अलविदा…पंजाबी-काव्य के सिरमौर पदमश्री डॉ.सुरजीत पातर, आप बहुत याद आएंगे

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राष्ट्रपति ने 12 साल पहले नवाजा था पद्मश्री से डॉ. पातर को, मुख्यमंत्री ने जताया अफसोस, प्रशसंक गम में डूबे

लुधियाना 11 मई। पंजाबी-मां बोली के बड़े पैरोकार, नामवर कवि डॉ.सुरजीत पातर का इस दुनिया को अलविदा कह गए। करीब 79 साल की उम्र में उनका निधन दिल का दौरा पड़ने से शहर की आशापुरी कालोनी में उनके निवास पर हो गया। डॉ.पातर की मौत की जानकारी पाते ही देश-विदेश से उनके अनगिनत प्रशंसक शोक संवेदना व्यक्त करने लगे। मुख्यमंत्री भगवंत मान भी उनके प्रशंसकों में शुमार रहे हैं, लिहाजा उनकी ओर से भी गहरी शोक संवेदना व्यक्त करते संदेश जारी किया गया।

यहां काबिलेजिक्र है कि साल 2012 में उनको साहित्य-जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए केंद्र सराकर ने सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से नवाजा था। राज्य सरकार, तमाम साहित्यिक व अन्य संस्थाएं देश-विदेश में उनको अनगिनत सम्मानों से नवाज चुकी थीं। हालांकि संवेदनशील व्यक्तित्व के मालिक डॉ. पातर ने किसान आंदोलन का नैतिक समर्थन करते हुए केंद्र की मोदी सरकार के अड़ियल रवैये के विरोध में पद्मश्री लौटाने का ऐलान तक कर दिया था।

जानकारी के मुताबिक डॉ.पातर की पत्नी भूपिंदर कौर ने शनिवार सुबह उनके जगाने का प्रयास किया तो वह हिले-डुले नहीं। उन्होंने फोन कर एडवोकेट हरप्रीत संधू को बुलाया, जो लेखक भी हैं। वहफौरन डॉ. पातर को एंबुलेंस से अस्पताल लेकर गए तो डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। डॉ.पातर के बेटे मनराज पातर और अंकुर पातर ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं। उनके यहां लौटने पर ही अंतिम-संस्कार का दिन-समय तय होगा।

गौरतलब है कि डॉ.पातर जालंधर के गांव पातर कलां में 14 जनवरी, 1941 में पैदा हुए थे। गांव के स्कूल में चौथे दर्जे तक पढ़े और फिर नजदीकी गांव में आगे की पढ़ाई की। पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से मास्टर डिग्री पूरी करने के बाद पातर ने गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर  से पीएचडी की। इसके बाद वह पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी पंजाबी के प्रोफेसर नियुक्त होने के बाद यही से रिटायर हुए।

डॉ.पातर के काव्यात्मक-सफर की शुरुआत करीब पांच दशक से भी पहले हुई थी। उनके मशहूर काव्य-संग्रह में ‘लफ़ज़ा दी दरगाह’ के अलावा प्रसिद्ध कविताएं, नज्में और गजल ‘हवा विच लिखे हर्फ’ और टहनेरे विच सुलगदी वर्णमाला’ प्रमुख हैं। जबकि डॉ. पातर ने ‘शहीद उधम सिंह’ और दीपा मेहता की ‘हेवन ऑन अर्थ’ फिल्म के पंजाबी संस्करणों के लिए संवाद भी लिखे। साल 1979 में उनको पंजाबी साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1993 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1999 में पंचानंद पुरस्कार, 2007 में आनंद काव्य सम्मान, 2009 में सरस्वती सम्मान और गंगाधर राष्ट्रीय कविता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह पंजाबी साहित्य अकादमी के प्रधान और पंजाब कला परिषद के अध्यक्ष भी रहे।

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