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मुद्दे की बात : मोदी बोले तो मगर ‘मन की बात’ ही

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सवाल दर सवाल है, जवाब चाहिए तो सुनिए बस मन की बात….

दस साल के दौरान प्रधानमंत्री देश की ज्वलंत समस्याओं पर भी एकतरह से चुप्पी ही साधे रहे। कभी-कभार जनसभाओं के अलावा खास बातचीत में बोले भी तो मन की बात यानि एकतरफा संवाद, सवाल कोई भी हो, जवाब मनमाफिक ही मिलेगा। ऐसे में तब बरबस यूपी की सीएम मायावती की याद ताजा हो जाती थी। वैसे भी मायावती ने एक दौर में उसी बीजेपी परिवार के साथ राजनीतिक-संगत की थी, जिसकी देन मोदी हैं। खैर, पीएम मोदी इस बार बोले भी तो टाइमिंग देखिए, लोकसभा चुनाव की कई चरण गुजरने के बाद। वह अपना पक्ष ऐसे चुनावी-समय में रखने आए, जब सियासी-हवा का रुख 400 पार वाले बीजेपी के दावे पर सवालिया निशान बनने लगा है।

चुनावी सभाओं से इतर उन्होंने अंग्रेजी के दैनिक समाचार हिंदुस्तान टाइम्स को इंटरव्यू दिया, कई मुद्दों पर बेबाक टिप्पणियां कीं। कुल मिलाकर इस बार भी हर गलती के लिए नेहरु से लेकर राहुल ही उनको जिम्मेदार लगे। कर्नाटक के सैक्स-स्कैंडल को लेकर पीएम का दावा है कि केंद्र सरकार की इस मामले में जीरो-टालरेंस नीति है। लगे हाथों यह भी कह दिया कि भाजपा उम्मीदवार प्रज्जवल की पार्टी यानि जेडीएस के साथ बीजेपी से पहले उसकी साझीदार कांग्रेस को सच्चाई पता थी। तब उसने छिपा ली, अब राजनीतिक रंग दे दिया। हालांकि ऐसे ही विवाद में फंसे भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण के मुद्दे को मोदी खूबसूरती से साइड-लाइन कर गए। जब बीजेपी द्वारा चुनाव में मंदिर-मस्जिद और सैम पित्रोद जैसे मुद्दे उठाने का सवाल किया तो पीएम ने रुख ही घुमा आरक्षण का मुद्दा उठा कुछ और ही जवाब दे दिया।

भाजपा चुनावी चरण आगे बढ़ने पर 400 पार वाला नारा अब क्यों बुलंद नहीं कर रही, इस सवाल पर भी वाक-कला में माहिर मोदी ने मुद्दा ही घुमाते हुए फिर से आरक्षण की बात कर मनमाना जवाब दे दिया। मोदी अपनी पसंदीदा ‘मन की बात’ करते यह भी इलजाम थोप गए कि अंबेदकर के साथ नेहरु भी चाहते थे कि जातिगत आरक्षण खत्म हो, लेकिन कांग्रेस यानि नेहरु के फॉलोवर्स जनाधार घटते देख उसी राह पर चले गए। गौर करें तो प्रधानमंत्री ने लंबे वक्त बाद इस तरह बात की, जहां बेबाकी के नाम पर फिर से वह मन की बात ही कर गए।

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