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राष्ट्रीय मुद्दे गायब,लोकल मुद्दों पर होगें लोकसभा चुनाव

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पंजाब/यूटर्न /27 मई: पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों पर लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण में एक जून को मतदान होगा। इस बार पंजाब में मुकाबला चार पार्टियों में नजर आ रहा है। पंजाब में राजनीतिक दलों ने गठबंधन नहीं किया है। हर सीट पर आम आदमी पार्टी, अकाली दल, बीजेपी, कांग्रेस और बीएसपी ने उंंमीदवार उतारे हैं। विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक विजय हासिल करने वाली आप की प्रतिष्ठा दांव पर है तो बीजेपी को मोदी के मैजिक से उंमीद है। माझा, मालवा और दोआबा… तीनों बेल्ट में इस बार नैशनल मुद्दे बैकसीट पर हैं। फ्रंट में लोकल मुद्दे हैं। पंजाब के लोग चाहते हैं कि राज्य का विकास हो। यहां के बड़े शहरों में आईटी हब बनें, बड़े अस्पताल जैसे एमस स्थापित किए जाएं, इलाज सस्ता हो, टोल कम किया जाए साथ ही सडक़ों की मेंटिनेंस सही तरीके से हो। लुधियाना में टेक्सटाइल इंडस्ट्री और व्यापारी काफी ज्यादा हैं। वे जीएसटी में राहत चाहते हैं। दबी जुबान में कई वोटरों ने बताया कि जब से जीएसटी आया है धंधा करना मुश्किल हो गया है। ऐसे में जो भी सरकार आए यहां लोगों को इस पॉइंट पर जरूर राहत दे। दूसरी सीटों पर पिंडों में सस्ते इलाज के लिए अस्पताल हों, स्कूल खुलें, सडक़ें हों, बसों की फ्रीक्वेंसी शहर की तरह हो और बिजली आती रहे ये सब मुद्दे हैं। कैंडिडेट्स को लोग लोकल मुद्दों को लेकर घेर रहे हैं।
पिंड वालों के दिल में कौन है?
पंजाब के नाराज किसान बीजेपी को सबसे बड़ा नुकसान कर सकते हैं। राज्य में करीब 22 लाख छोटे-बड़े किसान परिवार बताए जाते हैं। सभी पार्टियों ने किसानों के लिए अलग-अलग घोषणाएं की हैं। उनकी नाराजगी झेलने का खतरा कोई पार्टी नहीं उठा सकती। पिंडों (गांव) में किसकी हवा है इस बात को भी जानना जरूरी है। 13 सीटों पर कई सीटों की जीत का रास्ता यहीं से गुजरता है। माझा ब्लॉक (अमृतसर, गुरदासपुर, खडूर साहिब) तो पूरा पिंड वालों के सहारे ही है। यहां लोगों में किसान आंदोलन की आग आज भी जिंदा है। दूसरा अलगाववादी कहलाना किसी को मंजूर नहीं, क्योंकि हर पिंड से एक बच्चा भारतीय आर्मी में है। ऐसे में पिंड वालों के दिल में कौन है इसका अंदाजा यहां के मुद्दों से ही पता चल जाता है। राज्य में सत्तासीन आम आदमी पार्टी और मुखय विपक्षी दल कांग्रेस के बीच मुकाबला कड़ा है। अकाली दल का अपना काडर है। मगर, बेअदबी की घटनाओं के बाद से अकालियों का राज्य में प्यार कम हुआ है। अकाली दल यहां से बीजेपी के वोटों पर सेंध लगा सकता है।
नशे के छठे दरिया से लोग त्रसत
पंजाब में बॉर्डर पार से ड्रोन के जरिए नशा घर-घर तक पहुंच रहा है। बेरोजगारी भी काफी बढ़ गई है। युवाओं को नौकरी नहीं मिल रही है। वह नशे की गिरफत में पड़ रहे हैं। सस्ती गोलियां और टीकों ने पंजाब की जवानी बर्बाद कर दी है। ऐसे में उनके घर वाले अपने लिए नहीं बल्कि बच्चों की सेहत के लिए उंमीदवारों की तरफ देख रहे हैं। बेरोजगारी के बाद नशा पंजाब में बड़ा मुद्दा बन गया है। नशे ने राज्य की कई सीटों पर सभी समीकरण फेल कर दिए हैं। लोग अब चाहते हैं कि जिनको वे वोट दें, उनकी आवाज सुनी जाए। नशे की रोकथाम के लिए केंद्र के अलावा राज्य सरकार ने भी कई कदम उठाए हैं। ऐसे में जो पार्टी इन कदमों को लोगों तक पहुंचाएगी उसकी जीत पक्की है। लोग 2024 के चुनाव में नशे की समस्या का स्थायी समाधान चाहते हैं। 4 जून को जब नतीजे आएंगे इस बात पर मुहर लग जाएगी कि इस बार पंजाब ने किसी एक दल को नहीं बल्कि उम्मीदवारों के वादों और विजन को देखते हुए वोट डाला है।
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