आम चुनाव के शोर में फिर आम से लेकर खास आदमी तक को दहशत में डालने वाली खबर सामने आई है। मायानगरी मुंबई में चिकन-शवरमा खाने से 19 वर्षीय युवक की मौत का मामला सामने आया है। महाराष्ट्र पुलिस ने इस मामले दो लोगों को गिरफ्तार किया, जिनके स्टॉल से युवक ने चिकन शावरमा खरीदकर खाया था। मरने वाले नौजवान प्रथमेश भोसके ट्रोम्बे इलाके मेंआरोपियों के स्टॉल से चिकन शावरमा खरीदकर खाया था।
अब जरा याद करें, कुछ समय पहले ही पंजाब में भी दो ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। दुर्भाग्य से दोनों ही पंजाब के शाही-शहर पटियाला से जुड़ी हैं। एक मासूम बच्ची के बर्थडे पर कांफेक्शनरी-शॉप से लाया केक खाने से उसकी मौत हो गई थी। वहीं, लुधियाना से पटियाला गई एक बच्ची दुकान से खरीदी चॉकलेट खाने से गंभीर बीमार हो गई थी। यह तो शुक्र रहा कि लुधियाना के मेडिकल कॉलेज-हॉस्पिटल की सुविधा है, लिहाजा वहां भर्ती कराने से उसकी जान बच गई थी।
इस मामले में सबसे अहम जिम्मेदारी सेहत महकमे की होती है। जिसके यहां बाकायदा एक जिला सेहत अफसर और उसके मातहत टीम होती है, जिनका काम जिलेभर में फूड-प्रोडक्ट्स की सैंप्लिंग करना होता है। अगर आकंड़े मांगे जाएं तो कमोबेश पूरे देश में सेहत महकमे की यह विंग सिर्फ त्यौहारी-सीजन में ही फूड-सैंप्लिंग की रस्म-अदायगी करती है। नतीजतन, बाकी समय आम से लेकर खास आदमी तक अगर बाजार से खाने-पीने की चीजें खरीदकर इस्तेमाल करता है तो उसकी सेहत और जान बस ‘राम-भरोसे’ होती है।
सबसे गंभीर पहलू, संवैधानिक व्यवस्था के पहरेदार यानि जनप्रतिनिधि जनता से जुड़े इस अहम मुद्दे पर कभी कुछ बोलते नजर नहीं आते। अब भी चुनावी-शोर में पटियाला से लेकर मुंबई तक हुए इन हादसों पर प्रधानमंत्री से लेकर स्थानीय स्तर पर लोकसभा सीटों के उम्मीदवार, तमाम पार्टियों के नेता कोई टिप्पणी करना तो दूर, शायद इस सबसे अंजान होंगे। उनका लक्ष्य बस चुनाव लड़ना, जीतना और सत्ता सुख भोगना ही लगता है। तभी तो जनता को जनार्दन कहने वाले ये राजनेता किस कद्र संवेदनहीन हो चुके हैं, ये पटियाला व मुंबई की इन तीन बड़ी घटनाओं से ही सहजता से पता चल रहा है। बाकी रही बात, देश के अन्य हिस्सों की तो अनगिनत लोग रोज ही जहरीले-खाने और पीने वाले उत्पादों को इस्तेमाल कर अस्पतालों में पहुंचते हैं। बहुत से अभागे दम तोड़ जाते हैं, लेकिन बेरहम शासन-प्रशासन नहीं जाग पाता, क्योंकि वो तो कुंभकर्णी-नींद में सोया है।
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