– अकबरपुर में बसपा को किसी और ने नहीं संगठन के पदाधिकारी नेताओं ने ही हराया !
– कई नेता पदाधिकारियों द्वारा पैसे लेकर विरोधियों का साथ देने की भी चर्चा
– इसीलिए जीतना तो दूर अकबरपुर में दूसरा स्थान भी नहीं प्राप्त कर सकी बसपा
सुनील बाजपेई
कानपुर 04 जुलाई । यहां पर लोक सभा के चुनाव में वोटों में गिरावट के साथ हुई पराजय के लिए कोई और नहीं बल्कि बसपा वाले ही जिम्मेदार हैं। माना जा रहा है कि अगर संगठन साथ देता तो बसपा को लाभ के मामले में अकबरपुर लोकसभा के हालात कुछ और ही होते लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, क्योंकि संगठन के पदाधिकारी नेता अपने प्रत्याशी राजेश कुमार द्विवेदी को जिताने की कोशिश करने के बजाय हाथ पैर हाथ भर बैठ रहे।
पार्टी सूत्रों का दावा है कि इनमें से कई ऐसे भी बसपा नेता पदाधिकारी रहे ,जिन्होंने पैसे लेकर विरोधियों का साथ दिया। यही वजह है कि प्रत्याशी राजेश कुमार द्विवेदी के जरिए बहुजन समाज पार्टी का जीतना तो दूर वह अकबरपुर में सेकेंड स्थान भी नहीं प्राप्त कर सकी।
पार्टी के विश्वसनीय सूत्रों का दावा यह भी है कि अगर बसपा संगठन के पदाधिकारी नेताओं ने बहन मायावती जी के आदेश निर्देशों के अनुरूप जरा सा भी साथ दिया होता तो अकबरपुर में बहुजन समाज पार्टी की जीत भी होनी पक्की थी। और अगर किसी वजह से बसपा की जीत नहीं भी होती तो वह अकबरपुर में गठबंधन प्रत्याशी का स्थान अवश्य ही ले सकती थी, लेकिन बसपा संगठन के पदाधिकारी नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा प्रत्याशी का साथ ही नहीं दिया गया। उसी के फल स्वरुप पार्टी को जीतने के बजाय तीसरे स्थान पर रहने को मजबूर होना पड़ा, जिसे बसपा कतिपय पदाधिकारी नेताओं द्वारा अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए पार्टी हितों की उपेक्षा का ही परिणाम माना जा रहा है। चूंकि बहुजन समाज पार्टी पहले भी अकबरपुर में लोकसभा का चुनाव जीत चुकी है। इसीलिए इस बार भी अकबरपुर में बसपा की जीत बिल्कुल असंभव नहीं थी।
माना जा रहा था कि अगर बसपा संगठन ने पार्टी के हित में कार्य किया तो अकबरपुर में इस बार भी बसपा की ही जीत होने से कोई ताकत नहीं रोक सकती।
बसपा सूत्रों के मुताबिक इसके भी कई कारण थे। पहला था बिरादरी के साथ ही विभिन्न कारणों से अन्य जातियों के मतदाताओं की भी दोबारा मैदान में उतारे गए प्रत्याशी देवेंद्र सिंह भोले से नाराज़गी। काफी कुछ खिलाफ रुख के मामले में यही हाल बसपा प्रत्याशी राजा रामपाल का भी था। इनके भी विरोधी लोकसभा से जुड़ा घूसखोरी वाला प्रकरण उदाहरण के रूप में सुना रहे थे।
पार्टी सूत्रों और समर्थकों का भी दावा है कि नए चेहरे की वजह से प्रखर समाज सेवी होने के साथ ही गौ सेवक के रूप में भी चर्चित बसपा प्रत्याशी राजेश कुमार द्विवेदी बिरादरी ब्राह्मणों के साथ ही अन्य जातियों के भी वोट अन्य प्रत्याशियों के मुकाबले ज्यादा संख्या में हासिल करके भाजपा और गठबंधन के प्रत्याशी की जीत की राह में रोड़ा बनते भी उस समय साफ नजर आ रहे थे और यही बसपा की अकबरपुर से जीत का संकेत भी दे रहा था। यही नहीं मायावती की जनसभा ने भी किसी के सुख दुख में सदैव साथ खड़े होने वाले और जन समस्याओं के खिलाफ शुरू से ही जुझारू संघर्ष में भी अग्रणी चर्चित समाजसेवी राजेश कुमार द्विवेदी की ही जीत होने की संभावना को और प्रबल कर दिया था।लेकिन संगठन के कई पदाधिकारी नेताओं द्वारा जान बूझकर किए गये निष्क्रियता के प्रदर्शन और पार्टी हितों की उपेक्षा ने अकबरपुर में बसपा का बंटाधार करा दिया।
पार्टी सूत्रों पर यकीन करें तो कई बसपा नेता पदाधिकारी ऐसे भी रहे ,जिन्होंने अच्छी खासी धन राशि लेकर पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ विरोधी का साथ दिया, जिसकी वजह से ही बहुजन समाज पार्टी को अकबरपुर में पराजय का मुंह देखना पड़ा।