राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लेकर जो बोले पीएम नरेंद्र मोदी, खुद भी तो हैं जवाबदेह
इस बार फिर लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा मायूस करने वाली बात यही रही कि सत्ता और विपक्ष ने बुनियादी मुद्दे भुलाए रखे। आरोप-प्रत्यारोपों के बीच चुनावी जनसभाओं में विरोधियों का मखौल उड़ाने के लिए शानदार जुमलेबाजी तो खूब हुई। इस सबके बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे ज्यादा हैरान करने वाले बयान दागे। मंगलसूत्र, हिंदू-मुस्लिम, पाकिस्तान-अफगानिस्तान जैसे जुमले उछाल फिल्मी-अंदाज में विपक्ष को ललकारा। पीएम होकर उनका इस तरह बोलने पर तीखी प्रतिक्रिया भी हुईं।
खैर, पीएम ने सबसे हैरान करने वाली बात चुनाव के आख़िरी चरण के चुनाव प्रचार के दौरान एक इंटरव्यू के दौरान कही। जिसमें उन्होंने कहा कि 1982 में रिलीज़ हुई रिचर्ड एटनबरो की फ़िल्म ‘गांधी’ से पहले विदेश में रहने वाले लोग महात्मा गांधी के बारे में कुछ नहीं जानते थे। बतौर प्रधानमंत्री मोदी बोले ‘महात्मा गांधी का व्यक्तित्व महान था। पिछले 75 सालों में गांधी को दुनिया के सामने लाना क्या हमारी ज़िम्मेदारी नहीं थी ? मुझे खेद है लेकिन गांधी को कोई नहीं जानता था’ और फिर ज्यादा भावुकता में बोले कि जब पहली बार फ़िल्म ‘गांधी’ बनी तो दुनिया को उत्सुकता हुई कि ये लोग कौन हैं? हम एक देश के तौर पर उन्हें दुनिया तक नहीं पहुंचा सके, यह इस देश का कर्तव्य था।
इसके बाद कांग्रेस नेता और गांधीवादी विचारक उनके इस बयान की आलोचना कर रहे हैं। जैसा कि उम्मीद थी, मोदी के बयान पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पलटवार किया कि जिन लोगों ने शाखाओं में दुनिया का ज्ञान हासिल किया है, वो गांधी को नहीं समझ सकते, लेकिन वो गोडसे को समझ सकते हैं, जिसने गांधी की हत्या की। पीएम मोदी के इस बयान पर विश्व-विख्यात बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार मुरलीधरन काशीविश्वनाथन ने भी हैरानी जताई। इसे लेकर लुधियाना के सबसे पहले विधायक व गांधीवादी स्व. दीवान जगदीश चंद एडवोकेट के बेटे व माहिर सर्जन डॉ.नरोत्तम दीवान की प्रतिक्रिया बेहद संतुलित लगी। उनके मुताबिक वह पिता से मिली विरासत यानि राष्ट्रपिता पर लिखी चालीस पुस्तकों का संग्रह पढ़ चुके हैं। गांधी जी की विरासत को अजायबघर बना संजो रखा है, ताकि नई पीढ़ी उससे कुछ सीख ले। बेशक भारत में लोकतंत्र के कथित प्रहरियों ने गांधीवाद को बढ़ावा नहीं दिया। अब पीएम मोदी जो बोल रहे हैं, गंभीर व चिंताजनक पहलू है। मोदी अगर फिर सत्ता की कमान संभालते हैं तो उनको ठोस कदम उठाने चाहिएं। ताकि गांधीवादी विचारधारा आगे बढ़ सके।
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