चेतन चौहान
सरकारी क्षेत्र या निजी क्षेत्र की लम्बी सेवा के पश्चात् सेवानिवृत्त व्यक्ति की समाज के लोग उनकी कार्यक्षमता व अनुभव की अनदेखी करते हैं। इसलिए आज सेवानिवृत्त व्यक्ति घूमने, टहलने या फिर धार्मिक स्थानों पर जाकर समय व्यतीत करता है और ज्यादा से ज्यादा घर रहकर पत्र-पत्रिकाएं पढ़ लेता है। ऐसे समय में घर की जिम्मेदारियां भी कम ही रह जाती हैं और वह धीरे-धीरे आलसी भी हो जाता है। अक्सर रिटायर व्यक्ति यह धारणा मन में बैठा लेते हैं कि अब वे किसी काम के तो रहे नहीं है, ऐसी स्थिति में आम लोगों की सोच व धारणा भी उनके जैसी बन जाती है।
यदि वास्तव में देखा जाय तो सेवानिवृत्ति एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें आने वाली पीढिय़ों के लिए स्थान खाली होता है। सेवानिवृत्ति का अर्थ कदापि इस बात से नहीं लगाना चाहिए कि रिटायरमेंट की उम्र तक पहुंचे व्यक्ति शारीरिक व मानसिक दृष्टिï से कमजोर हो गए हैं अथवा वे हर कार्य में अक्षम साबित हो रहे हैं, जबकि सच्चाई तो यह है कि रिटायरमेंट की उम्र तक पहुंचा हर व्यक्ति अनुभव और कार्य कौशल में सर्वाधिक निपुण हो जाता है।
जो व्यक्ति साठ वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होता है वह कदापि अयोग्य नहीं माना जा सकता है, चूंकि वह अपने अंतिम क्षण तक परिवार व समाज का बोझ ढोता है। यूं देखा जाये तो जिन परिवारों के अपने निजी व्यवसाय, धन्धे अथवा खेती-बाड़ी है, उनके यहां बुजुर्ग कभी भी सेवानिवृत्त नहीं होते हैं, उनमें ज्यों की त्यों फुर्ती व जोश बना रहता है। महंगाई के इस युग में पूंजीवादी व्यवस्था के चलते हर कोई व्यक्ति व्यापार या कारोबार नहीं कर सकता है इसलिए निश्चिन्तता की जिन्दगी गुजर-बसर करने के लिए व्यक्ति सरकारी या अद्र्धसरकारी नौकरी करना चाहता है। वर्तमान में यह चर्चा जोरों पर है कि पब्लिक सेक्टर के मुकाबले प्राईवेट सेक्टर से निवृत्त व्यक्तियों को उनकी कार्यक्षमता व अनुभव के आधार पर उसी सेक्टर में किसी न किसी रूप में समाहित कर लिया जाता है। यह बात अलग है कि वेतन पहले के मुकाबले थोड़ा कम अवश्य मिलता है, लेकिन उनकी कार्यकुशलता का भरपूर लाभ लिया जाता है। लेकिन ऐसे अनुभवी व्यक्तियों की तादाद सरकारी संस्थाओं से सेवानिवृत्त होने वालों से कम है।
अपनी उम्र के आधार पर आज करोड़ों व्यक्ति विभिन्न सरकारी व निजी संस्थाओं से रिटायर्ड होकर यूं ही बैठे हैं, ये लोग समाज से क्या अपेक्षा रखते हैं? इस बात पर यदि गौर किया जो तो जिन्होंने सेवानिवृत्ति के दौरान अपने अनुभव, ज्ञान व कार्यक्षमता से समाज व राष्टï्र के संबंध में अपना सोच बनाया है तो ऐसे व्यक्ति किस तरह से आपस में जुटें कि उनका लाभ उठाया जा सके।
बदलती जीवनशैली व मूल्यों में परिवर्तन की वजह से सेवानिवृत्त व्यक्तियों को पहले जैसा आदर स्नेह पूर्ण वातावरण व हमदर्दी भी नहीं मिल पा रही है, क्योंकि समाज के बदलते दृष्टिकोण में वे लोग रिटायर्ड हैं, वह इन्हें अब तो समाज सेवा, भगवान का भजन व धार्मिक स्थानों पर होने वाले प्रवचनों में जाना चाहिए। कुछ लोग जो वास्तव में इन लोगों के प्रति गंभीर हैं वे इनसे समाज का मार्गदर्शन उनकी योग्यता व अनुभव के आधार पर करवाना चाहते हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि जब भी कोई सेवानिवृत्त व्यक्ति सेवा के क्षेत्रों में हाथ भी बांटना चाहता है तो उसे अपेक्षित सहयोग भी नहीं मिल पाता है। रिटायर्ड व्यक्तियों के लिए समाजसेवी संगठन अथवा मंच बनाना भी आसान नहीं है, क्योंकि न तो इन्हें अनुदान, संरक्षण व मान्यता ही मिल पाती है व न ही प्रभावशाली लोगों का पूर्ण सहयोग। धन के अभाव में ये लोग शिक्षण संस्थाएं, प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र इत्यादि भी नहीं खोल सकते हैं। बदलते परिवेश में सेवानिवृत्त व्यक्ति यदि समाज में श्रेष्ठ व उपयोगी बनना ही चाहते हैं तो सर्वप्रथम उन्हें अपने इस सोच को बदलना होगा कि वे रिटायर्ड हैं। बल्कि ऐसे लोग चाहे वे पढ़े-लिखे हैं या कम अथवा उच्च या निम्न पदों पर कार्यरत हैं, यदि कुछ हुनर के तौर पर या शौकिया कुछ काम सीख लें, जैसे लेखन, गायन, वादन, काव्य रचना, अभिनय, फोटोग्राफी, टूरिस्ट गाईड, होम्योपैथी या आयुर्वेद, ज्योतिष, पेंटिंग, घड़ीसाज का काम या फिर जिसमें उनकी रुचि रही है तो इन कार्यों में बिना पूंजी लगाये कार्य कर सकते हैं, जिससे खाली समय तो कटेगा ही कुछ आर्थिक लाभ भी होगा। इसके अलावा कुछ लोग जो सेल टैक्स, इनकम टैक्स, चुंगी, पुलिस डाक-तार विभाग, कोर्ट में जज, रेलवे विभाग या वेलफेयर विभागों से सेवानिवृत्त हो चुके हैं वे अपने पद की गरिमा व कार्यानुभव के तौर पर लोगों के अच्छे सलाहकार बन सकते हैं व उचित फीस भी यदि लें तो तमाम सरकारी झंझटों में फंसा आदमी इनसे उचित राय लेकर अपनी परेशानी का रास्ता निकाल सकता है
(विभूति फीचर्स)