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अथ चुनाव कथा

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विवेक रंजन श्रीवास्तव

जब दुनिया के ज्यादातर देशो में में राज सत्ता, हिटलर शाही, और मिलट्री रूल का लगभग समापन हो रहा था तब सबका हित चाहने वाले पत्रकार ने भगवान से पूछा कि कि हे प्रभु इस लोकतंत्र में अब जनता जनार्दन के काम काज कैसे होंगे? आप तो न जाने कहां बैठे हैं! कौन आम जनता के दुख दर्द सुनेगा! तो भगवान ने कहा कि हे वत्स तुम सदैव सबका हित चिंतन करते हो अत: आज मैं तुम्हें लोकतंत्र की चुनाव कथा बताता हूं। लोकतंत्र में जो इस कथा को समझकर व्यवहार करेगा उसके सारे कष्ट दूर हो जायेंगे और वह सत्ता सुख भोगेगा। चुनाव लोकतंत्र की जरूरत है। देश! देश के भीतर राज्य, राज्यों के भीतर जिले, जिलों में जनपदें, जनपदों में गांव हर जगह माननीय जन प्रतिनिधियों की दरकार होती है, क्योंकि सरकार चलानी है। इतना ही नहीं स्कूल, कालेज, रिक्शा चालक संघ से लेकर बार एसोसियेशन तक तरह-तरह के छोटे बड़े संगठन, हर कहीं समय समय पर चुनाव होना लोकतंत्र की खासियत है। हम अपने बीच से ही अपना प्रतिनिधि चुनते हैं। फिर चुने गये नेता ही जनता के दुख दर्द सुनने के अधिकृत प्रतिनिधि बनते हैं। चुनानों की घोषणा से पहले वोटर लिस्टें नवीनीकृत की जाती हैं।इस बीच सत्ता धारी पार्टी अपनी पसंद के अधिकारी चुनिंदा पदों पर तैनात कर देते हैं, जिससे फिर से उनकी जीत पक्की लग सके। संभावित उम्मीदवार अपनी तैयारियों में जुट

जाते हैं, वे अपने कुर्ते में लगे दागो को मेल मिलाप, जनहितकारी दिखने वाले कामों के जरिये मिटाने के हर संभव प्रयास करते हैं। टिकिट बंटती है।

माया के खेल चल निकलते हैं, योग्यता के बायोडाटा बनते हैं। महिला, पुरुष, आदिवासी, दलित, सामान्य तरह तरह की छलनियो से हाईकमान द्वारा उम्मीदवारी छानी जाती है। जातियों और धर्म के समीकरण की बैसाखियो के सहारे हर पार्टी की अपनी उम्मीदवारी तय हो जाती है। उम्मीदवार घोषित होते ही कैंडीडेट का गुट खुशियां मनाता है। जिसे टिकिट नहीं मिल पाती वह

खेमा विरोध और भितरघात की तैयारियों में भिड़ जाता है।

*प्रथमो अध्याय समाप्त!। बोलो लोकतंत्र की जय*

चुनाव आयोग द्वारा चुनावों की घोषणा के साथ ही आदर्श आचरण संहिता प्रभावी हो जाती है। नेता आम जनता बन जाता है। यह प्रश्न पूछने पर कि जब बिना जन प्रतिनिधियों के ही आदर्श प्रशासन चल सकता है तो फिर नेताजी को चुनकर सर पर बैठाने की क्या जरूरत है, बनते काम बिगड़ जाते हैं, इसलिये ऐसा विचार मन में भी न लाना। चुनावी प्रक्रिया शुरू होती है। नेताजी, अपने पंडित जी द्वारा निर्धारित मुहूर्त पर अपने दल बल सहित नामांकन दाखिल करने के लिये खुली गाड़ी में सवार होकर पहुंचते हैं। खुद के ही भरे फार्म के सही होने पर खुद को ही संशय के चलते नामांकन फार्म के वकील साहब से जांचे परखे कई सैट जमा किये जाते हैं। विश्वसनीय डमी उम्मीदवार भी खड़े किये जाते हैं। पार्टी मुख्यालयों से वादो के पुलिंदो के भारी भरकम घोषणा पत्र जनता की खुशहाली की तस्वीरो के साथ जारी होते हैं।

कैनवासिंग, उम्मीदवार की सफलता का महा मंत्र होता है। नुक्कड़ सभायें होती हैं। चाय पान के ठेलों पर चर्चा से माहौल बनता है। गुप्तचर एजेंसियां सत्ताधारी दल की जीत की संभावनाओं का गोपनीय आकलन करती हैं।

समाचार पत्रो में विज्ञापनो की बहार आ जाती है। निर्धारित चुनाव व्यय से वास्तविक चुनावी प्रचार की तुलना करें तो लगता है, मंहगाई है ही नही। इस बीच टीवी चैनलो में गर्मा गरम बहसें जारी रहती हैं। स्टार प्रचारकों की सभायें होती हैं। भीड़ जुटाई जाती है। रैलियां निकाली जाती हैं। अनेकता में एकता हिन्द की विशेषता के अनुरूप एक ही थोक विक्रेता के यहां से प्राय: सभी पार्टियों के बैनर, पोस्टर, टोपियां इत्यादि चुनाव प्रचार सामग्री बिकती दिखती है। कई फ्रीलांसर फालतू घूमते लडक़ों को पार्ट टाइम जाब मिल जाता है, उम्मीदवार मोहल्ले मोहल्ले में अपने कार्यालय खोल देता है। पुलिस, गुण्डों, देर रात आने जाने वाली गाडिय़ों की धर पकड़ शुरू कर देती है। जो नेता कभी मिलने वालो को घंटों इंतजार करवा कर भी नहीं मिलता था, खुद ही घर घर जाकर जन संपर्क करता नजर आता है। सरे आम, भरे दिन सबको हर किसी के द्वारा सुखद सपने दिखाये जाते हैं, प्रचार अभियान चल निकलता है।

*इति द्वितीयो अध्याय! बोलो सब उम्मीदवारो की जय*

धीरे-धीरे चुनाव प्रचार समाप्त होता है और, वोटिंग का दिन आ जाता है। उम्मीदवारों की धडक़ने बढऩे लगती हैं। वोटर एक दिन का राजा बन जाता है। घर परिवार में, गुप्त मशविरे होते हैं। कुछ को जिन्हें लोग वोट बैंक समझते हैं उन्हें फतवे जारी होते हैं। कुछ मोहल्लों में दारू, धोती, कम्बल, साड़ी वगैरह बांटने की गुप चुप प्रक्रिया रातों रात पूरी की जाती है। वोटिंग वाले दिन की तैयारी में सरकारी कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द कर दी जाती हैं । वोटर के घर से भले ही स्कूल, कालेज, अस्पताल, कोर्ट कचहरी दूर हो पर मतदान केंद्र आस पास ही बनाया जाता है। मुस्कराता हुआ वोटर गोपनीय तरीके से अपने मन की बात वोटिंग मशीन को बता आता है। शाम होते होते वोटिंग के आंकड़ों के आधार पर देश, दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र होने का गौरव दोहराता है। किंबहुना थोड़ी बहुत झड़प, इक्का

दुक्का फायरिंग वगैरह के साथ शांति पूर्ण मतदान संपन्न हो जाता है। प्रशासन थोड़ी सी चैन की सांस लेता है। मतदान मशीनें सुरक्षा घेरे के बीच, सर्च लाइट की चौहद्दी में जमा हो जाती हैं। टी.वी. पर चुनाव अनुमानों की बाढ़ आ जाती है। हर उम्मीदवार जीत की उम्मीद के साथ सुस्ताने की मुद्रा में सावधान से विश्राम की स्थिति में आ जाता है।

*तृतीयो अध्याय: समाप्तम! बोलो नेता जी की जय*

समय किसी के लिये नही रुकता, अंततोगत्वा वोटो की गणना का दिन आ ही जाता है। जो कैंडीडेट उम्मीद से होते हैं वे और जिन्हें अंदाजा हो जाता है कि उन्हें हारना है वे भी काउंटिंग बूथ पर अपने प्रतिनिधि नियुक्त कर पहुंचा देते हैं। टीवी चैनल अपनी मोबाइल वैन लेकर काउंटिंग स्थल पर तैनात हो जाते हैं। परिणाम घोषित होते हैं। हारने वाले ई वी एम में धांधली के आरोप लगाकर अपना बचाव करते हैं, जीतने वाले जुलूस निकाल कर खुशियां मनाते हैं। जीतने वाले दल की सरकार बनती है। मंत्री चुने जाते हैं। शपथ ग्रहण होती है। जनता इस आशा में कि जैसे नेता जी के दिन बदले उनके भी बदलेंगे, इंतजार करती रह जाती है पर सत्ता के मद में चुने गये नेता जनता को भूल जाते हैं। जनता अगले चुनाव का इंतजार करती है। दूसरी पार्टी को जिताती है। पर जीतकर वे भी वैसे ही हो जाते हें। इस तरह लोकतंत्र की सरकारें चलती रहती हैं, जब तब थोड़ा बहुत काम काज, विकास वगैरह होता चलता है। जनता को इसी में खुश रहना उसकी मजबूरी है।

*इति चतुर्थो अध्याय: समाप्तम्! बोलो सब सरकारों की जय।*

पांचवे अध्याय कि कथा बड़ी रोचक, रोमांचक और शिक्षा प्रद है, सो सब जन हाथ जोडक़र ध्यान पूर्वक सुनें। एक नेता ने एक बार एक चुनाव में जनता से वादा किया कि वह चुनाव कथा करवाकर जनता के सारे दुख दूर कर देगा। जनता

देवता ने प्रसन्न होकर उसे ही अपना नेता चुन लिया। पर नेता राजधानी में ऐसा व्यस्त हो गया कि उसे जनता की, कथा की याद ही नहीं आई। फिर एक दिन जनता ने नेता से पूछा कि हे नेता!, तू मेरा सरताज बन गया है, हम तुझे हर आयोजन में मुख्य अतिथि बनाकर बुलाते हैं, तुझसे उद्घाटन और शिलान्यास करवाते हैं, तुझे गजहार पहनाते हैं, फिर तू हमसे किये वादे के अनुसार हमारे दुख दूर करने के लिये चुनाव कथा क्यों नही करवा रहा है, तो नेता ने जबाब दिया कि इस बार के चुनावों में जीत के लिये झुग्गी बस्ती में दारू बांटने बहुत सारा व्यय हो गया है, इसलिये मैं अगली पंचवर्षीय योजना पूरी होते ही चुनाव कथा का आयोजन करूंगा। भोली भाली जनता ने अगली बार भी नेता को विधिवत चुन लिया पर नेता ने फिर भी चुनाव कथा नहीं करवाई। इससे चुनाव देवता अप्रसन्न हो गये। जब नेता जी एक रात सो रहे थे तभी सुबह सुबह उनके ठिकानों पर छापा पड़ गया और उनके और उनके परिवार जनों पर मुकदमें कायम कर दिये गये, नेता जी की तमाम कोशिशों के बाद भी हाई कमान ने उनकी एक न सुनीऔर बेबसी में उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। लम्बी कानूनी प्रक्रिया चली, नेता जी को जेल में डाल दिया गया। नेता जी की पत्नी एक दिन किसी पार्टी के दफ्तर से बाहर से निकल रही थी, वहां बड़ी भीड़-भाड़ थी, उसने लोगों से पूछा कि यहां क्या चल रहा है, लोगों ने बतलाया कि पार्टी की जीत की खुशी में यहां चुनाव कथा की जा रही है, वह वही बैठ गई उसने ध्यान

पूर्वक पूरी कथा सुनी और श्रद्धा से प्रसाद ग्रहण किया। उसने मन ही मन निश्चय किया कि यदि उसके पति फिर से सत्ता में आयेंगे तो वह धूमधाम से चुनाव कथा करवायेंगे। इससे चुनाव देवता प्रसन्न हो गये और उन्होने जेल में आराम कर रहे नेता जी को स्वप्न में फिर से चुनाव लडऩे का आदेश दिया। नेता जी ने जेल से ही चुनाव लड़ा, उनके पुतले को सभाओं में घुमाकर जनता से वोट मांगे गये, वे चुनाव जीत गये। उन पर लगे सारे आरोप गलत सिद्ध हो गये वे फिर से सत्ता में आ गये। चुनाव देवता ने नेता जी की परीक्षा लेने की सोची, जेल से बाहर आये नेता जी के सम्मुख आम आदमी बनकर उनका रास्ता रोककर अपने मोहल्ले की खराब सडक़ सुधरवाने की गुहार लगाई, पर नेता जी ने चुनाव देवता को नही पहचाना वे सत्ता मद में चूर आम आदमी की अनसुनी करके आगे बढ़ गये। चुनाव देवता ने फिर से उन्हें श्राप दे दिया और नेता जी एक टर्म का सत्ता सुख भोगकर फिर जांच के घेरे में आ गये। भगवान ने कहा कि तब से यह क्रम चला आ रहा है, बहुत कम नेता जीत के बाद चुनाव कथा का स्मरण रखते हैं। ज्यादातर बार बार श्रापित होकर जांच के घेरे में आ जाते हैं कष्ट भोगते हैं पर वे आम आदमी बने चुनाव देवता को नहीं पहचान पाते। चुनाव में जनता से किये वादों को न निभाने के कारण वे तरह तरह के कष्ट भोग रहे हैं। हे वत्स यदि नेता जनता के हितों को ध्यान रखे तो लोकतंत्र से बेहतर कोई शासन प्रणाली है ही नही, जिसमें हर आम आदमी नेता बनकर सर्वोच्च पद तक पहुंच सकता है।! *अथ पंचमो अध्याय: !! चुनाव कथा समाप्त !! बोलो जनता जनार्दन की जय।

 

(विनायक फीचर्स)*

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