पिता

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राकेश अचल

पिता एक बरगद की छाया होता है

जिसके नीचे सारा कुनवा सोता है

पिता एक फूलों वाली डाली भी है

पिता बाग भी है तो इक माली भी है

पिता एक मौसम है, प्यार भरा मौसम

बारह महीने रहता हरा भरा हरदम

पिता जिरह बख्तर है, लोहे का भारी

पिता करता है हर समय युद्ध की तैयारी

पिता तीर, तलवार,तेग है,भाला है

पिता द्वार पर लटका कोई ताला है

पिता पालकी है,घोड़ा है,हाथी है

पिता मित्र है, शिक्षक भी है, साथी है

नहीं पिता की कोई एकल परिभाषा

स्वप्न किसी के लिए, किसी की है आशा

पदचिन्हों में पिता, पिता पगडंडी में

पिता खड़ा है दुनिया की हर मंडी में

पिता एक सागर है, पिता हिमालय है

पिता एक मंदिर है, एक शिवालय है

पिता अजर है अविनाशी है , काशी है

पिता पवन सा लेकिन घट – घट वासी है(विभूति फीचर्स)

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