पूरन चन्द्र शर्मा
पश्चिम बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने लोकसभा की सीटों पर भाजपा से बढ़त बना ली है। इस बार बंगाल की कुल 42 सीटों में से 29 तृणमूल को, एक कांग्रेस को और भाजपा को 12 सीटें मिली है। भाजपा को इस बार पिछले चुनाव की तुलना में 6 सीटों का नुकसान हुआ है। पिछली लोकसभा में भाजपा ने बंगाल में 18 लोकसभा सीटें जीती थीं।
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी को अभी तक जो भी सफलता मिलती आयी है वह सब आरएसएस एवं कुछ गिने-चुने बीजेपी नेताओं के कारण मिली है।
चुनाव के समय तो ये शेष तथाकथित नेता अति सक्रिय दिखते हैं पर चुनाव संपन्न हो जाने के बाद आम जनता से कट जाते हैं। यही सिलसिला चलता रहता है। पश्चिम बंगाल में जमीन से जुड़े बीजेपी नेता होते तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह को इतनी सारी चुनावी सभाएं एवं रैलियां करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
जैसा कि सभी जानते हैं कि ममता बनर्जी एक दिन में ही राज्य की मुख्यमंत्री नहीं बनी है। ममता बनर्जी के संघर्ष की कहानी बहुत लंबी है, फिल्मी कहानी की तरह।
ममता बनर्जी को तत्कालीन सत्तासीन वामपंथी पार्टी के असहनीय जुल्म सहने पड़े थे। वामपंथी सरकार ने ममता बनर्जी को अपने रास्ते से हटाने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए पर वामपंथी सफल नहीं हुए। ममता बनर्जी ने अपनी अभूतपूर्व दिलेरी का परिचय देते हुए तत्कालीन वामपंथी सरकार का जमकर मुकाबला किया। खूब संघर्ष किया, सालों तक लगातार जुल्म सहे, ना कभी झुकी ना ही हार मानी। काफी लंबे संघर्ष के बाद ममता बनर्जी ने वाममोर्चा के 34 साल के शासन को धराशायी कर दिया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जो अपने आपको देश को आजादी दिलाने वालीं पार्टी बताती है उसने भी वामपंथी पार्टी के सामने घुटने टेक दिए थे। आज कांग्रेस पार्टी का राज्य से सूपड़ा साफ हो चुका है। इस बार के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी पर चुनावी नतीजे पहले से भी ज्यादा खराब हुए हैं ।
टीएमसी सरकार के अनगिनत घोटालों के बाबजूद भी बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सरकार को गले लगाया एवं भारतीय जनता पार्टी को नकार दिया। ऐसा क्यों हुआ। किन कारणों से भ्रष्टाचार में लिप्त सरकार को ही यहां की जनता को मजबूरन स्वीकारना पड़ा। ईमानदारी से कहें तो आज भी भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से बंगाल की विश्वसनीय पार्टी नहीं बन पाई है। बंगाल के भाजपा नेता अपने आप को जनता के काबिल नहीं बना पाये हैं। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल गिराया है। चुनावी हिंसा के समय भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता मार खा रहे हैं, घर छोड़ कर भाग रहे हैं उनके साथ एक भी नेता खड़ा नहीं दिखलाई दे रहा है।
भारतीय जनता पार्टी पार्टी के बड़े नेता अपने समर्थक, कार्यकर्ता एवं मतदाताओं की सुरक्षा देने में नाकाम रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की जनता ने असुरक्षा की भावना होने के कारण ही बाध्य हो कर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया है। कारण यहां के बीजेपी के मतदाताओं को भविष्य की चिंता सताती रहती है। इस बार के चुनाव में पश्चिम बंगाल की कुल 42 लोकसभा सीटों में से ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने 29 सीट जीती हैं। भारतीय जनता पार्टी ने 12 सीटों पर जीत हासिल की है जबकि कांग्रेस सिर्फ 1 सीट जीतने में सफल हुई। उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को कुल 18 सीटों पर चुनाव जीता था इस बार के चुनाव में भाजपा को सिर्फ 12 सीट ही मिली है अर्थात पिछले चुनाव के मुकाबले 6 सीटें कम।
(विनायक फीचर्स)