बालीवुड के हीमैन धर्मेंद्र का 89 साल की उम्र में निधन, लुधियाना में ट्यूबवेल ऑपरेटर की नौकरी छोड़ मुंबई गए थे धर्मेंद्र, दिल भी तेरा हम भी तेरे फिल्म से किया था डेब्यू, मिली थी 50 रुपए फीस

Rajdeep Saini
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चंडीगढ़ 24 नवंबर। दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र का निधन हो गया है। 89 साल के धर्मेंद्र ने सोमवार दोपहर अपने घर पर अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार विले पार्ले श्मशान भूमि में हुआ, जिसमें सलमान खान, संजय दत्त, अमिताभ बच्चन, आमिर खान समेत कई सेलेब्स पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र के निधन को एक युग के अंत का संकेत कहा है। दोपहर में उनके घर के बाहर एम्बुलेंस पहुंची थी और विले पार्ले श्मशान भूमि में सिक्योरिटी बढ़ा दी गई थी। इसके बाद उनका पार्थिव शरीर एम्बुलेंस से श्मशान घाट पहुंचाया गया। धर्मेंद्र के निधन की खबर सामने आने के तुरंत बाद, उनकी पत्नी और जानी-मानी एक्ट्रेस हेमा मालिनी उन्हें आखिरी श्रद्धांजलि देने उनके घर पहुंचीं। उनकी बेटी ईशा देओल भी अपने पिता को आखिरी विदाई देने पहुंचीं।

कुछ दिन पहले भी सेहत हुई थी खराब

धर्मेंद्र की इस महीने की शुरुआत में तबीयत बिगड़ गई थी, जिसके कारण उन्हें 10 नवंबर, 2025 को मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल के इंटेंसिव केयर यूनिट में भर्ती कराया गया था। बाद में ऑक्सीजन की कमी महसूस होने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। देओल परिवार ने पहले कन्फर्म किया था कि धर्मेंद्र पर इलाज का असर हो रहा है और वह ठीक हो रहे हैं। उनके डॉक्टर ने भी कन्फर्म किया था कि कुछ दिन पहले डिस्चार्ज होने के बाद वह घर पर फैमिली केयर में इलाज जारी रखेंगे।

ट्यूबवेल ऑपरेटर की नौकरी छोड़ मुंबई गए धमेंद्र

धर्मेंद्र के साहनेवाल गांव के वासियों ने बताया कि वह पहले ट्यूबवेल ऑपरेटर थे। लेकिन फिर उनका मन सिर्फ एक्टर बनने का था। जिसके चलते वह नौकरी छोड़कर फिल्मों के लिए मुंबई चले गए। उनका बचपन से ही फिल्मों में आने का शौक था। गांव वासियों के अनुसार धर्मेंद्र जब गांव आते थे तो स्कूल और रेलवे स्टेशन पर जाते थे और अपनी पुरानी यादें ताजा करते थे।

300 से ज्यादा फिल्मों में किया काम

89 साल के एक्टर ने छह दशक से ज़्यादा के करियर में 300 से ज़्यादा फिल्मों में काम किया। वह पंजाब के एक छोटे से गांव से निकलकर भारत के सबसे पसंदीदा स्टार्स में से एक बन गए। शोले जैसी फिल्मों में उनके मशहूर रोल्स ने उन्हें फैंस और इंडस्ट्री के बीच ही-मैन का टाइटल दिलाया।

लुधियाना के गांव नसराली से थे धर्मेंद्र

धर्मेंद्र देओल का जन्म 8 दिसंबर 1935 को ब्रिटिश इंडिया के पंजाब के लुधियाना जिले के साहनेवाल के गांव नसराली में हुआ था। वह केवल कृष्ण और सतवंत कौर के बेटे थे और एक पंजाबी जाट परिवार में पैदा हुए थे। उनका पुश्तैनी गांव डांगों है, जो लुधियाना के रायकोट तहसील के पखोवाल के पास है। उन्होंने अपनी शुरुआती ज़िंदगी साहनेवाल गांव में बिताई और लुधियाना के ललतों कलां के गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल में पढ़ाई की, जहां उनके पिता गांव के स्कूल के हेडमास्टर थे। उन्होंने 1952 में फगवाड़ा से मैट्रिक किया।

पहली फिल्म की मिली थी 50 रुपए फीस

धर्मेंद्र ने 1960 में दिल भी तेरा हम भी तेरे फिल्म से डेब्यू किया। इस फिल्म के लिए उन्हें 50 रुपए फीस मिली। लेकिन यह फिल्म हिट हुई। जिसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई फिल्में की। उन्होंने 1960 के दशक के बीच आई मिलन की बेला, फूल और पत्थर और आए दिन बहार के जैसी फिल्मों से पॉपुलैरिटी मिली और बाद के सालों में उन्हें और स्टारडम मिला। पहले वह रोमेंटिक फिल्में करते थे। लेकिन बाद में एक्शन फिल्में करने लगे। जिसके चलते उन्हें इंडिया का ही-मैन कहा जाने लगा।

इंडियन सिनेमा को कई हिट फिल्में दी

उन्होंने 1960 के दशक के अंत से लेकर 1980 के दशक तक लगातार कई सफल हिंदी फिल्मों में अभिनय किया। जैसे आँखें,छोले, शिकार, आया सावन झूम के, जीवन मृत्यु, मेरा गाँव मेरा देश, सीता और गीता, राजा जानी, जुगनू, यादों की बारात, दोस्त, शोले, प्रतिज्ञा, चरस, धरम वीर, चाचा भतीजा, गुलामी, हुकूमत, आग ही आग, एलान-ए-जंग और तहलका शामिल है। इसके अलावा उनके कुछ प्रशंसित प्रदर्शनों में अनपढ़, बंदिनी, हकीकत, अनुपमा, ममता, मझली दीदी, सत्यकाम, नया ज़माना, समाधि, रेशम की डोरी, चुपके चुपके, दिल्लगी, द बर्निंग ट्रेन, ग़ज़ब, दो दिशाएँ और हथियार शामिल हैं।

कई अवॉर्ड भी किए नाम

1997 में, उन्हें बॉलीवुड में उनके योगदान के लिए फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिला। इसके अलावा भी उन्हें कई अवॉर्डों से नवाजा गया। वह भारत की 15वीं लोकसभा के सदस्य थे, जो भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से राजस्थान में बीकानेर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे।

धर्मेंद्र अक्सर बोलते थे कि मेरी आत्मा पंजाब में

धर्मेंद्र अक्सर पंजाब के लुधियाना, जो उनका होम डिस्ट्रिक्ट है, के डांगो, साहनेवाल और ललतों गांवों में परिवार, पुराने जान-पहचान वालों और दोस्तों से मिलने के लिए पुरानी यादों में खो जाते थे। वह अक्सर कहते थे कि मैं भले ही बॉम्बे में रहूं लेकिन मेरी आत्मा हमेशा पंजाब में रहती है।

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