मनोज कुमार अग्रवाल
भारतीय रेलवे विश्व के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में से एक है, जहाँ लाखों लोग प्रति दिन परिवहन के लिये इस पर निर्भर करते हैं। आँकड़े बताते हैं कि पिछले दो दशकों में पटरी से गाड़ी उतरने के मामले (जो अधिकांश दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं) सहस्राब्दी के अंत में प्रति वर्ष लगभग 350 से घटकर वर्ष 2021-22 में मात्र 22 रह गए लेकिन बीते साल बालासोर के बहनागा बाज़ार रेलवे स्टेशन पर हुई दुर्घटना में बड़ी जनहानि हुई जिससे हमारे रेलवे संचालन तंत्र में छिपी तमाम सुरक्षा कमजोरियां उजागर हो गईं। ऐसे मामले बेहतर सुरक्षा उपायों और अधोसंरचना की आवश्यकता को उज़ागर करते हैं। इस दुर्घटना में बड़ी संख्या में लोगों की मौत यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कारण है कि रेलवे उन सभी लोगों के लिये सुरक्षित नहीं है जो इसका उपयोग करते हैं।
सार्वजनिक परिवहन होने के नाते इसके सस्ता और सुरक्षित होने की अपेक्षा की जाती है परंतु लगातार किराए बढ़ाने के बावजूद सुविधाओं और सुरक्षा के मामले में अक्सर रेलवे में लापरवाही के मामले सामने आते रहते हैं।पिछले एक महीने में ही खई हादसे हुए हैं जिनकी समीक्षा करने से पता चलता है कि अभी भी हमारे रेलवे सिस्टम में भारी तकनीकी कमजोरी है जिनके रहते सुरक्षित यात्रा का सपना संजोने वाले हकीकत से दूर हैं।
ताजा हादसा 18 जुलाई को मनकापुर-गोंडा के बीच झिलाही स्टेशन के पास हुआ है।चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस को चला रहे लोको पायलट ने खुलासा किया है कि हादसे के पहले उन्होंने धमाके की आवाज सुनी थी। इसकी पुष्टि पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीआरओ पंकज कुमार सिंह ने की है। दुर्घटना की कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी ने जांच के आदेश दिए हैं। वहीं, इस हादसे में अभी तक चार यात्रियों के मरने की पुष्टि की गई है, जबकि 31 यात्री घायल हुए हैं।
इसी तरह बीते माह 17 जून को बिहार में ‘कंचनजंगा एक्सप्रैस’ रेल दुर्घटना, जिसमें 14 यात्री मारे गए थे, इसके बाद से पिछले मात्र 2 सप्ताह में कई रेल हादसे सामने आ चुके हैं। 2 जुलाई को अम्बाला-दिल्ली ट्रैक पर ‘तरावड़ी’ रेलवे स्टेशन के निकट चलती मालगाड़ी से 9 कंटेनर गिरने के परिणामस्वरूप 4 पहिए ट्रैक से उतर गए और 3 किलोमीटर तक का ट्रैक क्षतिग्रस्त हो गया। 4 जुलाई को जालंधर से जम्मू तवी जा रही मालगाड़ी कठुआ से 2 किलोमीटर पहले खराब हो गई। बताया जाता है कि माधोपुर रेलवे स्टेशन को क्रॉस करने के दौरान चढ़ाई के कारण इंजन आगे नहीं चढ़ पाया और ड्राइवर ने नीचे उतर कर देखा तो पहिए स्लिप कर रहे थे। 6 जुलाई को नासिक और मुम्बई के बीच चलने वाली ‘पंचवटी एक्सप्रेस’ के डिब्बे ठाणे के ‘कसारा’ में इंजन से अलग हो गए।इसी 12 जुलाई को बिहार के पटना जिले में दानापुर मंडल के ‘दनियावां’ स्टेशन के निकट एक मालगाड़ी के 6 डिब्बे पटरी से उतर जाने के कारण फतुहा इस्लामपुर डिवीजन पर रेल यातायात अवरुद्ध हो गया। 15 जुलाई को महाराष्ट्र के ठाणे जिले में ‘लोकमान्य तिलक टर्मिनस-गोरखपुर एक्सप्रेस’ के एक डिब्बे के ब्रेक जाम हो जाने के कारण पहियों के निकट आग लग गई जिसे अग्निशमन यंत्रों की सहायता से बुझाया गया और अब 18 जुलाई को उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में ‘मोतीगंज’ थाना क्षेत्र के ‘पिकौरा’ गांव के निकट जोरदार झटका लगने से चंडीगढ़ से डिब्रूगढ़ जा रही ‘चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ साप्ताहिक एक्सप्रैस ट्रेन’ के 14 डिब्बे पटरी से उतर जाने से 4 व्यक्तियों की मौत तथा 31 घायल हो गए।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार ट्रेन से बाहर निकलने के बाद यात्रियों को निकट की सड़क तक पहुंचने के लिए ट्रैक के दोनों ओर खेतों में घुटनों तक भरे पानी से गुजरना पड़ा। मौके पर पहुंचे जिलाधिकारियों ने यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए बसों की व्यवस्था की।दुर्घटना के कारण कटिहार-अमृतसर एक्सप्रैस, आम्रपाली एक्सप्रैस, जम्मू- तवी अमरनाथ एक्सप्रैस और गुवाहाटी-श्रीमाता वैष्णो देवी कटरा एक्सप्रैस समेत 10 रेलगाड़ियों को मार्ग बदलकर संचालित करना पड़ा।
यहां गौर तलब है कि रेलवे में आधुनिक तकनीक लाकर दुर्घटनाएं कम करने वाली योजनाओं पर गत 5 वर्षों में 1 लाख करोड़ रुपए के लगभग राशि खर्च किए जाने के बावजूद रेल दुर्घटनाओं पर नियंत्रण सपना बना हुआ है।
यूपी के गोंडा में चंडीगढ़ डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस के हादसे के पीछे साजिश की आशंका भी सामने आ रही है। ट्रेन के लोको पायलट के अनुसार हादसे से ठीक पहले उसने धमाके की आवाज सुनी थी। लोको पायलट की सूचना के बाद रेलवे प्रशासन ने कई एंगल पर जांच शुरू कर दी है। पूर्वोत्तर रेलवे के सीपीआरओ पंकज सिंह के अनुसार सीआरएस (कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी) की जांच जारी है। सीएम योगी ने मामले का संज्ञान लिया है।
हादसा बड़ा होने के बाद भी जानमाल का नुकसान कम हुआ।एक्सपर्ट बता रहे हैं कि इसके पीछे वजह क्या रही है।रेल जानकार बताते हैं कि पिछले माह हुए कंचनजंगा एक्सप्रेस ट्रेन हादसे में तीन कोच पटरी से उतरे थे, जिसमें 10 से ज्यादा यात्रियों की मौत हो गयी थी और करीब 50 से अधिक यात्री घायल हो गए थे, जबकि चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस ट्रेन हादसे में 12 डिब्बे पटरी से उतरे हैं, इसके बावजूद जानमाल का नुकसान कम हुआ है। हादसे में कम नुकसान होने की सबसे बड़ी वजह आसपास मिट्टी और बारिश रही है।जहां पर ट्रेन हादसा हुआ है, वहां पर लगातार बारिश होने की वजह से मिट्टी गीली हो चुकी थी ऐसे में जब ट्रेन पटरी से उतरी तो कोच ट्रैक के आसपास गिरे, गीली मिट्टी होने की वजह से कोच मिट्टी में धंस गए और रगड़कर आगे नहीं बढ़े।इस तरह गीली मिट्टी ने कुशन का काम किया और कोच में झटके कम लगे अगर आसपास मिट्टी न होती और पक्का प्लेटफार्म होता तो जानमाल का नुकसान काफी अधिक होता क्योंकि ट्रेन की स्पीड करीब 80 स्पीड किमी. प्रति घंटे की थी।यानी स्पीड कम नहीं थी।इतनी स्पीड में ट्रेन के पटरी से उतरने से अगर नीचे पक्का प्लेटफार्म होता तो कोच एक दूसरे को रगड़ते हुए आगे जाते और आपस में टकराते जिससे कोच में सवार यात्रियों को झटके ज्यादा लगते, जानमाल का ज्यादा नुकसान होता।
एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ समय से रेलगाड़ियों को दुर्घटना रहित करने के लिए स्वचालित ट्रेन-सुरक्षा प्रणाली (कवच) लागू करने की दिशा में कदम उठाए गए हैं परंतु इस तकनीक को लागू करने की रफ्तार इतनी धीमी है कि आने वाले एक दशक में भी रेलवे का पूरा नेटवर्क इस तकनीक से लैस होता दिखाई नहीं दे रहा। रेलवे सुरक्षा आयुक्त (सी. आर. एस.) ने ‘कंचनजंगा एक्सप्रैस’ दुर्घटना की जांच संबंधी अपनी रिपोर्ट में ‘कवच प्रणाली’ को सर्वोच्च प्राथमिकता पर लागू करने की सिफारिश की है जिस पर तुरंत अमल करने की जरूरत है।इसके अलावा रेल यात्रा सुरक्षित बनाने के लिए भारतीय रेलों की कार्यप्रणाली और रख-रखाव में तुरंत बहुआयामी सुधार लाने तथा रेलगाड़ियों के परिचालन जैसी महत्वपूर्ण ड्यूटी पर तैनात होने के बावजूद लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों के विरुद्ध कठोरतम कार्रवाई करने की जरूरत है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को सुरक्षा प्रबंधों को तत्काल त्वरित गति से लागू करने के लिए युद्ध स्तर पर अंजाम देना चाहिए ।(विनायक फीचर्स)(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)