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नई करवट ले रही है पंजाब में सियासत, खालिस्तान समर्थक अमृतपाल समेत 2 आजाद उम्मीदवार जीते

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खडूर साहिब से अमृतपाल तो वहीं फरीदकोट से खालसा की जीत से दिखी राजनीति में गर्मख्याली सोच की बढ़त

नदीम अंसारी

लुधियाना 4 जून। इस लोकसभा चुनाव में पंजाब के बदलते सियासी-माहौल के भी साफ संकेत मिले हैं। सबसे अहम पहलू यह है कि रिवायती सियासी-पार्टियों को नकारते हुए पिछले विधानसभा चुनाव में जनता ने आम आदमी पार्टी को सत्ता सौंप दी थी। अब इस लोस चुनाव में खास पहलू यह है कि प्रमुख राजनीतिक दलों को नकारते हुए खडूर साहिब और फरीदकोट सीट पर आजाद उम्मीदवारों को जीत का सेहरा पहना दिया। संयोग से दोनों सीट पर जीतने वाले उम्मीदवार गर्मख्याली सोच के पैरोकार हैं।

काबिलेजिक्र है कि खडूर साहिब सीट से आजाद उम्मीदवार और खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह ने जीत दर्ज की है। जो फिलहाल डिब्रूगढ़ जेल में बंद हैं। वहीं, फरीदकोट सीट से भी आजाद उम्मीदवार सरबजीत सिंह खालसा ने जीत दर्ज कराई है। वह भी गर्मख्याली सोच के समर्थकों में शुमार हैं और इंदिरा हत्याकांड के दोषी बेअंत सिंह के बेटे हैं।

यह भी गौरतलब है कि खडूर साहिब सीट पर तो शिरोमणि अकाली दल-अमृतसर ने अपने उम्मीदवार को खड़ा करने के बाद हटा लिया था। शिअद-अमृतसर के मुखिया सिमरनजीत सिंह मान खुद संगरुर सीट से सांसद रहे हैं। इस बार भी वह उसी सीट से चुनाव लड़ रहे थे।

ऐसे गौर किया जाए तो मान भी खालिस्तान-समर्थकों के पैरोकार में ही शुमार हैं। संगरुर सीट से पंजाब के मौजूदा सीएम भगवंत मान सांसद थे। उनके सीएम बनने के बाद इस सीट पर उप चुनाव हुए थे, लेकिन अपनी इस सीट को बचा नहीं सकी थी। यह संकेत तभी मिल गए थे कि गर्मख्याली सोच को सूबे की सियासत में बढ़त मिल रही है, जब सिमरनजीत सिंह मान इस सीट से जीते थे।

हालांकि इस बार गर्मख्याली उम्मीदवारों की हिमायत करके भी मान संगरुर सीट से खुद लोस चुनाव हार गए। आप के उम्मीदवार गुरमीत सिंह उर्फ मीत हेयर ने उनको हराकर यह सीट फिर से आप की झोली में डाल दी। हालांकि सियासी-जानकर मान रहे हैं कि भले ही मान हार गए, लेकिन उस सोच को जरुर बढ़ावा तो मिल गया, जिसके वह पैरोकार हैं।

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