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व्यंग्य : भांति-भांति के बाबा 

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विवेक रंजन श्रीवास्तव

बचपन में हम भी बाबा हुआ करते थे! हर वह शख्स जो हमारा नाम नहीं जानता था, हमें प्यार से बाबा कह कर पुकारता था। इस बाबा गिरी में हमें लाड़, प्यार और कभी जभी चाकलेट वगैरह मिल जाया करती थी। बाबा शब्द से यह हमारा पहला परिचय था।अपनी इसी उमर में हमने बा बा ब्लैक शीप वाली राइम भी सीखी थी। जब कुछ बड़े हुये तो बालभारती में सुदर्शन की कहानी हार की जीत पड़ी। बाबा भारती और डाकू खडग़सिंग के बीच हुये संवाद मन में घर कर गये। बाबा का यह परिचय संवेदनशील था। कुछ और बड़े हुये तो लोगों को राह चलते अपरिचित बुजुर्ग को भी बाबा का सम्बोधन करते सुना। इस वाले बाबा में किंचित असहाय होने और उनके प्रति दया वाला भाव दिखा। कुछ दूसरे तरह के बाबाओ में कोई हरे कपड़ों में मयूर पंखो से लोभान के धुंयें में भूत, प्रेत, साये भगाता मिला तो कोई काले कपड़ों में शनिवार को तेल और काले तिल का दान मांगते मिला। कुछ वास्तविक बाबा आत्म उन्नति के लिये खुद को तपाते हुये भी मिले। कुछ तंत्र मंत्र के ज्ञानी निरभिमानी थे तो कुछ वेश भूषा आचार व्यवहार की मनमानी करते मिले। कुछ के पीछे दुनियां दीवानी मिली तो कुछ दोहरे चरित्र से माया के दीवाने बाबा भी मिले।

 

कष्टों दुखों से घिरे दुनिया वालो को बाबाओं की बड़ी जरूरत है। किसी की संतान नहीं है, किसी की संतान निकम्मी है, किसी को रोजगार की तलाश है, किसी को पत्नी या प्रेमिका पर भरोसा नहीं है, किसी को लगता है कि उसे वह सब नहीं मिलता जिसके लायक वह है, कोई असाध्य रोग से पीडि़त है तो किसी की असाधारण महत्वाकांक्षा वह साधारण तरीकों से पूरी कर लेना चाहता है, वगैरह वगैरह । हर तरह की समस्याओं का एक ही शार्ट कट निदान होता है बाबा। बाबा भस्म, पानी,भभूत, फूल, धुएं, प्रसाद से कठिनाई का हल ढूंढने का मनोविज्ञान जानते हैं,इसलिये प्राय: लोगों को एक बाबा की तलाश होती है,जो उन्हें विभ्रम की स्तिथि में राह बता सके, थोड़ा ढाढ़स बंधा सके।

 

एक अच्छे बाबा को किंचित कालिदास की तरह का गुणवान होना चाहिए, अच्छा हो कि वह कुछ वाचाल हो, दुनियादारी से थोड़ा बहुत वाकिफ हो,कुछ जुमले कहावतें उसे कंठस्थ हों, टेक्टफुल हो, थोड़ा बहुत आयुर्वेद और ज्योतिष जानता हो तो बेहतर, चाल चरित्र में ठीक ठाक हो तो बात ही क्या। ऐसा बंदा सरलता से बाबा के रूप में महिमा मण्डित हो सकता है। बाबा बाजी वाले बाबाओं के रूप में चकाचौंध होती है। बड़े-बड़े आश्रम, लकदक गाडिय़ों का काफिला भगवा वस्त्रों में चेले चेलियों की शिष्य मंडली बन ही जाती है। ऐसे बाबाओं के प्रवचन के पंडाल होते हैं, पंडालो के बाहर बाबा जी के प्रवचनों की डी वी डी, किताबें, देसी दवाईयां विक्रय करने के स्टाल लगाते हैं। टी वी चैनलो पर इन बाबाओं के टाईम स्लाट होते हैं। इन बाबाओं को दान देने के लिये बैंको के एकाउंट नम्बर होते हैं। कोई बाबा हवा से सोने की चेन और घड़ी निकाल कर भक्तों में बांटने के कारण चर्चित रहे तो कोई जमीन में हफ्ते दो हफ्ते की समाधि लेने के कारण, कोई योग गुरु होने के कारण तो कोई आयुर्वेदाचार्य होने के कारण सुर्खियों में रहते हैं। बड़े बड़े मंत्री संत्री, अधिकारी, व्यापारी इन बाबाओं के चक्कर लगाते हैं। ही बाबा और शी बाबा के अपने अपने छोटे बड़े ग्रुप सुर्खियों में रहे हैं।

 

बाबाओं के रहन सहन आचार विचार के गहन अध्ययन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि किसी को बाबा बनाने के लिये प्रारंभिक रूप से कुछ सकारात्मक अफवाह फैलानी होती है। आम आदमी की भीड़ चमत्कार को नमस्कार करते आई है। कुछ महिमा मण्डन, झूठा सच्चा गुणगान करके दो चार विदेशी भक्त या समाज के प्रभावशाली वर्ग से कुछ भक्त जुटाने पड़ते हैं। एक बार भक्त मण्डली जुटनी शुरु हुई तो फिर क्या है, कुछ के काम तो गुरु भाई होने के कारण ही आपस में निपट जायेंगे, जिनके काम न हो पा रहे होंगे बाबा जी के रिफरेंस से मोबाईल करके निपटवा देंगे।

 

हमारे द्वारा दीक्षित बाबा जी को हम स्पष्ट रूप से समझा देंगे कि उन्हें सदैव शाश्वत सत्य ही बोलना है, कम से कम बोलना है। गीता के कुछ श्लोक, और रामचरित मानस की कुछ चौपाईयां परिस्थिति के अनुरूप बोलनी है। जब संकट का समय निकल जायेगा और व्यक्ति की समस्या का अच्छा या बुरा समाधान हो जावेगा तो बोले गये वाक्यों के गूढ़ अर्थ लोग अपने आप निकाल लेंगे। बाबाओं के पास लोग इसीलिये जाते हैं क्योंकि वे दोराहे पर खड़े होते हैं और स्वयं समझ नहीं पाते कि कहां जायें, वे नहीं जानते कि उनका ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो कोई बाबा जी भी नहीं जानते कि कौन सा ऊंट किस करवट बैठेगा, पर बाबा जी, ऊंट के बैठते तक भक्त को दिलासा और ढाढ़स बंधाने के काम आते हैं। यदि ऊंट मन माफिक बैठ गया तो बाबा जी की जय जय होती है, और यदि विपरीत दिशा में बैठ गया तो पूर्वजन्मों के कर्मो का परिणाम माना जाता है, जिसे बताना होता है कि बाबा जी ने बड़े संकट को सहन करने योग्य बना दिया, इसलिये फिर भी बाबा जी की जय जय।

 

बाबा कर्म में हर हाल में हार की जीत ही होती है भले ही भक्त को बाबा जी का ठुल्लू ही क्यों न मिले। बाबा जी पर भक्त सर्वस्व लुटाने को तैयार मिलते हैं, भेड़ चाल में बाबा की चरण रज स्पर्श में जान गंवा बैठते हैं, भले ही बाबा खुद में ब्लैकशीप ही क्यों न हों। (विनायक फीचर्स)

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