नई दिल्ली 24 मई।
कांग्रेस ने भले ही अरविंदर सिंह लवली, राजकुमार चौहान, नसीब सिंह, नीरज बसोया, ओमप्रकाश बिधूड़ी और जयकिशन शर्मा जैसे वरिष्ठ नेताओं को अतीत का अध्याय बना दिया हो, लेकिन इनका भाजपा में जाना आइएनडीआइ गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए नुकसान की वजह भी बन सकता है।
इन सभी का अपने-अपने समाज और दिल्ली की सियासत में रसूख है। ऐसे में, इनके चले जाने से एक बड़ा वोट बैंक भी इन प्रत्याशियों को मिलने से छिटक सकता है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लवली का दिल्ली में अच्छा प्रभाव माना जाता है। पिछले लोकसभा चुनाव में वह पूर्वी दिल्ली से कांग्रेस के प्रत्याशी थे और आप उम्मीदवार से अधिक मत प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहे थे।
शीला सरकार में 15 साल मंत्री रहे राजकुमार चौहान
वह शीला दीक्षित सरकार में लंबे समय तक शिक्षा और परिवहन मंत्री भी रहे हैं। सिख समाज में भी उनकी पैठ है। इसी तरह से राजकुमार चौहान भी शीला सरकार में 15 साल शहरी विकास मंत्री रहे। उत्तर-पश्चिमी दिल्ली सहित दिल्ली के अन्य क्षेत्रों के अनुसूचित जाति समाज में इनका अच्छा प्रभाव रहा हैं।
ब्लॉक स्तरीय नेता भी भाजपा में हो गए शामिल
शीला दीक्षित के पूर्व संसदीय सचिव नसीब सिंह, पूर्व विधायक नीरज बसोया और एआइसीसी सदस्य ओमप्रकाश बिधूड़ी गुर्जर समाज के नेता हैं। इनकी भी अपने क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। ऐसे ही, जयकिशन शर्मा नजफगढ़ क्षेत्र में अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं और लंबे समय से नगर निगम की राजनीति करते रहे हैं। इन नेताओं के पाला बदलने के बाद इनके समर्थक कई पूर्व पार्षद और ब्लॉक स्तरीय नेता भी भाजपा में शामिल हो गए हैं।
पार्टी के लिए संपत्ति की तरह हो जाते हैं प्रमुख पदों पर रहे नेता
राजनीतिक जानकारों की मानें तो किसी भी पार्टी के पुराने और प्रमुख पदों पर रहे नेता उस पार्टी के लिए संपत्ति की तरह हो जाते हैं। उनका मार्गदर्शन और अनुभव दोनों ही पार्टी के लिए उपयोग होते हैं। अगर शीर्ष नेतृत्व उन्हीं की अनदेखी करने लगें, तो यह उस संगठन की बेहतरी के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता है।
यह कह देना बहुत सहज है कि किसी के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन सच्चाई इससे उलट है। प्रदेश कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता नाम न छापने के अनुरोध पर कहते हैं कि अभी चुनावी बेला चल रही है, तो किसी को ज्यादा पता नहीं चल रहा, लेकिन जब चार जून का परिणाम घोषित हो जाएगा, तो वे भी पार्टी छोड़ने के बारे में सोच सकते हैं, जो अभी ह्यवेट एंड वाचह्ण की नीति पर चल रहे हैं।
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