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हँसिए हँसाइए

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डॉ. गुलाबचन्द कोटडिय़ा

आजकल हँसना और हँसाना भी जीवन की एक प्रमुख कला मानी जाने लगी है। खिलखिलाकर ठहाका लगाकर कितने लोग हँस पाते हैं या एक व्यक्ति जीवन में कितनी बार ठहाका मार कर हंसा है? बैठे ठाले कोई नहीं हँसता। किसी दृश्य को देखकर, कवि सम्मेलनों में कवियों की चकल्लस सुनकर या सभा समारोहों में नेताओं के व्यंग्य सुनकर लोग अवश्य हँस लेते हैं। प्रसन्नता से मुंह फैलाकर एक प्रकार का शब्द निकालना ही हँसना है। हँसने के बारे में हमारे पूर्वजों, विद्वजनों ने बहुत कुछ कहा है। हर हालत में प्रसन्न रहने की हिदायत दी है। आपत्ति, विपत्ति आन पडऩे पर दिल छोटा न करने की बात कही है। सहज भाव से जीने की आदत हर एक को डालनी चाहिए। हमारे ऋषि मुनि हर हालत में समभाव में रहते थे। प्रसन्न रहने से देखने वाला भी प्रभावित होता ही है। मित्रता का भाव परिलक्षित होने से सामने वाले भी प्रसन्नता जाहिर करते हैं।

पर आज के वैज्ञानिक युग में हर क्रिया को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नापा जाता है। पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने हास्य पर प्रयोग कर शोध अनुशीलन कर कई निष्कर्ष निकाले हैं जो शिक्षाप्रद तो हैं ही रोचक भी है। वे हर एक को एक ही सलाह देते हैं कि वे हँसे व खूब हँसे। इसके लिए किसी को कुछ खर्च करने की आवश्यकता भी नहीं होती। मुफ्त में मिलती है तो क्यों कोई कोताही बरते। क्यों दिल छोटा करे।

भारत में हँसी शब्द के साथ बहुत सी कहावतें व मुहावरे जुड़े भी हैं। प्राचीन ग्रंथों में उसके उल्लेख भी प्राप्त होते हैं।

हँसी करेहौ पर पुर जाई (रामायण), हँसी खुशी, हँसी ठट्टा, हँसी समझना, हँसी आना, हँसी छूटना, हँसी खेल, हँसी मजाक, हँसी दिल्लगी, हँसी में कहना, हँसी में टालना, हँसी उड़ाना, हँसना बोलना, हँसना हँसाना किसी पर हँसना, हँसी हँसी में वगैरह।

आजकल जो योगाचार्य लोगों को योग व प्राणायाम द्वारा निरोगी करने की बातें सिखा रहे हैं वे भी अन्त में खूब जोरों से हँसने की क्रिया करवाते हैं। वह भी पेट दुखने लगे तब तक हँसने की बात कहते हैं।

अमेरिका या पाश्चात्य देश के नागरिक अपना जीवन घड़ी की सुइयों की तरह चलाते है। हर कार्य और कारण में संबंध जुटाकर विश्लेषण कर फिर उसका अनुसरण करते हैं। अमेरिका अत्यन्त विकसित देश है। सुख सुविधा संपन्न फिर भी संतोष धन में उसको विश्व में 24वां स्थान प्राप्त हुआ है। अमेरिका में ‘केरट क्लब’ चलाते हैं जहां सभी सदस्यगण मिल बैठकर हँसने हँसाने की बातें करते हैं। किसी बात पर हँसी आए न आए पांच-पांच मिनट तक सबको जोरों से हँसना ही पड़ता है। उस क्लब का प्रमुख लक्ष्य ही है खिलखिलाकर हँसो तन्दुरुस्ती पाओ। भारत में भी यही कहते हैं हँसिए हँसाइए मौज मनाइए।

हास्य के भी कई प्रकार हैं। हँसते समय जो आवाजें निकलती है वह भी अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग प्रकार की होती है। ऐसा क्यों? डॉ. राबर्ट के अनुसार हास्य या हँसने की कोई एक वर्णमाला नहीं होती कि हर एक की हास्य ध्वनि एक सरीखी व एक ही प्रकार की हो। अगर एक समान हो भी तो वह विचित्र संयोग ही गिना जाएगा। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हँसना जोर से साँस बाहर निकालने की एक क्रिया मात्र है। लाफिंग क्लब भी चलते हैं उसके सदस्यगण हँसते हुए एक दूसरे को देखते हैं तो अनजाने में वे एक दूसरे के हृदय में प्यार व स्नेह से जुड़ जाते हैं। हँसना एक तरह से प्यार का बंधन है।

आज हर व्यक्ति तनावग्रस्त है। व्यस्तता के कारण शारीरिक व मानसिक रूप से त्रस्त है। शांति व संतोष की खोज में निरन्तर विचार करता है। पर ढूंढऩे से शांति नहीं मिलती न प्रसन्नता प्राप्त होती है और अगर उसे स्वयं के अंदर ही दोनों चीजें मिल जाए तो उसे और क्या चाहिए? डॉक्टर लोग भी मानते हैं कि हँसी एक महा-औषधि है हर प्रकार की दवा से हजार गुना अधिक प्रभावशाली इसलिए अंग्रेजी में कहते हैं- लाफिंग इज द बेस्ट मेडिसन। ऐसा किसने कहा है यह सूत्र आज इतना लोकप्रिय क्यों हैं?

केलिफोर्नियां के लोमा लिंडा यूनिवर्सिटी के एनाटोमी और पैथोलॉजी विभाग के प्रोफेसर ली बर्क तथा उन्हीं के समान स्टेन्फोर्ड विश्वविद्यालय के डॉ. विलियम फ्राय भी हास्य पर अपना शोध जारी रखे हुए हैं। ये दोनों महानुभाव पिछले 25 वर्षों से हास्य पर नए प्रयोग करते आ रहे हैं। उन्होंने 1980 में 10 व्यक्तियों को एक साथ बिठाकर एक हास्य नाटिका दिखलाई। शो शुरू होने से पहले, हँसते समय व शो पूरा होने के बाद उन्होंने उनके रक्त का नमूना एकत्रित किया था। उसी तरह 2001 में जो लोग हृदय रोग से पीडि़त थे उनके भी दो ग्रुप बनाकर एक ग्रुप को 30 मिनट का कॉमेडी शो दिखाया। दूसरे ग्रुप को सदा स्टेण्डर्ड दवा खाने की हिदायत देकर इलाज चालू रखा। जब 1980 व 2001 प्रयोगों की तुलना की गई तो बड़े ही रोचक परिणाम सामने आए। उन्हें मालूम पड़ा कि कॉमेडी शो जिन्होंने देखा उन सदस्यों का रक्तचाप कम हो गया था। रक्त में स्ट्रेस हारमोन का प्रमाण भी कम पाया गया। हृदय गति भी स्थिर व सामान्य रही। सबसे मजेदार यह बात हुई कि उन्हें हार्ट अटैक फिर आया ही नहीं जबकि दूसरे ग्रुप के सदस्यों के साथ ऐसा कुछ चमत्कार नहीं हुआ। डॉ. लीबर्क ने हास्य को ”इन्टरनेशनल जोगिंग’ का नाम दिया है। जो लोग अधिक बैठे रहते हैं न किसी प्रकार का व्यायाम, प्राणायाम या आसन करते हैं वे अपने फेफड़ों के क्षमतानुरूप पूरा श्ïवास नहीं लेते। हँसना सही हो या कृत्रिम, खिलखिला कर हँसने से पेट की माँसपेशियाँ आगे पीछे हिलती है, श्वास प्रक्रिया से खराब कार्बन डाइ आक्साइड बाहर निकल जाती है व ताजा प्राणवायु भरती है। कोई माने या न माने ऐसा करने से यानी हँसने से 20 दिन में शुद्ध हवा लेने की क्षमता शत प्रतिशत बढ़ जाती है। व्यायाम से स्नायुतंत्र काम करता है। रक्त संचार होने से हृदय को धड़कना पड़ता है, फेफड़ों को कार्यरत होकर शुद्ध हवा द्वारा रक्त साफ करने के काम पर लग जाना पड़ता है।

डॉ. ली बर्क व डॉ. विलियम फ्राय ने जो निष्कर्ष निकाले हैं वे अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। जरा गौर फरमाइए- 1. दूसरे किसी व्यायाम की तुलना में 20-30 मिनट तक अगर व्यक्ति खूब खिलखिलाकर हँसे तो उसके फेफड़ों की कार्यक्षमता स्वत: ही बढ़ जाती है। 2. इस प्रकार की हास्य प्रक्रिया से रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। 3. दूसरे किसी व्यायाम की बनिस्पत हास्य क्रिया से शारीरिक भिन्न-भिन्न अंगों में रक्त पहुंचाने वाली नलियों की क्षमता ताउम्र बनी रहती है। कुछ समय पूर्व ओसाका यूनिवर्सिटी के डॉ. कियो टेक ने कुछ जापानी युवकों को एक जापानी हास्य शो बताया। उन्हीं युवकों को दूसरे दिन एक ऐतिहासिक शो बताया। दोनों शो बताने के पहले व बाद में उनके रक्त का नमूना लिया तब यह बात सामने आई कि कॉमेडी या हास्य शो देखने वालों की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ गई है। मात्र हँसने से ही नहीं हँसने से जो प्रसन्नता या आनन्द उन्हें प्राप्त हुआ उसके चमत्कारिक अनुभव के कारण वैसा संभव हुआ अर्थात् रोग प्रतिरोधक प्रक्रिया का मुख्य कारण हास्य क्रिया ही जिम्मेवार है।

इस शहर में सबको कहाँ मिलती है रोने की जगह।

अपनी इज्जत भी यहाँ हँसने हँसाने से रही- निदाफाजली

हँसिए हँसाइए खूब मौज मनाइए

(विभूति फीचर्स)

 

 

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