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मुद्दे की बात : पीएम के भाषण अभी तक तो कर रहे निराश

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मोदी की चुनावी सभाओं में दस साल का रिपोर्ट कार्ड, विकास गायब, बस विपक्ष ही निशाने पर 

लोकसभा चुनाव का तीसरा चरण मंगलवार सात मई को खत्म हो जाएगा। कुल दस राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की 93 सीटों पर वोटिंग होगी। लोकतंत्र का यह महापर्व समापन की ओर बढ़ रहा है, लेकिन हैरान-परेशान मतदाताओं को उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आ रही। जिसकी रोशनी में दस साल तक केंद्र की सत्ता संभालने वाले अपना रिपोर्ट कार्ड भरोसे के साथ पेश कर विकास के मुद्दों पर कोई ठोस भावी योजना समझाते। ऐसे में विपक्ष से तो बहुत उम्मीद भी नहीं की जा सकती, क्योंकि बड़ी जवाबदेही तो उनकी है, जिनको जनता ने भरोसा कर लगातार दूसरी बार संसद की कमान सौंपी थी।

अब जरा रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभाओं में उनके भाषणों पर गौर फरमाएं। वह उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों इटावा और सीतापुर में रैली को संबोधित करने गए थे। बताते चलें कि संसद का सबसे बड़ा रास्ता इसी प्रदेश यानि यूपी से होकर ही जाता है। खैर, इटावा में पीएम ने अपने सर्वप्रिय विषय विकास पर गंभीर चर्चा की बजाए गांधी-परिवार पर तंज कसे। बीजेपी-टीम की जुमलेबाजी के जनक कहलाने वाले मोदी शेखी बघराने वाले अंदाज बोले कि शाही परिवार का वारिस ही सीएम-पीएम बने, यह कुप्रथा इस चायवाले ने तोड़ दी। पांच साल पहले शाही कांग्रेसी-परिवार चुनाव के समय मंदिर-मंदिर घूमता फिर रहा था। कांग्रेसी  शहजादे ने कोट के ऊपर जनेऊ पहन लिया था। मगर, इस बार मंदिर के दर्शन बंद हैं।

फिर सीतापुर में पीएम भावनात्मक मुद्दे छेड़ बैठे। वह गरजते हुए दावा ठोकने लगे कि मोदी जब तक जिंदा है, जातिगत आरक्षण को खत्म नहीं होने देगा। फिर पूरी तरह विकास के मुद्दे से भटकाने वाला सियासी-दांव चलते मतदाताओं की बजाए विपक्ष से मुखातिब हो गए। मालूम करने लगे कि मैं छोटी काशी की इस धरती से सवाल उठा रहा हूं कि क्या सत्ता में आए तो राम मंदिर को भी अस्पताल बना दोगे ? क्या काशी विश्वनाथ पर भी बुलडोजर चलाओगे?

ले-देकर मतदाताओं को चौकन्ना भी किया तो हवाई-आरोप दोहराते पीएम गरजे कि सपा-कांग्रेस की नजर आपके मकान, घर में रखे जेवर और कैश पर है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को ही लपेटे में लेते इलजाम जड़ दिया कि वह  कहते थे कि हमारे देश की संपत्ति पर पहला हक मुसलमान का है। यह अपने वोट बैंक को देंगे। वोटरों को विपक्ष के खिलाफ उकसाते सवाल किया कि क्या आप किसी सरकार को अपने पूर्वजों की संपत्ति छीनने देंगे ? माता-बहनों का मंगलसूत्र छीनने देंगे क्या ?

अब जरा पीएम के मंगलसूत्र वाले बयान पर छपे एक वायरल कार्टून पर भी गौर फरमा लें। जिसमें कई महिलाएं कतार में खड़ी प्रधानमंत्री को जवाब दे रही हैं कि उनके मंगलसूत्र तो कोरोना काल, नोटबंदी, बढ़ती महंगाई वगैराह में पहले से ही गिरवी हैं। यह कोई कोरा चुटकुला नहीं, व्यंग्यकार और कार्टूनिस्ट जमीनी सच्चाई को ही अपनी कलम-कूची के जरिए कागज पर उकेरकर समाज को जागरुक करने का काम करते हैं। उनके तंज को किसी भी सत्ताधारी या विपक्षी दल को भी पूरी गंभीरता से लेना चाहिए। अगर यह सच नहीं तो फिर पीएम रहते जवाहर लाल नेहरु उस कार्टूनिस्ट का बीमार होने पर हालचाल पूछने क्यों गए थे, जो उनके रोजाना कार्टून छापकर जनता के साथ उनको भी सजग करते थे। ऐसे में उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि दो बार पीएम के गरिमा वाले पद पर रह चुके नरेंद्र मोदी भी अपनी आलोचनाओं को लेकर सकारात्मक सोच के साथ आत्म-चिंतन जरुर करेंगे।

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