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मुद्दे की बात : जेल-रुल्स में मैला ढोना जातिगत कर्तव्य !

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यूपी सरकार को फटकार लगा सुप्रीम कोर्ट ने 17 राज्य सरकारों से मांगा जवाब

क्या वाकई हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में रह रहे हैं ? यह इसलिए सोचना पड़ेगा कि हम आज भी मानसिक गुलाम ही नजर आते हैं, जैसे आजादी से अंग्रेजी हुकूमत के गुलाम थे। दरअसल देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश समेत कुल 17 राज्यों में आज भी  जेल की नियमावली में मैला ढोनe जातिगत कर्तव्य है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने पिछले दिनों इसी मुद्दे पर  उत्तर प्रदेश सरकार के वकीलों को कड़ी फटकार  लगाई। उन्होंने राज्य सरकार से जवाब-तलबी करते सवालिया लहजे में कहा कि जेल के नियम 158 में मैला ढोने के कर्तव्य का ज़िक्र है। यह मैला ढोने का कर्तव्य क्या है ? इसमें मैला ढोने वालों की जाति का उल्लेख है। इसका क्या मतलब है ? सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को दरअसल यह फटकार इसलिए लगानी पड़ी, क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया था कि यूपी की जेलों में क़ैदियों के साथ कोई जातिगत भेदभाव नहीं होता है।

इस दावे को सुनने के बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने उत्तर प्रदेश की जेल नियमावली के कुछ प्रावधान पढ़ते हुए उन्हें फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत 17 राज्यों से जेल के अंदर जातिगत भेदभाव और जेलों में क़ैदियों को जाति के आधार पर काम दिए जाने पर जवाब-तलब कर लिया। यह बात तो दीगर है कि इन सत्रह राज्यों की सरकारें अपनी खाल बचाने के लिए माननीय अदालत में क्या जवाब पेश करेंगी। लाख टके का सवाल यही है कि आजादी के इतने सालों बाद भी सभी भारतीय नागरिकों को समानता का अधिकार आखिर क्यों हासिल नहीं हो सका ? दलित, पिछड़े समाज के चंद लोगों को सर्वोच्च संवैधानिक पदों और केंद्र-राज्यों की सरकारों में शामिल कर सबको समान अधिकार की दुहाई देना क्या महज दिखावा नहीं है ? यह तो शुक्र है कि देश की सर्वोच्च अदालत के चीफ जस्टिस ने ही जेल नियमावली के मामले में यूपी सरकार को फटकार लगा सत्ता-शीर्ष पर बैठे कथित जनप्रतिनिधियों को आइना दिखा दिया।

 

 

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