लुधियाना
26 मई। करतारपुर साहिब में शिरोमणि अकाली दल सरकार के समय बने जंग-ए-आजादी मेमोरियल स्कैम मामले में पंजाब विजिलेंस ब्यूरो की टीम द्वारा 26 लोगों को नामजद किया है, जबकि इस मामले में 15 लोगों गिरफ्तार भी कर लिया गया है। लेकिन अब इस मामले में बड़े हैरानीजनक पहलु सामने आ रहे हैं। बता दें कि इस पूरे 315 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट स्कैम के मामले में सरकारी तंत्र लगातार गुमराह कर रहा है। इस मामले में आईएएस अधिकारियों व बड़े राजनेताओं को बचाने के चक्कर में पूरे स्कैम की गाज बरजिंदर सिंह हमदर्द, दीपक बिल्डर्स के मालिक दीपक सिंगल और इंजीनियर्स व कांट्रेक्टरों पर गिराकर उन्हें बली का बकरा बनाया गया है। दरअसल, जंग-ए-आजादी मेमोरियल बनाने के लिए गठित की गई ट्रस्ट में कई बड़े राजनेता और आईएएस अधिकारी भी शामिल होते थे। जिनकी सहमति से प्रोजेक्ट पूरा किया गया था। नियमों के मुताबिक ट्रस्ट के मुखी राज्य के मुख्यमंत्री होते हैं और उनके साथ कल्चर मिनिस्टर भी शामिल होते हैं। जबकि सरकारों के कई बड़े राजनेता भी ट्रस्ट के मेंबर रह चुके हैं। वहीं ट्रस्ट की 44 मीटिंगों में कई आईएएस अधिकारी व राजनेता शामिल भी हुए। मीटिंग में सभी फैसले लिए गए और इस यादगार का कार्य पूरा किया गया। लेकिन सरकारी तंत्र व जांच एजेंसियों द्वारा पंजाब सरकार को गुमराह किया जा रहा है। ताकि वह अधिकारियों व राजनेताओं का बचाव कर सके। जबकि कुछ चुनिंदा लोगों पर ही सारे स्कैम की गाज गिरा दी गई।
राज्य का सीएम होता है ट्रस्ट का मुखी
बता दें कि नियमों के मुताबिक ट्रस्ट का मुखी यानि कि चेयरमैन राज्य सरकार का मौजूदा सीएम होता है। 2014 में इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई। 2014 से लेकर 2022 तक स्वर्गीय मुख्यमंत्री परकाश सिंह बादल, कैप्टन अमरेंद्र सिंह और चरणजीत सिंह चन्नी समेत तीन सीएम ट्रस्ट के मुखी रह चुके हैं। जिनकी देखरेख में ही पूरे प्रोजेक्ट को तैयार किया गया है। लेकिन कही न कही जांच एजेंसियां इस बात को छिपाने में जुटी हुई है।
44 मीटिंगों में कई पूर्व मंत्री, राजनेता व अधिकारी होते रहे शामिल
जानकारी के अनुसार इस प्रोजेक्ट को लेकर 44 मीटिंगें हुई थी। इन मीटिंगों में प्रोजेक्ट पूरा करने और पेमेंट समेत सभी चीजों पर विचार के बाद फाइनल किया जाता था। इन मीटिंगों में पूर्व मंत्री, राजनेता, चीफ सेक्रेटरी व आईएएस अधिकारी भी शामिल होते रहे। जिनकी देखरेख में पूरा प्रोजेक्ट बना। जबकि बकायदा उनके हस्ताक्षर भी होते रहे। लेकिन फिर भी विजिलेंस की और से उन्हें इस मामले में शामिल करना जरुरी नहीं समझा गया। चर्चा है कि राजनीतिक दबाव के चलते ही उन्हें इस मामले से दूर रखाकर बचाव किया गया है।
दीपक बिल्डर्स की पहले ही सरकार से 29.64 करोड़ की लेनदारी
इस मामले में विजिलेंस की और से दीपक बिल्डर्स के मालिक दीपक सिंगल को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन दीपक बिल्डर्स की पहले ही सरकार से इस प्रोजेक्ट की 29.64 करोड़ की लेनदारी है। दरसअल, दीपक बिल्डर्स को यह प्रोजेक्ट 200 करोड़ रुपए में मिला था। अलॉटमेंट के समय टेंडर में बताई चीजों को समय समय पर बदलवाया गया। जिसके चलते प्रोजेक्ट पूरा होने पर 25.64 करोड़ रुपए कंपनी की सरकार से लेनदारी निकली। जिसके लिए सभी बिल भी दिए गए। लेकिन पेमेंट न मिलने पर कंपनी द्वारा 2018 में कोर्ट केस किया गया। 2019 में कोर्ट द्वारा सरकार को उक्त पेमेंट कंपनी को अदा करने के आदेश दिए गए। लेकिन पेमेंट न मिलने पर कंपनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इसके अलावा पहले ही इस प्रोजेक्ट की सरकार द्वारा पेमेंट कम की गई थी। जिसके चलते वह चार करोड़ रुपए अलग से सरकार पर देनदारी है।
जांच एजेंसियों की जांच में कई छेंद
बता दें कि जांच एजेंसियों द्वारा बेशक इस मामले में गहनता से जांच करने के दावे किए जा रहे हैं। लेकिन कही न कही उनकी इस जांच में कई छेंद नजर आ रहे हैं। क्योंकि अगर इस प्रोजेक्ट के लिए हुई मीटिंगों में कई पूर्व मंत्री, राजनेता व आईएएस अधिकारी शामिल होते रहे हैं तो उन्हें मामले में शामिल क्यों नहीं किया गया। अभी तक उनकी जवाबदेही क्यों नहीं तय की गई। देखने में लगता है कि शायद एजेंसियों द्वारा चुनिंदा लोगों पर ही कार्रवाई करने के मकसद उन पर मामला दर्ज कर दिया गया। जबकि बाकियों का बचाव किया गया है। अब देखना होगा कि इस मामले में क्या पूर्व मंत्रियों व आईएएस अधिकारियों से जवाबदेही होगी या नहीं।