थोक-फुटकर महंगाई दरें बढ़ी, सरकार मस्त, जनता पस्त
इसी लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और सीनियर कांग्रेसी नेता कमलनाथ ने बढ़ती महंगाई का मुद्दा उठाया था। सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के नेताओं ने आरबीआई की सर्वे रिपोर्ट पर आधारित उनकी गंभीर टिप्पणी को ही मखौल में उड़ा दिया था। खैर, लोस चुनाव में जनता के बुनियादी मुद्दों की ठोस तरीके से कोई भी प्रमुख दल बात नहीं कर रहा है। लिहाजा कमलनाथ का उठाया मुद्दा भी चुनावी शोर में दब गया था। चुनाव निपटने के बाद एकबार फिर जनता के बीच से ही महंगाई की मार से कराहने लगी तो सुगबुगाहट शुरु हो गई।
ताजा मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बीते जून महीने में थोक महंगाई 3.36% पर जा पहुंची। काबिलेजिक्र है कि यह महंगाई दर पिछले 16 महीनों में सबसे ऊपरी स्तर पर है। आम आदमी के लिए सबसे बड़ी फिक्र की बात यह है कि खाने-पीने के सामान तक महंगे हुए हैं। बता दें कि 15 जुलाई को जारी किए आंकड़ों के अनुसार जून में थोक महंगाई बढ़कर 3.36% पर पहुंच गई है। जबकि फरवरी, 2023 में थोक महंगाई दर 3.85% रही थी। वहीं, इस साल के मई महीने में थोक महंगाई बढ़कर 15 महीनों के ऊपरी स्तर 2.61% पर जा पहुंची थी। इससे पहले अप्रैल, 2024 में महंगाई 1.26% रही थी, जो 13 महीने का उच्चतम स्तर था। दूसरी तरफ बीते शुक्रवार को रिटेल महंगाई में भी तेजी देखने को मिली थी।
जून में खाद्य महंगाई दर 1.28% बढ़ी यानि खाद्य महंगाई दर मई के मुकाबले 7.40% से बढ़कर 8.68% हो गई। नतीजतन रोजाना की जरूरत वाले सामानों की महंगाई दर 7.20% से बढ़कर 8.80% हो गई। इतना जरुर है कि इसी दौरान फ्यूल और पावर की थोक महंगाई दर 1.35% से घटकर 1.03% रही। जबकि मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट्स की थोक महंगाई दर 0.78% से उछाल लेकर 1.43% जा पहुंची। अर्थशास्त्रियों की मानें तो थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सैक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए डब्ल्यूपीआई यानि थोक मूल्य सूचकांक को कंट्रोल कर सकती है।
जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। डब्ल्यूपीआई में ज्यादा वेटेज मैटल, कैमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है। बुनियादी सवाल है कि आखिर महंगाई कैसे मापी जाती है ? भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल यानि खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानि सीपीआई भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है।
लिहाजा महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02% और फ्यूल एंड पावर 14.23% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07% और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है। अब गौर करें कि जून महीने में रिटेल महंगाई बढ़कर 5.08% पर पहुंच गई है। यह महंगाई का 4 महीने का उच्चतम स्तर है। अप्रैल में महंगाई 4.85% रही थी। वहीं एक महीने पहले मई में महंगाई 4.75% रही थी। नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस ने शुक्रवार 12 जुलाई को ये आंकड़े जारी किए थे।
दरअसल खाने-पीने का सामान महंगा होने से महंगाई बढ़ी है। खाद्य महंगाई दर 8.69 से बढ़कर 9.36% हो गई है। वहीं शहरी महंगाई भी महीने-दर-महीने आधार पर 4.21% से बढ़कर 4.39% पर आ गई है। ग्रामीण महंगाई दर भी 5.34% से बढ़कर 5.66% पर पहुंच गई है। कुल मिलाकर वह फिल्मी गीत फिर प्रासंगिक हो गया है कि महंगाई डायन खाय जात है। हालांकि सत्ता सुख भोगने वाले जनप्रतिनिधियों को अब जनता के दुखों से कोई सरोकार नहीं लगता। तभी तो सत्तापक्ष इस तरफ से पूरी तरह आंख मूदे है। औपचारिक तौर पर भी महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने दो-शब्द भी नहीं कहे।
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