पंजाब में नहीं हो सका है बिजली महकमे में सुधार ‘मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की’ वाले हालात

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एक दिन की डिमांड 16 हजार 78 मेगावाट से ज्यादा, प्रोडक्शन उम्मीद से कम, थर्मल प्लांट रहते हैं बीमार

नदीम अंसारी

लुधियाना 20 जून। हमारे राज में ही पंजाब बिजली उत्पाद के मामले में सरप्लस स्टेट बन जाएगा। यह सत्ता में रहने वाली पार्टियों का कई दशक से पसंदीदा दावा रहा है। अब तो बिजली संकट की आदी हो चुकी पंजाब की जनता को इस लुभावने वादे पर हंसी तक नहीं आती है। दरअसल पिछली सरकार की तर्ज पर सूबे की आप सरकार ने भी दावा किया था। अब पीक-सीजन में बिजली संकट पैदा होते ही इस दावे की हवा निकल गई।

पावरकॉम को छूट गए पसीने : दरअसल में पंजाब इस बार अरसे बाद पड़ी भीषण गर्मी ने मान सरकार के दावे पर ब्रेक लगा दी। उस पर धान की बिजाई की वजह से बिजली की मांग ने भी पिछले रिकॉर्ड तोड़ डाले। नतीजतन बिजली की आपूर्ति करने में पावरकॉम के अफसरों-इंजीनियरों को पसीने छूट रहे हैं। इस वजह से बिजली का संकट गहराने लगा है। दूसरी तरफ आम लोग  अघोषित बिजली कटों से बेहाल हैं।

डिमांड ने बनाया रिकॉर्ड : जानकारी के मुताबिक ताजा हालात इतने चिंताजनक है कि एक दिन में बिजली की डिमांड अब 16078 मेगावाट तक पहुंच गई है। जो खुद में एक नया रिकॉर्ड बना है। दूसरी तरफ, मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। तलवंडी साबो थर्मल प्लांट व लहरा मुहब्बत बीमार हो गए। जबकि सीएम भगवंत मान ने लोकसभा चुनाव के दौरान जोरदार प्रचार किया था कि हमने थर्मल प्लांट खरीदा है। अब बिजली सरप्लस हो जाएगी।

ताजा हालात बेहतर तो नहीं : जानकारी के मुताबिक सूबे में इसी बुधवार को विभिन्न थर्मल प्लांटों में कुल 5079 यूनिट बिजली उपलब्ध थी। ऐसे में एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत 10, 398 मेगावाट बिजली ली गई। हालांकि उसके बाद भी 604 मेगावाट के करीब अंतर चल रहा था। ऐसे में बिजली कट लगाने संबंधी फैसला लिया गया।

अफसर कर रहे नो-टेंशन : जानकारों के मुताबिक बिजली की खपत 42 फीसदी है, जबकि पीक डिमांड 33 फीसदी है। जबकि रणजीत सागर डैम की चार यूनिटें चल रही हैं। अधिकारियों का कहना है कि कोयले का स्टाक अभी काफी है। ऐसे में टेंशन की ज्यादा जरूरत नहीं है।

आग लगने पर कुंआ क्यों खोदते हैं : आम लोगों का सबसे बुनियादी सवाल यही है कि बिजली संकट बढ़ने पर ही सब क्यों जागते हैं। गर्मियों में धान की बुवाई का शैड्यूल पहले से तय हो जाता है। मौसम के मुताबिक कृषि सैक्टर को बिजली की अनुमानित सप्लाई के बारे में पता होता है। इस सबके बावजूद थर्मल प्लांट्स की हालत, कोयले के स्टॉक और बाकी जरुरी चीजों की समय रहते सही तरीके से समीक्षा क्यों नहीं की जाती। आफत सिर पर आने के बाद पावरकट लगाने, थर्मल प्लांट दुरुस्त करने और सेंट्रल पूल से बिजली लेने जैसे आपात कदम क्यों उठाए जाते हैं। यही सब कुछ अगर वक्त रहते कर लिया जाए तो बिजली संकट को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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