दास्तान-ए-बुड्ढा दरिया : मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की
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जैसा कुदरती-विरासत दरिया को देगा समाज, वैसे ही हमें उससे वापस फल के मिलेगा कल
लुधियाना 30 जून। कई दशकों से प्रदूषित बुड्ढा दरिया लुधियाना वासियों के लिए नासूर बन चुका है। दरअसल इसको प्रदूषण मुक्त करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें लगातार दावे करती रही हैं। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि ‘मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की’ वाली कहावत इस मामले में सच साबित हो रही है। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि कैंसर मरीजों के मामले में सूबे में लुधियाना अव्वल बन चुका है। जबकि कैंसर के लिए प्रदूषित बुड्ढे दरिया को भी काफी हद तक जिम्मेदार माना जाता है। रही बात, इसके प्रदूषित होने की तो यहां भी पुरानी कहावत सच साबित हो रही है कि जैसा बोएंगे, वैसा ही काटेंगे।
दरिया भी कुदरती-स्त्रोत हैं और कभी बुड्ढे दरिया का पानी पीने और नहाने लायक था। इस कुदरती विरासत को हमने कूड़े-गंदगी और कैमिकल रुपी जहर दिया, जो अब पलटकर विभिन्न रुप में हमें ही वापस मिल रहा है। कुल मिलाकर इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार के अलावा पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और नगर निगम प्रशासन का रवैया भी अभी तक ढुलमुल रहा है। सीधेतौर पर कहें तो बुड्ढे दरिया की सफाई का प्रोजेक्ट अभी तक एक तरह आई-वॉश करने के तौर चलाया गया। जमीनी-स्तर पर प्रदूषण फैलाने वालों पर कार्रवाई के नाम पर दोहरी नीति अपनाई गई। हद ये कि इस प्रोजेक्ट के लिए केंद्र से आया पैसा नगर निगम ने तो दूसरी मदों में भी इस्तेमाल कर डाला, ऐसा इलजाम विपक्षी पार्टियां और समाजसेवी संस्थाएं अकसर लगाती हैं।