निर्गुण राम के उपासक थे संत कबीरदास

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दमनजीत सिंह

मध्यकालीन हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में सन्त कबीर का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है। कबीर ने ही भक्ति के क्षेत्र में निर्गुण भक्ति धारा का प्रतिपादन किया। तत्कालीन जनता नाथों के हठयोग, वैष्णवों की सरसता, शैवों के मायावाद, सूफियों के प्रेमवाद, इस्लाम के एकेश्वरवाद आदि प्रचलित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं और उपासना-पद्धतियों से डावांडोल थी। कबीर ने इन्हीं परिस्थितियों में धर्मों के आडम्बरपूर्ण आचरणों का खण्डन कर एवं प्रत्येक धार्मिक-पद्धतियों के उपयोगी तत्वों को ग्रहण कर तत्कालीन जन-साधारण का पथ-प्रदर्शन किया और अपने निर्गुण-पंथ की स्थापना की। सन्त-परम्परा के प्रसिद्ध सन्त गरीबदास ने अपने ग्रन्थ परख को अंग में लिखा है : कबीर के विषय में –

“गरीब सेवक होय के उतरे इस पृथ्वी के मांहि

जीव उधारण जगत गुरू बार-बार बल जांहि”

कबीर अपने युग के धर्म के प्रबल प्रतिपादक माने जाते हैं। धर्म के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान कराते हुए कबीर ने राम-नाम को ही मुक्ति का एक मात्र साधन बताया है। कबीर ने समस्त जन-साधारण को बार-बार राम नाम को भजने का उपदेश दिया है। वे इसी नाम को अपनी खेती-बाड़ी माया-पूंजी, बन्धु-बांधव और निर्धन की एकमात्र सबसे बड़ी सम्पत्ति समझते हैं।

 

कबीर ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा है कि उनका राम तीन लोक से न्यारा है। कबीर ने कहा-

“दशरथ सुत तितु लोक बखानां राम नाम को मरम है आना”

कबीर कहते हैं कि उनका राम दशरथ के घर अवतार लेकर नहीं आया, न उसने गोवर्धन पर्वत धारण किया, न बद्रीनाथ में बैठकर ध्यान लगाया, ये सब ऊपरी व्यवहार है, उनका राम इनसे अगम है। संसार के कण-कण में समाविष्ट है। जहां तक कबीर के राम के स्वरूप का संबंध है वे उसे सत्य-स्वरूप कहते हैं। जिस तरह सत्य की कोई सीमा नहीं। संसार में जो कुछ भी सत्य, रमणीय और आकर्षक है, वह राम है। कबीर आजीवन सत्य की तलाश में रहे, वह उन्हें राम नाम के रूप में प्राप्त हुआ था।

 

कबीर जीवन भर यही समझाते रहे कि राम रूप नहीं गुण की संज्ञा है। रूप तो नश्वर है, झूठा है। सत्य है राम जो न जन्मता है न मरता है। वे तो उस ब्रह्म का विचार करने की सलाह देते हैं, जो कर्ता होते हुये भी कर्मों से परे हैं। कबीर का राम पूर्ण पारब्रह्म है। घट-घट में वही समाया हुआ है। उसका मर्म कोई नहीं जानता। कबीर के निर्गुण राम को लेकर कई प्रकार की प्रतिक्रियाएं हुई। कबीर इनसे घबराने वाले नहीं थे। उन्होंने जिस राम-नाम से प्रेम किया था, उसे वे अच्छी तरह से जानते थे। कबीर का राम त्रिगुणातीत है। सत, रज, तम तीनों गुण उसकी माया है। सत्य स्वरूपी राम को तो वही पा सकता है, जो इन तीनों से ऊपर उठ गया हो- यथा-

 

“रज गुन तम गुन सत गुन कहिए यह सभ तेरी माया

चउथे पद को जो चीन्हें तिनही परमपदु पाया”

 

कबीर ने इसी निर्गुण राम की भक्ति को अपार भवसागर की एकमात्र नौका कहा है और सभी को राम के नाम को जपने की सलाह दी है। इस सारतत्व का जिन्होंने भी स्पर्श पा लिया है वे तर गये। इसलिये आदि संत कबीर पुकार-पुकार कहते हैं- अरे भाई मेरी बात मानो, कामनाओं का चक्कर छोड़कर राम-राम कहो।

(विनायक फीचर्स)

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