बीजेपी ने पल्ला झाड़ा तो सपा, बसपा, कांग्रेस हमलावर
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सिरे से खारिज कर दिया इस तरह के किस भी प्रस्ताव को
साज़िश या शिगूफा बे मौसम का मुददा !
शबी हैदर
लखनउ 12 जुलाई : भारतीय जनता पार्टी अभी संविधान बदलने के विपक्ष के आरोपों का ठीक से जवाब भी नहीं दे पायी थी कि ताजी मुसीबत दिल्ली विश्वविद्यालय के लॉ फैकेल्टी के कुछ शिक्षकों द्वारा पाठ्यक्रम में मनुस्मृति को शामिल करने के प्रस्ताव ने बड़ा दी है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि एकेडमिक काउंसिल दिल्ली विश्वविद्यालय के शैक्षिक विषयों पर निर्णय लेने वाली सबसे बड़ी संस्था है। डीयू की लॉ फैकल्टी द्वारा बनाये गये प्रस्ताव में कहा गया था कि तीसरे साल के छात्रों को मनुस्मृति के दो अध्याय पढ़ाए जाएं। इस प्रस्ताव के बाद विवाद शुरू हो गया, कई शिक्षकों ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई। दिल्ली विश्वविद्यालय के डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने अपना विरोध दर्ज कराते हुए कहा था कि मनुस्मृति पढ़ना प्रोग्रेसिव एजुकेशन सिस्टम के खिलाफ होगा।
हालांकि केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस प्रस्ताव को खारिज कर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है। लेकिन कहावत है न कि जंगल में आग तेजी से फैलती है। उसी कहावत की तर्ज पर विपक्ष ने इस प्रस्ताव को लपक लिया है और वह सरकार पर हमलावर है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने साफ कर दिया है कि सरकार संविधान के प्रति प्रतिबद्ध हैं। सरकार संविधान की सच्ची भावना और इसको बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। किसी भी लिपि के किसी भी विवादास्पद हिस्से को शामिल करने का कोई सवाल ही नहीं है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के फैसले से पहले ही दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह कह चुके थे कि एलएलबी पाठ्यक्रम में ‘मनुस्मृति’ को शामिल करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का कहना है कि उन्होंने इस संबंध में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति से पूछताछ और बात की है। शिक्षा मंत्री के कहा, “कुलपति ने मुझे आश्वासन दिया और बताया कि कुछ लॉ फैकल्टी शिक्षकों ने प्रस्ताव दिया कि न्यायशास्त्र अध्याय में बदलाव किया जाए, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया। शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय एकेडमिक काउंसिल की बैठक है और काउंसिल की बैठक में भी ऐसा कोई विषय विचाराधीन नहीं है।”
इस मुददे पर राजनीतक दलों और आम जनता की राय
लालजीत यादव कहते हैं कि संविधान विरोधी है, संविधान से देश चलता है, यह गलत है। जिन लोगों ने इस तरह का प्रस्ताव पेश किया है उनपर कार्रवाई की जानी चाहिए। मंत्री जी ने नाकार दिया है यह स्वागत योग्य कदम है। आखिर पाठयक्रम में मनुस्मृति को क्यों लागू किया जा रहा है। गरीब का बेटा और आईएएस का बेटा एक ही शिक्षा ग्रहण करें यह कोई नहीं बोल रहा है। भला हो सरकार का कि उसने संजीदगी से ध्यान दिया। मैं सरकार की सरहंना करता हूं कि इसे लागू नहीं किया। प्रोफेसर पर कार्रवाई हो भ्रम फैलाने के लिए।
अंकुर सक्सेना, प्रवक्ता राष्ट्रीय लोकदल का कहना है कि इस तरह के प्रस्ताव की कोई स्वीकरता नहीं है। हम संविधान से चलते हैं गुरूकुल प्रणाली से चलता है। धमेंन्द्र प्रधान जी ने प्रथम दृष्टता ही नाकार दिया। इस तरह के प्रस्ताव पब्लिकसिटी का माध्यम है। इस तरह के प्रस्ताव न आज स्वीकार है और न ही कल स्वीकार होंगें।
शुभम कहते हैं कि लोगों को पता ही नहीं है कि मनुस्मृति क्या है, पहले लोगों को बताए और फिर इस पर चर्चा उचित है। वह इस तरह के किसी भी प्रस्ताव के साथ नहीं है।
अमनप्रीत कहते है कि यह सिर्फ लोगों को मुददों से भटकाने की साजिश है और कुछ नहीं। राजनीतिक दलों को मुददों के आधार पर ही राजनीति करनी चाहिए। रोजगार, महंगाई पर चर्चा होनी चाहिए और चर्चा हो रही है मनुस्मृति जैसे विषयों पर जोकि गलत है। मंत्री जी ने समझदारी का परिचय देते हुए इसे खारिज कर दिया जिसका हम सभी लोग स्वागत करते हैं।