मनोज पड़िहार भारत
अहं यानि ईगो व्यक्ति का सबसे खतरनाक शत्रु है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि हर व्यक्ति में अहं होता है, इसकी मात्रा कम या अधिक हो सकती है। यदि सूझबूझ से काम लिया जाए तो कोई भी समस्या हल हो सकती है लेकिन अहं का जवाब अहं से देने पर तिल का ताड़ भी बन जाता है। अहं की दीवार इतनी ऊंची होती है कि छोटी से छोटी बात या विवाद तूल पकड़कर आसमान की ऊंचाइयों को छूने लगता है।
जब कोई व्यक्ति अपनी ही भावना पर पर्दा डालने का प्रयास करता है, अपनी कमियों को छुपाकर श्रेष्ठता दर्शाना चाहता है मगर छिपा नहीं पाता तब वह अहं को सुरक्षा कवच बनाकर स्वयं की रक्षा करता है। पति-पत्नी के मध्य जब इस प्रकार की समस्या आती है तो नाजुक रिश्ते भी कच्चे धागे की तरह टूटने लगते हैं और संबंधों में बिखराव आ जाता है। अहं रूपी समस्या हर उस जगह जन्म लेती है, जहां अधिकारों का सवाल है। अहं के दुष्चक्र में पति-पत्नी यह भूल जाते हैं कि उनकी इस तरह की हरकतों का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? अहं से ग्रस्त व्यक्ति अच्छा-बुरा सब भूल जाता है। बस एक ही ध्येय बन जाता है कि दूसरे को गिराना, नीचे गिराना। व्यक्ति सारी सीमाएं लांघ जाता है। अहं कई बीमारियों को जन्म देता है। पति-पत्नी के सुखी दांपत्य जीवन के लिए जरूरी है कि वे दोनों एक-दूसरे को परस्पर सहयोग करें व सम्मान दें। अपनी पसंद का खुलासा करें, एक-दूसरे की कमियों को उजागर तो करें पर दिल को ठेस भी न पहुंचाएं। समस्याओं को दोनों मिलकर हल करें। अपनी मर्जी एक-दूसरे पर कभी न थोपें। एक-दूसरे को अपने-अपने तरीके से जीने दें। अहं से अक्सर वार्तालाप बंद हो जाया करता है। यदि ऐसा हो तो पुन: बातचीत का रास्ता निकालें।
(विनायक फीचर्स)