे। नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल ने पहाड़, दुर्गम क्षेत्र, कम आबादी, आदिवासी इलाका, अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर, प्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व के आधार पर इन राज्यों की पहचान की। बिहार को लेकर सीएम नीतीशा के भी तर्क यही हैं कि राज्य की गरीबी और प्राकृतिक संसाधनों की कमी के अलावा, राज्य में सिंचाई के लिए पानी की कमी है। राज्य के उत्तरी इलाके में नियमित बाढ़ और दक्षिणी हिस्से में सूखे की समस्या रहती है। साथ ही यह भी कहना है कि राज्य के बंटवारे में उद्योगों झारखंड में चले गए, जिससे बिहार में रोजगार की कमी हो गई। इस लिहाज से राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए। अब सबसे बुनियादी सवाल फिर यही है कि तकनीकी दिक्कत के चलते ऐसा नहीं हो सकेगा। लिहाजा इन हालात में क्या बिहार की जनता के दबाव में नीतीश भाजपा से नाता तोड़ बिहार में फिर से राजद का हाथ थाम लेंगे या केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेंगे ? सियासी-माहिरों की नजर में नीतीश मौकापरस्ती की राजनीति के पुरोधा माने जाते हैं। लिहाजा वह सत्ता-सुख की खातिर कोई भी कदम, कभी भी उठा सकते हैं।
————

Leave a Comment