सप्ताह के सात दिनों में कभी-कभी कोई दिन किसी ख़ास बात के लिए भी यादगार बन जाता है । गुरुवार का दिन भी कुछ ऐसा ही रहा । गुरुवार का दिन अदालत के ऐसे फैसलों के लिए याद किया जाएगा जिसने राजनीति के दिग्गजों को एक और यदि राहत दी तो दूसरी और नींद भी उड़ा दी। राउज एवेन्यू अदालत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीबाल को शराब घोटाले के मामले में नियमित जमानत दी तो बिहार उच्च न्यायालय ने सरकार द्वारा बढ़ाये गए आरक्षण के निर्णय को खारिज कर दिया।
केजरीवाल को मिली जमानत पर दिल्ली में पटाखे फोड़े गये । सचमुच आम आदमी पार्टी के लिए ये बड़ा फैसला है । अब अरविंद केजरीवाल मुकदमें के चलते हुए लोकसभा चुनाव में चारों खाने चित हुई अपनी पार्टी की साख को बढ़ाने का अभियान शुरू कर सकते हैं। केजरीवाल को नियमित जमानत का मिलना महज संयोग नहीं है ,लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा के लिए एक झटका जरूर है । भाजपा किसी भी सूरत में केजरीवाल को जेल से बाहर नहीं आने देना चाहती थी,किन्तु ईडी की एक न चली और केजरीवाल जमानत हासिल करने में कामयाब हो गए। जमानत हर आरोपी का अधिकार है। इसमें जानबूझकर बाधाएं खड़ी करना भी एक तरह का अपराध है। देश में असंख्य ऐसे लोग हैं जो समर्थ न होने की वजह से बिना जमानत के जेलों में सजा से भी ज्यादा समय काट चुके हैं।
बात केजरीवाल की है । उन्हें मिली जेल न्याय प्रक्रिया की जीत है । अदालत के प्रति जनता का विश्वास बढ़ाने वाला कदम है। चूंकि ये जमानत एक अधीनस्थ न्यायालय का फैसला है इसलिए इसे नजीर बनाकर दूसरे आरोपी इसका लाभ नहीं ले सकते ,लेकिन उनके लिए भी संभावनाओं की एक खिड़की जरूर खुली है। मनीष जी,हेमंत सोरेन और स्नजय गुप्ता जैसे तमाम लोग जमानत के लिए लम्बे समय से एड़ियां रगड़ रहे हैं। अरविंद केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की करारी हार के बाद जल्दबाजी में हालाँकि कांग्रेस का हाथ और साथ छोड़ दिया है लेकिन उम्मीद है कि संसद में कांग्रेस केजरीवाल की बेवफाई के बाद भी उनका साथ देगी और जब सरकार पर हमले का वक्त आएगा तो आम आदमी पार्टी का समर्थन करेगी। केजरीवाल जेल से बाहर आने के बाद यदि चाहें तो अपनी गलती सुधर सकते है। दोबारा से आईएनडीआईए का हिस्सा बन सकते हैं। इसी में उनका फायदा है अन्यथा ‘एकला चलो ‘ का उनका निर्णय आने वाले दिनों में आम आदमी पार्टी को भारी पड़ सकता है।
अब बात करते हैं पटना उच्च न्यायालय के फैसले की। पटना उच्च न्यायालय के फैसले ने बिहार की गठबंधन सरकार के टांके ढीले कर दिए है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश के दलितों,पिछड़ों और महादलितों को जो आरक्षण दिया था उसे असंवैधानिक करार देते हुए माननीय अदालत ने सरकार के फैसले को ख़ारिज कर दिया है । पटना हाईकोर्ट का फैसला कोई हैरान करने वाला फैसला नहीं है । ये एक प्रत्याशित फैसला है ,क्योंकि इसी तरह के फैसले तमिलनाडु,ओडिशा,राजस्थान और अरुणाचल सरकार के फैसलों के खिलाफ आ चुके है। देश की कोई भी अदालत संविधान के खिलाफ किसी भी सरकार के फैसले की ताईद नहीं कर सकती। इस हकीकत से राजनीतिक दल और सरकारें भी वाकिफ हैं लेकिन मतदाताओं की आँखों में धूल झोंकने से कोई भी परहेज नहीं करना चाहता।
पटना है कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करना सरकार की विवशता भी है और औपचारिकता भी। अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को तय करना है कि वे इस मुद्दे पर क्या एनडीए गठबंधन की सरकार को 9 वीं सूची का इस्तेमाल करने के लिए विवश कर सकते हैं या नहीं ? नीतीश कुमार के सामने अब दो ही विकल्प बचे हैं कि वे या तो भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार से अपने हिस्से का एक पोंड गोश्त मांगे और न मिले तो सरकार से अपना समर्थन वापस ले लें। नीतीश बाबू के लिए कुछ भी करना कठिन नहीं है । वैसे भी उनकी ‘ पल्टूराम ‘ वाली छवि जगजाहिर है। उनके दोनों हाथों में लड्डू रहते है। वे केंद्र से समर्थन वापस लें तो भी फायदे में रहेंगे और यदि केंद्र को इस आरक्षण को बनाये रखने के लिए 9 वीं सूची का इस्तेमाल करा सकें तो भी फायदे में रहेंगे। आने वाले दिनों में स्थिति साफ़ हो जाएगी। वे भविष्य में दोबारा राजद के साथ भी इस मुद्दे पर खड़े दिखाई दें तो किसी को कोई हैरानी नहीं होना चाहिए ।
मुझे ज्योतिष विज्ञान का ककहरा भी नहीं आता,मै इसमें यकीन भी नहीं करता । लेकिन आज मुझे लगता है कि यदि कोई शनि गृह होता है तो उसकी चाल भाजपा गठबंधन की सरकार के खिलाफ वक्री हो गयी है। एक के बाद एक ऐसे घटनाक्रम बन रहे हैं जो नई संसद के पहले ही सत्र में सरकार को हकलाने पर मजबूर कर सकते है। बिहार में अदालत का फैसला,नीट परीक्षा में धांधली, कंचनजंगा एक्सप्रेस का दुर्घटनाग्रस्त होना ऐसे ही मुद्दे हैं। लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चयन भी एक मुद्दा माना जा सकता है। आपको याद होगा ही कि सरकार के आगे -पीछे टीडीपी और जेडीयू पहले से ही राहु-केतु की तरह लगे हुए है। ये सत्ता के सूर्य को कब डस लें ,कोई नहीं जानता। न भाजपा को इसका अनुमान है और न खुद टीडीपी और जेडीयू को। मै एक आम भारतीय के नाते नई संसद और नई सरकार के लिए अच्छे दिनों की प्रार्थना ही कर सकता हूँ । बाकी तो किसे क्या करना है ,ये आने वाले दिन खुद बता देंगे।
@ राकेश अचल
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