एकाकी परिवारों में बढ़ोतरी गहन चिंता का विषय!
अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस 15 मई पर विशेष।
इस संसार या समाज में परिवार एक सबसे छोटी लेकिन महत्वपूर्ण व बेहद मजबूत इकाई है। यह हमारे जीवन की एक ऐसी आवश्यक मौलिक इकाई है, जो हमें एक-दूसरे के साथ प्यार, मोहब्बत, आपसी सहयोगात्मक, सामंजस्य के साथ जीवन जीना सिखाती है, परिवार ही हमें समाज में सौहार्दपूर्ण संबंध व आपसी मेलजोल से रहना सिखाता है। प्रत्येक इंसान किसी न किसी परिवार का महत्वपूर्ण अंग है परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है जो आपसी सहयोग व समन्वय से क्रियान्वित होती है और जिसके समस्त सदस्य आपस में मिलकर अपना जीवन प्रेम, स्नेह एवं भाईचारापूर्वक निर्वाह करते हैं। संस्कार, मर्यादा, सम्मान, समर्पण, आदर, अनुशासन आदि किसी भी सुखी-संपन्न एवं खुशहाल परिवार के गुण होते हैं। कोई भी व्यक्ति परिवार में ही जन्म लेता है, उसी से उसकी पहचान होती है और परिवार से ही अच्छे-बुरे लक्षण सीखता है। परिवार सभी लोगों को जोड़े रखता है और दुःख-सुख में सभी एक-दूसरे का साथ देते हैं।
कहते हैं कि परिवार से बड़ा कोई धन नहीं होता हैं, पिता से बड़ा कोई सलाहकार नहीं होता हैं, मां के आंचल से बड़ी कोई दुनिया नहीं, भाई से अच्छा कोई भागीदार नहीं, बहन से बड़ा कोई शुभ चिंतक नहीं इसलिए परिवार के बिना जीवन की कल्पना करना कठिन है। एक अच्छा परिवार बच्चे के चरित्र निर्माण से लेकर व्यक्ति की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कहने को तो प्राणी जगत में परिवार एक छोटी इकाई है लेकिन इसकी मजबूती हमें हर बड़ी से बड़ी मुसीबत से बचाने में कारगर है। परिवार से इतर व्यक्ति का अस्तित्व नहीं है इसलिए परिवार के बिना अस्तित्व के कभी सोचा नहीं जा सकता। लोगों से परिवार बनता हैं और परिवार से राष्ट्र और राष्ट्र से विश्व बनता हैं।
परिवार के महत्व और उसकी उपयोगिता को प्रकट करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 15 मई को संपूर्ण विश्व में ‘अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस’ मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 1994 को अंतरराष्ट्रीय परिवार वर्ष घोषित कर की थी। तब से इस दिवस को मनाने का सिलसिला जारी है। इसलिए कहा भी जाता है ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ अर्थात पूरी पृथ्वी हमारा परिवार है। ऐसी भावना के पीछे परस्पर वैमनस्य, कटुता, शत्रुता व घृणा को कम करना है।
परिवार दो प्रकार के होते हैं। एक एकाकी परिवार और दूसरा संयुक्त परिवार।
एकाकी परिवारों की जीवनशैली ने दादा-दादी और नाना-नानी की गोद में खेलने व लोरी सुनने वाले बच्चों का बचपन छीनकर उन्हें मोबाइल का आदी बना दिया है। उपभोक्तावादी संस्कृति, अपरिपक्वता, व्यक्तिगत आकांक्षा, स्वकेंद्रित विचार, व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि, लोभी मानसिकता, आपसी मनमुटाव और सामंजस्य की कमी के कारण संयुक्त परिवार की संस्कृति छिन्न-भिन्न हुई है। इसके अलावा पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव बढ़ने के कारण आधुनिक पीढ़ी का अपने बुजुर्गों व अभिभावकों के प्रति आदर कम होने लगा है। वृद्धावस्था में अधिकतर बीमार रहने वाले माता-पिता अब उन्हें बोझ लगने लगे हैं। वे अपने संस्कारों और मूल्यों से कटकर एकाकी जीवन को ही अपनी असली खुशी व आदर्श मान बैठे हैं।
परिवार की महत्ता को लोगों को समझाने के लिए 15 मई को सम्पूर्ण विश्व में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिन के लिए जिस प्रतीक चिह्न को चुना गया है, उसमें हरे रंग के एक गोल घेरे के बीचों बीच एक दिल और घर अंकित किया गया है। जिससे स्पष्ट है कि किसी भी समाज का केंद्र परिवार ही होता है। परिवार में आकर ही हर उम्र व वर्ग के लोगों को जिंदगी का असली सुकून पहुँचता है।
हालांकि आजकल के बेहद व्यवसायिक दौर में संयुक्त परिवार के स्वरूप में बहुत परिवर्तन आया है, हालांकि आज परिवार के मूल्यों में बहुत परिवर्तन हुआ है, लेकिन फिर भी कभी जिंदगी में परिवार के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न नहीं लगाया जा सकता है, भारत में हर व्यक्ति के जीवन में परिवार का अपना अलग ही महत्व है।
आज के आधुनिक समाज में परिवारों का विघटन दिन-प्रतिदिन बहुत ही तेजी के साथ बढ़ रहा है, हमारा देश भारत भी इससे अछूता नहीं है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य जीवन में लोगों को संयुक्त परिवार की अहमियत बताना है, संयुक्त परिवार से जीवन में होने वाली उन्नति के साथ, एकल परिवारों और अकेलेपन के नुकसान के प्रति युवाओं को जागरूक करना भी “विश्व परिवार दिवस” का मूल उद्देश्य है। जिससे युवा अपनी बुरी आदतों (शराब, धूम्रपान, जुआ, गंदा नशा आदि) को छोड़कर एक सफल जीवन की शुरुआत संयुक्त परिवार में रह कर सकें।
सच है कि आज संयुक्त परिवार बिखर रहे हैं। एकल परिवार भी तनाव में जी रहे हैं। बदलते परिवेश में पारिवारिक सौहार्द का ग्राफ नीचे गिर रहा है, जो एक गंभीर समस्या है।
जैसा बोया, वैसा काटोगे’ के सर्वकाल सत्य के आधार पर कहा जा सकता है कि जो भाव और व्यवहार हमारा दूसरों के प्रति होगा, वही हमें भी प्रतिफल में मिलेगा। तभी ‘सुख’ अपनी पूर्णता को प्राप्त करेगा और तब आपका घर ऐसे अटल सुख, मंगल व शांति से भर उठेगा, जिसकी सुगंध से आपके मन प्राण ही नहीं, आत्मा भी तृप्त होगी।
आज लोग स्वतंत्रता को प्रमुखता देने लगे, सुरक्षा को नहीं। लोग स्वतंत्रता चाहते हैं सुरक्षा नहीं। यदि तुम्हें सुरक्षा चाहिए तो संयुक्त परिवार में रहो, एकल परिवार में स्वतंत्रता मिलेगी, सुरक्षा नहीं मिलेगी तो हमें इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारत की मूल संस्कृति की पहचान करते हुए इसी अवधारणा के साथ जीना चाहिए जिससे अपने जीवन को बेहतर बनाया जा सके।
इसलिए आज हमको इस दिन का उद्देश्य पूरा करने के लिए संकल्प लेना होगा कि हम हमेशा अपने परिजनों का ध्यान रखेंगे और सुख-दुख में आपस में सहयोग करेंगे तथा सनातन धर्म की प्राचीन परंपरा “वसुधैव कुटुम्बकम्” जिसके अनुसार धरती ही परिवार है माना गया है पर अमल करेंगे। जय हिन्द।
लेक्चरर ललित गुप्ता,गोपाल भवन रोड ,मंडी अहमदगढ़
9781590500