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मुद्दे की बात : लोगों की जिंदगी से खेल रहे बेखौफ हो पराली जलाने वाले

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जलती पराली में सुलगता बड़ा सवाल

तापमान बढ़ने से जानलेवा गर्मी, मगर उससे भी खतरनाक  सियासी-तापमान साबित हो रहा है। दरअसल भीषण गर्मी से कमोबेश पूरे देश में लोग हांफते, निढाल होते नजर आ रहे हैं। ऐसे में देश के कई हिस्सों से लेकर राजधानी दिल्ली की सरहद तक धड़ल्ले से खेतों में पराली जलाई जा रही है। जलती पराली में वही सबसे बड़ा सवाल फिर सुलग रहा है कि आखिर जनता का क्या कसूर है ? जो पराली के प्रदूषण से भी दोगुनी मार झेलने को मजबूर है।

चुनावी-शोर में यह ज्वलंत सवाल दब सा गया है कि पराली जलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं हो रही। क्या केंद्र और राज्यों की सरकारें सियासी-मजबूरी में जान-बूझकर अंजान बनी हैं। हद ये कि प्रदूषण के खात्मे के नाम पर करोड़ों का फंड बटोरने वाले एनजीओ भी खामोश बैठे हैं। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की तमाशबीन वाली मौजूदा भूमिका और बेचैन कर रही है। बस आस बची है तो सर्वोच्च अदालत से। यहां गौरतलब पहलू है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने इस ज्वलंत समस्या पर संज्ञान लेते हुए गंभीर टिप्पणी की थी। जिसमें सर्वोच्च अदालत ने पंजाब सरकार को सलाह देते कहा था कि पराली जलाने वाले किसानों को एमएसपी के लाभ से वंचित कर देना चाहिए।

बताते चलें कि इस बार भी कृषि-प्रधान सूबा पंजाब पराली जलाए जाने से प्रभावित है। फिलहाल ही एक बड़ा हादसा राज्य में पेश आया। एक गांव को जाती सड़क पर दमघोटू धुआ पराली जलाने से छाया तो बाइक सवार भाई-बहन हादसे का शिकार हो गए थे। धुएं में बाइक स्लिप होने से सड़क पर गिरने से बहन की मौत हो गई थी। जबकि भाई जख्मी हो गया था। अगर पंजाब सरकार और पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड अब भी नहीं जागा तो ऐसे हादसे और होने की आशंका बनी रहेगी। बेशक लोकतंत्र के महापर्व में शासन-प्रशासन सभी व्यस्त हैं, लेकिन जनता की जान की हिफाजत करना भी उनका संवैधानिक फर्ज है।

 

 

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