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मुद्दे की बात : यूपी में बीजेपी के अंदर संगठन बनाम सरकार के पीछे क्या ?

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असल में उत्तर प्रदेश भाजपा में फिर  ‘कुर्सी-कलह’ तेज !

सियासी-कहावत है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है। इस लोकसभा चुनाव में भी यही कहावत काफी हद तक सच हुई। यूपी में बीजेपी को कांग्रेस-सपा गठजोड़ ने करारी शिकस्त दी। भाजपा 2019 की तुलना में 29 सीटों का नुकसान खा गई। खैर, जोड़तोड़ से केंद्र में बीजेपी ने तीसरी बार सरकार तो बना ली, मगर पहले जैसा इकबाल बुलंद नहीं रहा। उलट जेडीयू-टीडीपी का समर्थन लेकर पीएम मोदी अब दो बड़े मौकापरस्त नेताओं नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायड़ू के यसमैन जरुर बन गए। ऐसे में जाहिर तौर पर लोस चुनाव में यूपी के अंदर सीटों के बड़े नुकसान से पीएम मोदी और भाजपा नेतृत्व भी नाखुश है। यह भी जाहिर है कि उनकी नाखुशी दबंग-इमेज वाले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के प्रति ही होगी।

दिल्ली में इस ‘कुर्सी की कलह’ का सीधा असर यूपी में नजर आ रहा है। लंबे समय से सीएम योगी से खफा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या अब खुलकर उनके खिलाफ मोर्चा संभाल चुके हैं। भाजपा नेतृत्व के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इस सबसे बडे़ प्रदेश का पार्टी नेतृत्व-कार्यकर्ता भी मौर्या के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्‌डा से मुलाकात के बाद भी मौर्या के बगावती तेवर बरकरार हैं। उन्होंने फिर से अपने सोशल अकाउंट X पर लिखा कि संगठन सरकार से बड़ा होता है। इसी बीच भाजपा की अंतर्कलह पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने संजीदा तंज कसा। उन्होंने तो साफ लिखा कि भाजपा की कुर्सी की लड़ाई की गर्मी में उप्र में शासन-प्रशासन ठंडे बस्ते में चला गया है।

यहां काबिलेजिक्र है कि चार दिन पहले डिप्टी सीएम मौर्या ने भाजपा की प्रांतीय कार्यसमिति की बैठक में लोस चुनाव में हार की वजह संगठन से बड़ी सरकार होना बताया था। उनके सीधे निशाने पर सीएम योगी ही थे। जबकि योगी ने बला सिर से टालने की मंशा से हार की वजह अति-आत्मविश्वास बताया था। वह सांकेतिक लहजे में पार्टी के केंद्रीय मंत्रियों-दिग्गज नेताओं पर तंज कस रहे थे। खैर, इस एपीसो के बाद मौर्य को नड्‌डा ने दिल्ली बुलाया। सूत्रों की मानें तो आलाकमान ने सरकार-संगठन में तालमेल बनाए रखने और बयानबाजी से भी बचने की नसीहत दी। इसके बावजूद मौर्या फिर बोले, इतना ही नहीं, यूपी भाजपा उनके समर्थन में सोशल मीडिया दो पोस्ट किए गए थे।

बागी सुर थम नहीं रहे, बुधवार को उत्तर प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष भूपिंदर सिंह चौधरी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात के बाद चर्चाओं ने ज़ोर पकड़ा। इस ज़ोर में उफान तब आ गया जब योगी आदित्यनाथ राज्यपाल आनंदी बेन से मिलने राजभवन पहुंच गए। अब सबसे अहम सवाल यही है कि योगी बनाम मौर्या मामला आखिर किस वजह से बना। इसके लिए इतिहास के पन्ने पलटें तो तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाती है। दरअसल, साल 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव के समय केशव मौर्य भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष थे। पार्टी को बंपर चुनावी कामयाबी मिली। जबकि मुख्यमंत्री की कुर्सी योगी आदित्‍यनाथ को मिल गई। केशव को डिप्‍टी सीएम बनकर संतोष करना पड़ा।

हालात इसके बाद और बिगड़े, अकसर केशव और योगी के बीच मन-मुटाव की खबरें आती रहीं। फिर साल 2022 के विधानसभा चुनाव में केशव अपनी विधानसभा सीट सिराथू से हार गए। मौर्या की हार को उस वक्‍त पार्टी में भी दबी आवाज में कहा गया कि वो हारे नहीं, साजिश के तहत हराए गए। इसके बाद पार्टी में मौर्या की स्थिति कमजोर मानी गई। अब लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पार्टी के अंदरखाने योगी की स्थिति कमजोर मानी जा रही है। इसके चलते फिर से योगी और केशव के बीच कलह तेज हो गई। सियासी-जानकारों की मानें तो कुल मिलाकर यह बीजेपी में संगठन बनाम सरकार की आड़ में असल में ‘कुर्सी-कलह’ ही है।

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